वैज्ञानिकों ने कहा, तीन वजह से वायरस पकड़ में नही आता

दुनियाभर के विशेषज्ञों का यह मानना है कि कोरोनावायरस को समाप्त करने में गलत निगेटिव रिपोर्ट ( negetive report ) बड़ी बाधा बन रही है। वायरस से पीड़ित मरीज की रिपोर्ट में वायरस की मौजूदगी होने के बाद उसका पता न लगना रोग को फैला रहा है।

वैज्ञानिकों का कहना है, कोविड-19 के बदलते ट्रेंड के कारण कोई भी जांच 100 फीसदी सटीक नहीं है। संक्रमण रोग विशेषज्ञ का कहना है कि सटीक जांच के लिए करने वाले का प्रशिक्षित होना और सैम्पलिंग ( sampling)के दौरान दी गई गाइडलाइन का पालन करना बेहद जरूरी है। इसी वजह से अमेरिका में कोरोना की जांच के लिए सामान्य स्टॉफ नहीं बल्कि प्रशिक्षित फार्मासिस्ट नियुक्त किए जा रहे हैं। जानकारों का कहना है कि तीन कमी इसके जिम्मेदार हैं।

सैम्पल लेने का गलत तरीका

जांच में वायरस पकड़ में आ रहा है या नहीं इसकी कई वजह हो सकती हैं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि शरीर में वायरस संक्रमण कितना फैला है। जैसे लक्षण खांसी-छींक तक सीमित हैं या शरीर के दूसरे अंग भी प्रभावित हो रहे हैं। अहम पहलू है कि जांच का सैम्पल किस तरह लिया गया है। गले से स्वाब सैम्पल (लार का नमूना) लेते वक्त सभी जरूरी सावधानी बरती गई हैं या नहीं। इसके अलावा इस सैम्पल को लैब ( lab) तक पहुंचने में कितना समय लगा है। विशेषज्ञ कहते हैं कि पिछले 5 महीने से कोरोनावायरस इंसानों को संक्रमित कर रहा है इसलिए सटीक जांच सबसे जरूरी पहलू है। दुनियाभर में

अलग-अलग कम्पनियां जो जांच कर रही हैं उनका तरीका एक-दूसरे से थोड़ा अलग भी है। इसलिए एक सटीक आंकड़ा पेश करना भी मुश्किल है। एक अनुमान के मुताबिक, कैलिफोर्निया में कोविड-19 के मामले मध्य मई 2020 तक 50 फीसदी बढ़ सकते हैं।

एक पहलू यह भी कि वायरस का एक से दूसरे हिस्से में पहुंचना। वैज्ञानिकों के मुताबिक, कोरोनावायरस के संक्रमण का दायरा धीरे-धीरे बढ़ता है। वायरस शरीर के ऊपरी हिेस्से (नाक, मुंह) से निकलते हुए फेफड़ों तक पहुंचता है। इस स्थिति में कोरोना शरीर में मौजूद होने के बाद भी स्वाब सैम्पल निगेटिव आ सकता है। अगर लक्षण दिख रहे हैं तो लगातार तीन बार स्वाब सैम्पल लिया जाता है। टेस्ट निगेटिव आने पर इस बार मरीज के फेफड़ों से सैम्पल लिया जाता है।
एक इमरजेंसी फिजिशियन का कहना है कि फेफड़ों से सैम्पल लेने को ब्रॉकोएल्विओलर प्रक्रिया कहते हैं। इस दौरान शरीर में छोटा सा चीरा लगाकर फेफड़ों से फ्लूड निकाला जाता है।

फिर, जब जांच बड़े स्तर पर होती है तो कई बार जरूरी सावधानियां नजरंदाज हो जाती हैं। अमेरिका में बड़े स्तर पर जांच की शुरुआत बेहद धीमी गति से शुरू हुई है। अब टेस्ट किट का प्रोडक्शन तेजी से बढ़ाया जा रहा है। आलम यह है कि फार्मासिस्ट को जांच करने के लिए आधिकारिक तौर पर नियुक्त किया गया है।
सबसे खतरनाक बात यह है कि लोगों का टेस्ट निगेटिव आने पर वह निश्चिंत हो जाते हैं और वह दूसरों से मिलना-जुलना शुरू कर देते हैं।

एक्सपर्ट को अब सीरोलॉजिकल टेस्ट से उम्मीदें

वैज्ञानिकों को अब हाल ही में उपलब्ध कराए गए सीरोलॉजिकल टेस्ट से उम्मीदे हैं। इस टेस्ट के जरिए यह देखा जाता है कि इंसान के शरीर में मौजूद एंटीबॉडीज कोरोनावायरस पर किस तरह से असर करेंगी। इस जांच से यह भी पता चलेगा कि इंसान पहले कभी संक्रमित हुआ था नहीं। ऐसे मरीज जिनकी जांच रिपोर्ट निगेटिव आई है उनका भी सीरोलॉजिकल टेस्ट कराया जाएगा।

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