कानपुर के बिकरू गांव में दुस्साहसिक घटना के दस दिन बाद जिंदगी पटरी पर लौटने लगी है। रविवार को महिलाएं, बड़े-बुजुर्ग घर के चबूतरों पर बातें करते दिखे तो बच्चे भी बाहर खेलते नजर आए। गांव की दुकानें खुलीं तो बच्चे टॉफी, चिप्स के पैकेट लेने के लिए पहुंचे। विकास के बाद पुलिस के डर के बाद पलायन करने वाले लौटने लगे।

2 जुलाई की रात गांव के लोग एक घंटे तक गोलियों की आवाज सुन सहम गए थे। घटना के बाद उनकी रूह कांप गई। इसके बाद गांव में सन्नाटा पसर गया। बहुत से परिवार रिश्तेदारों के यहां पलायन कर गए तो कई ने खुद को घरों में कैद कर लिया था। अस्सी फीसदी घर खाली हो गए थे, ज्यादातर पुरुष भाग गए थे। दहशत के मारे पुलिस के सामने कोई भी मुंह खोलने को तैयार नहीं था।

विकास का अंत होने के बाद लोगों को राहत मिली। विकास के घर जाने वाले रास्ते के मकानों के बार महिलाएं बैठी दिखीं। घरों के बाहर चबूतरे साफ दिखे। दूसरी गली में दुकान खुली तो बच्चे परचून की दुकानों में टॉफी खरीदते दिखे। आगे की गली में एक चबूतरे पर कुछ लोग बैठे थे जो चर्चा कर रहे थे कि तीस साल बाद गांव में दहशत का अंत हुआ है।

पांच मकान बाद चार किशोरियां हंसी-ठिठोली के बीच गुट्टा खेलती दिखीं। तीसरी गली में कुछ लड़के चर्चा कर रहे थे कि मकान ढहा दिया गया। घरों के लोग काम करते दिखे। गांव के लोगों की जिंदगी सामान्य होती दिखी। एक-दूसरे से बात करते हुए लोगो के चेहरों पर मुस्कान थी। जिस पंचायत भवन में विकास का कब्जा था उसमें लगे हैंडपंप से लोग पानी भरते दिखे। पहले इस हैंडपंप से किसी की पानी लेने की हिम्मत नहीं थी। पुलिस ने भी लोगों को सुरक्षा का भरोसा दिलाया।

बिकरू गांव में बच्चे भी अपनी फरमाइश करने लगे हैं। अभी तक बच्चो को पुलिस पकड़ लेगी की दहशत दिखाकर डराया जा रहा था। रविवार को गांव में जिंदगी पटरी पर लौटी तो एक बच्चा अपनी मां से जिद कर रहा था झूला डलवा दो। अब तो पुलिस अंकल भी कह गए हैं कि खूब खेलो। पुलिस नहीं पकड़ेगी। इस पर मां बोली, कल रस्सी मंगवाकर झूला डलवा देगे।

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