लक्ष्मी कान्त द्विवेदी
नागरिकता कानून के विरोध के नाम पर दिल्ली और यूपी के अलीगढ को दंगों की आग में झोंकने की कोशिश की गयी है। वक्त भी ऐसा चुना गया है, जब अगले ही दिन यानी 24 फरवरी को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारत की यात्रा पर आ रहे हैं, यानी सीएए-एनआरसी का अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनना भी पक्का!
दिल्ली ठप करने की कवायद पर भड़की हिंसा
असम को शेष देश से काट कर अलग करने की बात करने वाला शरजील इमाम भले ही सलाखों के पीछे हो, लेकिन उसकी जमात के लोग पूरी तरह सक्रिय हैं। शाहीन बाग में सुप्रीम कोर्ट के वार्ताकारों का मान रखने के लिए एक रास्ता खोलने के तुरंत बाद ही जाफराबाद में दूसरी जगह पर कब्जा कर लिया गया। रविवार को मौजापुर में भी सड़क बंद कर दी गयी। यानी पूरी दिल्ली को इस तरह ठप करने की कवायद शुरू कर दी गयी कि, आम लोगों का जीना इतना दूभर हो जाए कि, वे आजिज आकर सड़कों पर उतर पड़ें। वही हुआ, दोनों इलाकों में सीएए समर्थक भी मैदान में उतर आये और जवाबी प्रदर्शन शुरू कर दिया। लेकिन विरोध प्रदर्शन को अपना बुनियादी हक मानने वाली जमात यह मानने को तैयार नहीं है कि, उससे भिन्न विचार रखने वालों को भी यह हक उतना ही हासिल है। लिहाजा सीएए समर्थकों पर पत्थर फेंके गये। जवाबी पथराव भी हुआ। कई लोग चोटिल भी हुए। हालात पर काबू पाने के लिए पुलिस को कई स्थानों पर बल प्रयोग करना पड़ा। होना भी यही चाहिए, क्योंकि गृहमंत्री अमित शाह के संयम बरतने के आदेश के बावजूद इस साज़िश को नाकाम करने की जिम्मेदारी भी उसी की है। भ्रष्टाचार के खिलाफ रामलीला मैदान में बाबा रामदेव के धरने के समय उसकी काबिलियत देखी भी जा चुकी है।
उधर अलीगढ मे तो सुबह से ही तैयारी थी। प्रशासन उनकी मंशा को भापने मे नाकाम रहा। भीम आर्मी के रविवार को प्रस्तावित भारत बंद की आड मे सीएए विरोधी मुस्लिम प्रदर्शनकारियों ने सोशल मीडिया पर मैसेज वायरल कर दिया। आसपास के गांव तक से लोग जिनमें पुरुषों के अलावा महिलाएं और बच्चे शामिल थे हजारों की तादात में शाह जमाल व ऊपरकोट पहुंच गये। पुलिस पहले परेशान हुई और हिंसा पर उतारू दंगाई कुछ देरी तक पुलिस पर भारी पडे लेकिन दूसरे समुदाय के आने के बाद उनको गदेड दिया गया। गोली से एक घायल भी हुआ। कहने का मतलब यह कि सीएए की आड मे उनकी दंगा भड़काने वाली मंशा सामने आ गयी।
इसके पहले सुप्रीम कोर्ट के वार्ताकार एवं सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी वजाहत हबीबुल्लाह ने भी शाहीन बाग में एक रास्ता खुलवा कर शीर्ष अदालत में हलफनामा देकर शाहीन बाग में चल रहे प्रदर्शन को शांतिपूर्ण करार देते हुए सड़क बंद होने का ठीकरा दिल्ली पुलिस के सिर फोड़ दिया। क्या वह यह कहना चाहते हैं कि, दिल्ली पुलिस को शाहीन बाग से अपने सुरक्षा इंतजामात हटा कर खुला छोड़ देना चाहिए? हो सकता है हबीबुल्लाह साहब प्रदर्शनकारियों को खुश कर अपने पाले में लाने की खातिर ऐसा कर रहे हों, लेकिन शरजील समर्थकों की जमात को उनकी यह नरमी भी पसंद नहीं आयी और देखते ही देखते पूरी दिल्ली ठप करने की कवायद शुरू कर दी गयी। मकसद साफ है, ट्रम्प की भारत यात्रा की पूर्व संध्या पर देश की राजधानी को दंगों की आग में झोंक देना, ताकि दुनिया भर की आंखों में धूल झोंकी जा सके कि देखिये, सीएए-एनआरसी का विरोध करने की इजाजत न देकर भारत में मुस्लिमों का किस कदर उत्पीड़न किया जा रहा है। इससे सरकार पर नागरिकता कानून वापस लेने का दबाव पड़ेगा और वे पास-पड़ोस से अपने धर्मावलम्बियों को बेरोकटोक हिन्दुस्तान लाते रहेंगे। अच्छी बात यह है कि, मामला देश की सर्वोच्च अदालत में है। उम्मीद है कि, उसका न्याय शांति और सद्भाव में मददगार होगा।