एक तरफ देश कोरोना जैसी महामारी से लड़ने में लगा है। सरकार ने social distancing को इसका मुख्य हथियार बनाया है जबकि दंतेवाड़ा में नक्सली इसे एक मौके की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं।
ये लोग इलाके के गांवों में महामारी का डर जगाकर अपनी पैठ जमा रहे हैं। गांववालों को शहरी इलाकों में जाने और बाहर से किसी को आने देने पर पाबंदी लगाने को कहा जा रहा है। नक्सलियों के कहने पर ग्रामीणों ने ज्यादातर गांवों को सील कर दिया है। न किसी को गांव में आने की इजाजत है और न ही किसी को गांव से बाहर जाने की। पुलिस भी यहां नहीं पहुंच रही, लेकिन नक्सली इन गांवों में लगातार बैठकें कर रहे हैं। इसी के साथ सुरक्षाबलों पर हमले के लिए इनका टेक्निकल काउंटर ऑफेनसिव कैंपेन भी सक्रिय हो गया है।
सोशल डिस्टेंसिंग के समय गांववालों के साथ सोशल नजदीकियां बढ़ा रहे हैं नक्सली।
बस्तर में पड़ोसी राज्यों के नक्सलियों की आवाजाही रहती है। देश में कोरोनावायरस के फैलाव से पहले ही नक्सलियों का हर साल खास दिनों में चलने वाला शुरू हो चुका था। पुलिस के खुफिया विभाग के सूत्र के मुताबिक, कोरोना के पहले ही आंध प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र के नक्सली बस्तर में आ चुके थे। अभी बाहरी नक्सलियों की आवाजाही तो नहीं है, लेकिन पहले से मौजूद नक्सली सोशल डिस्टेंसिंग की बजाय गांवों में सोशल नजदीकियां बढ़ा रहे हैं। नक्सली टीसीओसी के टास्क को पूरा करने के लिए गांव-गांव जाकर बैठकें ले रहे हैं। ये सड़कें काट रहे हैं और साथ ही छुटपुट घटनाएँ भी कर रहे हैं।
बस्तर आईजी पी सुंदरराज का कहना है कि, “यहां बड़े कैडर के नक्सलियों ने खुद को जंगल में ही आइसोलेट कर रखा है, जबकि निचले कैडर के नक्सलियों को वे इस महामारी के बारे में ज्यादा नहीं बता रहे। उन्हें डर है कि संक्रमण से फैलने वाली इस बीमारी के बारे में जानकर ये लोग अपने घर भाग सकते हैं। नक्सलियों के पास मास्क, सेनेटाइजर और साबुन भी होते हैं लेकिन ये बस टॉप कैडर के पास ही रहते हैं।” सुंदरराज बताते हैं कि, “लॉकडाउन का फायदा उठाकर ये लोग road काटने, बैठकें लेने और गांववालों को बहकाने जैसे काम कर रहे हैं। हमें सबसे ज्यादा फिक्र इस बात की है कि नक्सली बाहर आते जाते रहते हैं, अगर वे कोरोना संक्रमित निकले तो जिन गांवों में ये बैठकें कर रहे हैं, उन सभी गांवों को खतरा हो सकता है।
नक्सली गांवों में ये छोटी-बड़ी सभाएं कर रहे हैं। इन बैठकों में सोशल डिस्टेंसिंग पर कोई ध्यान नहीं रखा जा रहा, लोग झुंड बनाकर एक जगह बैठ रहे हैं। कुछ ही जगहों पर ऐसी सभाओं में सोशल डिस्टेंसिंग की बात सामने आई है। इस बीच लॉक डाउन के कारण नक्सलियों का राशन सप्लाई चेन काम नहीं कर रहा है। ये लोग राशन की कमी से जूझ रहे हैं। ये राशन के लिए गांववालों पर दबाव भी बना रहे हैं।