नई दिल्ली। मुस्लिम समुदाय में चली आरही बहुपत्नी प्रथा और ‘निकाह हलाला’ की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं में पक्षकार बनने के लिये ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय में आवेदन दायर किया।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपने आवेदन में कहा है कि शीर्ष अदालत पहले ही 1997 में बहुपत्नी प्रथा और ‘निकाह हलाला’ के मुद्दे पर गौर कर चुका है और उसने इसे लेकर दायर याचिकाओं पर विचार करने से इंकार कर दिया था। बोर्ड ने अपने आवेदन में कहा है कि पर्सनल लॉ को किसी कानून या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा इन्हें बनाये जाने की वजह से वैधता नहीं मिलती है। इन कानूनों का मूल स्रोत उनके धर्मग्रंथ हैं।
आवेदन में कहा गया है कि मुस्लिम लॉ मूल रूप से पवित्र कुरान और हदीस (मोहम्मद साहब की शिक्षाओं) पर आधारित है। अत: यह संविधान के अनुच्छेद 13 में उल्लिखित ‘लागू कानून’ के भाव के दायरे में नहीं आता है। इसलिए इनकी वैधता का परीक्षण नहीं किया जा सकता।
बहुपत्नी प्रथा मुस्लिम व्यक्ति को चार बीवियां रखने की इजाजत देता है जबकि ‘निकाह हलाला’ का संबंध पति द्वारा तलाक दिये जाने के बाद यदि मुस्लिम महिला उसी से दुबारा शादी करना चाहती है तो इसके लिये उसे पहले किसी अन्य व्यक्ति से निकाह करना होगा और उसके साथ वैवाहिक रिश्ता कायम करने के बाद उससे तलाक लेने से है।
शीर्ष अदालत ने 2018 में मुस्लिम समुदाय में प्रचलित बहुपत्नी प्रथा और ‘निकाह हलाला’ की संवैधानिक वैधता पर विचार करने का निर्णय किया था।