उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को संसद से कहा है कि, वह जनप्रतिनिधियों को अयोग्य करार देने की मांग संबंधी याचिकाओं के निबटारे के संबंध में अध्यक्ष के अधिकारों पर पुनर्विचार करे, क्योंकि स्पीकर खुद भी किसी न किसी राजनीतिक दल से आते हैं। अदालत ने इस संबंध में एक निष्पक्ष एवं स्थायी तंत्र बनाने का सुझाव भी दिया।
न्यायमूर्ति आर.एफ. नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने मणिपुर के एक कांग्रेसी नेता की याचिका पर फैसला सुनाते हुए यह टिप्पणी की। मणिपुर में कांग्रेस के विधायक फाजुर रहीम और के. मेघचंद्र ने राज्य के वन मंत्री टी. श्यामकुमार को अयोग्य करार देने की मांग संबंधी याचिका दायर की थी। शीर्ष अदालत ने मणिपुर के विधानसभा अध्यक्ष को चार सप्ताह के भीतर याचिका का निस्तारण करने का निर्देश देते हुए याचिकाकर्ताओं से कहा कि, यदि निर्धारित समय के भीतर याचिका का निस्तारण नहीं होता है, तो वे पुन: अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं। दरअसल शीर्ष अदालत की मुख्य आपत्ति स्पीकरों द्वारा ऐसे मामलों को लटकाने पर है। इसके पूर्व कर्नाटक में भी 17 विधायकों को अयोग्य करार देने के मामले में स्पीकर के खिलाफ सख्त टिप्पणी की थी।
उल्लेखनीय है कि भाजपा विधायक एवं वन मंत्री टी. श्यामकुमार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते थे, लेकिन बाद में वह दल बदल कर भाजपा में शामिल हो गये और मंत्री भी बन गये।