पदम पति शर्मा
गंगा दशहरा पर सिद्धि योग आज पूर्वाह्न 11 बज कर 54 मिनट तक रहेगा। यही नहीं आज हस्त नक्षत्र का सुयोग भी पूरे दिन मिल रहा है। यानी इस बार पुण्य सलिला मां गंगा मे उसकेअवतरण दिवस पर स्नान आपको दस पापों से मुक्त कर देगा।

लेकिन इस एक जून सोमवार को ज्येष्ठ शुक्ल दशमी तिथि के दिन नामुराद हत्यारे कोरोना वायरस ने ऐसा पहरा लगा दिया है कि माता गंगा के पृथ्वी पर आगमन बाद शायद यह पहला अवसर है जब श्रद्धालु उसमें डुबकी लगाने से वंचित रह गए।

काशी मे तो आज के दिन सामान्यतःलाखों की संख्या में विशाल जनसमूह सुबह से देर शाम तक पाप नाशनी गंगा मे गोता लगा कर स्वयं को कृतार्थ किया करता था। लेकिन सामूहिक स्नान से चूंकि कोविड- 19 का जानलेवा संक्रमण न फैले इस लिए नगर प्रशासन ने हर घाट पर पर्याप्त पुलिस बल तैनात किया है ताकि कोई भूले भटके से भी भागीरथी मे स्नान न कर सके।

माना जाता है कि, इसी दिन गंगा का अवतरण धरती पर हुआ था। दुनिया मे यह एकमात्र नदी है जिसका अवतरण दिवस मनाया जाता है। इस दिन गंगा स्नान, गंगा जल का प्रयोग, और दान करना विशेष लाभकारी होता है।

यूँ तो माँ गंगा उत्तराखंड के गंगोत्री से निकलती है।
और भारत के कई महत्वपूर्ण स्थानों से होकर गुजरती है। सनातन धर्म में इसे पवित्रतम नदी का मान मिलता है। इन्हे हिन्दू धर्म में मां का यूँ ही स्थान प्राप्त नहीं है। माना जाता है कि गंगा का जल पुण्य देता है और पापों का नाश करता है। गंगाजल मे विलक्षण और ऐसे विरल तत्व हैं जो बैक्टीरिया को मारते हैं। बोतलबंद गंगाजल मे सालों साल बाद भी बैक्टीरिया उत्पन्न नहीं होते। यह ऐसी अदभुत क्षमता वाली नदी है जो दो मील के बाद स्वयं को प्रदूषण से मुक्त भी कर लेती है।

गंगा का पौराणिक महत्व क्या है ?

माना जाता है कि माता गंगा श्री विष्णु के चरणों में रहा करती थीं। यह दुनिया की सबसे नयी नदी है और जिस हिमालय से निकलती है वह सबसे नया पर्वत है।इनकी उम्र पचास हजार से लगायत पांच लाख साल बतायी जाती है। बताया जाता है कि त्रेता युग में इच्छवाकु सूर्यवंश की 37 पीढी के वंशज सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र जब रोहिताश को लेकर काशी में बिके थे तब माँ गंगा का अवतरण नहीं हुआ था। भगवान शिव के त्रिशूल पर स्थित यह नगरी उन्हीं की तरह अजन्मी है। माता गंगा को तो हरिश्चन्द्र के बाद 12वी पीढी के उनके वंशज और राजा सगर के सुपौत्र भागीरथ अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए लाए थे।

भागीरथ की तपस्या से, शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में धारण किया। फिर शिव जी ने अपनी जटाओं को सात धाराओं में विभाजित कर दिया। ये धाराएं हैं – नलिनी, हृदिनी, पावनी, सीता, चक्षुष, सिंधु और भागीरथी। भागीरथी ही गंगा हुई और हिन्दू धर्म में मोक्षदायिनी मानी गई। इन्हें कहीं-कहीं पार्वती की बहन भी कहा जाता है। इन्हें शिव की अर्धांगिनी भी माना जाता है और अब भी शिव की जटाओं में इनका वास है।

शिव भक्त उदास हैं और गंगा भक्तों को स्नान से प्रतिबंधित किए जाने पर मरणतुल्य कष्ट है। उनकी व्यथा को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता । कोरोना के चलते लाकडाउन के दौरान कल कारखानों में बंदी होने से उनका कचरा मां मे नहीं गिरा इससे वह पहले की अपेक्षा काफी कुछ अंशों तक स्वच्छ होने के साथ ही निर्मल भी हुई है। लेकिन श्रद्धालुओं को जब स्नान का सुयोग ही नहीं मिलेगा तब यह सब उनके लिए बृथा है। एक गंगा पुत्र ने बिलखते हुए कहा कि बाबा भोलेनाथ ऐसा दिन फिर मत दिखाना कि गंगा दशहरा पर श्रद्धालु डुबकी लगाने तक से तरस कर रह जाएं ।

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