मोदी के संसदीय क्षेत्र को एक और तोहफा मिलने के संकेत
देश भर में छह हाई स्पीड और सेमी हाई स्पीड कारिडोर बनाने की तैयारी
लक्ष्मी कान्त द्विवेदी
समाचार संपादक
वह दिन ज्यादा दूर नहीं जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के लोग भी दुनिया के गिने-चुने देशों के नागरिकों की तरह बुलेट ट्रेन के सफर का आनंद ले सकेंगे। दरअसल भारतीय रेलवे ने देश में ऐसे छह मार्गों का चयन किया है, जिन पर ट्रेनें 300 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार से चल सकेंगी। इनमें वाराणसी-लखनऊ-नोएडा-दिल्ली-आगरा रूट भी शामिल है। इसके लिए रेलवे एक वर्ष में विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) जारी करेगी।
एक जमाना था, जब वाराणसी की रेल व्यवस्था अत्यंत उपेक्षित और दयनीय हुआ करती थी। रेलवे स्टेशन के नाम पर एक पुरानी जर्जर इमारत थी और टिन शेड के प्लेटफार्म थे। धूल-गंदगी से अटी बोगियों में एक-दूसरे पर लदे यात्रियों की भीड़ भाप के इंजन के धुएं की कालिख अपने बदन और कपड़ों पर समेटती सफर करती थी। ट्रेनों की हालत ऐसी कि, दिल्ली से हावड़ा तक की ज्यादातर रेलगाड़ियां मुगलसराय से गुजरती थीं और वाराणसी की किस्मत में दो-तीन ट्रेनों के अलावा कुछ नहीं था। हर मामले में मुगलसराय को वाराणसी से ज्यादा तरजीह दी जाती थी। यह बदहाली 1973 तक चलती रही। लेकिन उसी साल पंडित कमला पति त्रिपाठी के रेल मंत्री बनने के बाद पहली बार हालात सुधरे। रेलवे स्टेशन की नयी इमारत बनी और काशी विश्वनाथ एक्सप्रेस के रूप में दिल्ली ले जाने वाली पहली ऐसी ट्रेन मिली, जो बनारस से चलती थी। उन दिनों इतना ही बहुत था। जब तक पंडित कमला पति त्रिपाठी रेल मंत्री रहे, वाराणसी को थोड़ा-बहुत महत्त्व मिलता रहा, लेकिन उनके बाद हालात फिर जस के तस। सरकारें आती-जाती रहीं, सांसद बदलते रहे, लेकिन काशी उपेक्षित ही रही। आखिरकार 2014 में नरेन्द्र मोदी वाराणसी से लोकसभा का चुनाव लड़ने आये। काशीवासियों ने भी भावी प्रधानमंत्री का भरपूर साथ दिया और फिर तो विकास की झड़ी लग गयी। बाबा विश्वनाथ की नगरी ने इतने बड़े पैमाने पर इतना तेज विकास कभी नहीं देखा था। जब पूरी काशी की तस्वीर बदलने लगी, तो रेल-व्यवस्था अछूती कैसे रहती? देखते ही देखते मंडुवाडीह और वाराणसी सिटी स्टेशन किसी हवाई अड्डे की तरह साफ-सुथरे और भव्य नजर आने लगे। वाराणसी जंक्शन और काशी समेत अन्य स्टेशनों का कायाकल्प तेजी से जारी है। बोगियां लकदक हो गयीं, हर साल ही एक-दो नयी ट्रेनें मिलने लगीं। विकास तो पूरे देश में हुआ, पर काशी का विशेष महत्व साफ नजर आया। वन्दे भारत के रूप में देश की पहली विश्वस्तरीय ट्रेन वाराणसी के हिस्से में ही आयी, जिसकी भव्यता देख कर विरोधियों का कलेजा ऐसा फटा कि, कुछ स्थानों पर उसे पत्थरों का निशाना तक बनाया गया, जिसकी वजह से रेलवे अधिकारियों को उसका रूट बदलना पड़ा।
काशी को बुलेट ट्रेन मिलने का स्पष्ट संकेत रेलवे बोर्ड के चेयरमैन वी.के. यादव ने बुधवार को बजट पूर्व चर्चा में दिया। उन्होंने बताया कि, इन छह में से कुछ रूट मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड कारिडोर का हिस्सा भी बनेंगे। उनका कहना कि, हाई स्पीड कारिडोर के अलावा रेलवे सेमी हाई स्पीड कारिडोर का भी निर्माण करेगी, जिस पर ट्रेनें 160 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार से चल सकेंगी। उन्होंने कहा कि, जो छह नये हाई स्पीड कारिडोर प्रस्तावित हैं, उनमें आगरा-दिल्ली-नोएडा-लखनऊ-वाराणसी (865 किमी), दिल्ली-जयपुर-उदयपुर-अहमदाबाद (886 किमी), मुंबई-नासिक-नागपुर (753 किमी), मुंबई-पुणे-हैदराबाद (711), चेन्नै-बंगलुरु-मैसूर (865 किमी) और दिल्ली-चंडीगढ़-लुधियाना-जालंधर-अमृतसर (459 किमी) शामिल हैं।
उनका कहना था कि, डीपीआर मिलने के बाद रेलवे तय करेगी कि किस रूट पर हाई स्पीड कारिडोर बनेगा और किस रूट पर सेमी हाई स्पीड कारिडोर। रेलवे डीपीआर में भूमि की उपलब्धता, एलाइनमेंट और ट्रैफिक की संभावनाओं पर विशेष रूप से विचार करेगी, ताकि परियोजना की लागत निकल सके। उन्होंने कहा कि, मुंबई और अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन की परियोजना दिसम्बर, 2023 तक पूरी हो जाएगी। इसकेे लिए अगले छह माह में भूमि अधिग्रहण का काम 90 प्रतिशत पूरा हो जाएगा। उनका कहना था कि, बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए कुल 1380 हेक्टेयर जमीन की दरकार है, जिसमें से 1005 हेक्टेयर निजी क्षेत्र की है। इसमें से 471 हेक्टेयर का अधिग्रहण हो चुका है। 149 हेक्टेयर जमीन राज्य सरकार की है, जिसमें से 119 हेक्टेयर मिल चुकी है। रेलवे भी अपनी 128 हेक्टेयर भूमि परियोजना के लिए देगी।