बरेली। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से समाजवादी पार्टी के भीतर से ही बगावत के सुर बुलंद होने लगे हैं। पार्टी के मुस्लिम नेता ही अखिलेश यादव को कटघरे में खड़ा करने लगे हैं. इसी क्रम में आल इंडिया तंजीम उलेमा ए इस्लाम के राष्ट्रीय महासचिव मौलाना शहाबुद्दीन रिज़वी ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि मुसलामानों को समाजवादी पार्टी का  साथ छोड़ देना चाहिए और दो राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस या फिर बीजेपी को विकल्प के रूप में देखना चाहिए। मौलाना शाहबुद्दीन ने न्यूज़ 18 से बातचीत में ये बात कही.

मौलाना शहाबुद्दीन ने कहा कि अब क्षेत्रीय पार्टियों का भविष्य नजर नहीं आ रहा है। धीरे-धीरे क्षेत्रीय पार्टियां हाशिए पर जा रही हैं। ऐसे में अब मुसलमानों को देश की दो राष्ट्रीय पार्टियों में से ही एक को विकल्प चुनना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर बीजेपी बड़ा दिल दिखाए तो मुसलमान उनके बारे में भी सोच सकते हैं। मौलाना शहाबुद्दीन ने कहा कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही राज्य के मुसलमान मायूस हैं। इन तमाम उपायों के बावजूद धर्मनिरपेक्ष दल, कही जाने वाली फिराकापरस्त ताकतों को सत्ता से हटाने में नाकाम रहे हैं और तब से यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि मुसलमानों का भविष्य क्या होगा? मुसलमानों में एक तरह का डर और निराशा है। लेकिन परिस्थितियां कैसी भी हों, मुसलमानों को निराश या भयभीत होने की जरूरत नहीं है। कोई समस्या है तो उसका समाधान भी है।।यह भविष्य के लिए एक सबक है. हमें एक नई रणनीति के साथ आने की जरूरत है.म।

अखिलेश यादव अपने  ही समुदाय को एकजुट नहीं कर पाए

उन्होंने कहा कि आज जो स्थिति पैदा हुई है, उससे कई मुस्लिम भाई निराश नजर आ रहे हैं। यहां तक कि अच्छे लोग और धार्मिक समुदाय के लोग भी कह रहे हैं कि मुसलमानों का भविष्य बहुत अंधकारमय है। जबकि हमारे लिए यह सोचना उचित नहीं है, बल्कि हमें यह विश्लेषण करने की जरूरत है कि हम किसके साथ खड़े हैं और कहां जा रहे हैं। मुसलमानों ने आजादी के बाद से देश भर में धर्मनिरपेक्ष वैचारिक दलों को साथ दिया है।लेकिन उन्हें आज तक कुछ नहीं मिला है। इसके विपरीत, कई दल अक्सर अपनी हार का ठीकरा मुसलमानों के सिर पर फोड़ते हैं, जैसा कि बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने हाल ही में अप्रत्यक्ष रूप से कहा कि मुसलमानों ने हमें वोट नहीं दिया है, जबकि वह सच में कहना चाहती हैं कि मुसलमानों की वजह से उन्हें सीट नहीं मिली। समाजवादी पार्टी, जिसे मुसलमानों ने सामूहिक रूप से वोट दिया है, वह भी सत्ता खो चुकी है। समाजवादी पार्टी ने अपनी सीटों में इजाफा किया है, लेकिन उसे इतनी सीटें नहीं मिल पाई हैं, जिससे उनकी सरकार बन सके। इसका मुख्य कारण यह है कि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव अपने स्वयं के समुदाय को पूरी तरह से एकीकृत नहीं कर पाए हैं। इसके बावजूद भी मुस्लिम वोट समाजवादी पार्टी को मिला, लेकिन कई जगहों पर अखिलेश यादव के समुदाय के लोगों ने समाजवादी पार्टी को वोट नहीं दिया। जिसका सबूत है कि यादव बाहुल्य क्षेत्रों में बीजेपी ने 43 सीटों पर जीत हासिल की ।

अखिलेश यादव मुसलमानों के हितैषी नहीं

मौलाना शहाबुद्दीन ने कहा कि मुसलमानों को अब धर्मनिरपेक्षता का ठेका लेना बंद कर देना चाहिए और अपनी राजनीति और अपनी भागीदारी के बारे में नये सिरे से बात करनी चाहिए। जब तक कि वे किसी एक खास पार्टी के सहारे जीते हैं, उन्हें कुछ नहीं मिलेगा। बल्कि मुसलमानों को अब नई रणनीति बनानी चाहिए। मौलाना ने मुसलमानों को मशवरा दिया है कि अब नए हालात हैं और नए तकाज़े है इसके पेशेनज़र समाजवादी पार्टी के अलावा दूसरे विकल्पों पर विचार करना चाहिए और किसी भी पार्टी के खिलाफ मुखर होकर दुश्मनी मोल नहीं लेनी चाहिए। मैंने चुनाव के दरमियान मुसलमानों को अगाह करते हुए बताया था कि अखिलेश यादव मुसलमानों के हितैषी नहीं है। उन्होंने हर जगह मुस्लिम बडे़ चेहरो को पीछे रखने की कोशिश की और अकेले चुनाव प्रचार करते रहे। मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी में ज़मीन और आसमान का फ़र्क है। इसलिये मुसलमान विकल्पों पर विचार विमर्श करें। मौलाना ने आगे कहा कि चुनाव के दरमियान मेरे द्वारा कहीं गई बातों का समाजवादी पार्टी के नेताओं ने विरोध किया था, मगर अब मेरी ही बातें उनको अच्छी लगने लगी है। उदाहरण के तौर पर आज़म खान और डॉ शफीकुर्रहमान बर्क़ के दिए गए बयानों से ज़ाहिर है। मुसलमानों या सपा के वरिष्ठ लीडरों को मेरा मशवरा है कि जितनी जल्दी मुमकिन हो समाजवादी पार्टी छोड़ने का ऐलान कर दें, इसी में उनकी भलाई है।