विशेष संवाददाता
नई दिल्ली। | लद्दाख इलाके में ठंडक ने दस्तक देनी शुरू कर दी है। मीडिया में खबरें आई हैं कि इससे चीनी सेना की हालत खराब होने लगी है, हालांकि कोई आधिकारिक पुष्टि भारतीय पक्ष की तरफ से नहीं की गई है। अलबत्ता यह जरूर कहा जा रहा है कि सेना ने सर्दियों की दस्तक होने के मद्देनजर अपनी तैयारियां तेज कर दी है। एलएसी पर भारतीय जवान मुस्तैदी से डटे हुए हैं। यह माना जा रहा है कि अभी जल्द यह टकराव खत्म होने वाला नहीं है।
बताने की जरूरत नहीं कि भारत की तरह चीन की पीएलए कोई प्रशिक्षित अनुशासित सेना नहीं है। चाँदी के चम्मच से पलने वाले रहीसजादे युवक अनिवार्य सैन्य सेवा के चलते मजबूरी में लिबरेशन आर्मी में शामिल होते हैं और अवधि समाप्त होने के दिन गिनते हैं। इनमें माइनस पचास डिग्री सेल्सियस तापमान सहने का माद्दा नहीं है। इसलिए चीन परेशान है कि सर्दी शुरू होने के पहले दोनो पीछे हटे। लेकिन इस समय भारतीय सेना लाभ वाली पोजीशन से हटने पर शायद ही तैयार सोगी।फिर, जो सेना वहां तैनात है उसे माइन्स तापमान में रहने का प्रशिक्षण मिला हुआ है।
भारतीय सेना ने पैंगोंग इलाके में चीन से टकराव के बीच अपनी तैनाती तो मजबूत कर ली है, लेकिन दोनों तरफ से जारी गतिरोध के टूटने के आसार नहीं हैं। पैंगोंग से लेकर रेजांग ला तक के इलाकों में कम से कम तीन स्थानों पर भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने डटी हुई हैं। दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच 10 सितंबर में मास्को में बैठक हुई थी, जिसमें पांच बिन्दुओं पर तनाव कम करने की सहमति बनी थी, लेकिन इसके बावजूद पिछले नौ दिनों में लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की बातचीत पर फैसला नहीं हो सका है।
सेना के सूत्रों के अनुसार, इस पर चीन की तरफ से फैसला नहीं लिया जा रहा है, जबकि सेना पूरी तरह से वार्ता को लेकर तैयार है। दरअसल, इसके पीछे चीनी सेना यह महसूस कर रही है कि अब भारतीय सेना ने पैंगोंग की चोटियों पर रणनीतिक पोजीशन हासिल कर ली है, इसलिए वह बातचीत में चीनी सेना पर हावी होने की कोशिश कर सकती है। जबकि चीनी पक्ष अभी भी इस रुख पर कायम है कि भारतीय सेना भी पूरे फिंगर इलाके को खाली करे।
सूत्रों के अनुसार, उत्तरी पैंगोंग, रेजांग ला और फिंगर-5 क्षेत्र में तीन स्थानों पर दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हैं। उनके बीच की दूसरी 200-300 मीटर से ज्यादा नहीं है। हालांकि, पिछले दस दिनों में टकराव की खबर नहीं है, लेकिन स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है। इसलिए पहली कोशिश इस बात की महसूस की जा रही हैं कि दोनों सेनाएं इस स्थिति को खत्म करें और पीछे हटें। पिछले सप्ताह ब्रिगेडियर स्तर की बातचीत में इस मुद्दे पर चर्चा भी हुई, लेकिन चीन उस पर अमल करने को राजी नहीं है।