कानूनी दावपेंच के खिलाड़ी फांसी टलवाने को सक्रिय

बचाव पक्ष के अधिवक्ता इस बहाने अपनी मार्केटिंग भी कर रहे

लक्ष्मीकांत द्विवेदी, हरीश शर्मा

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले के एक दोषी मुकेश कुमार सिंह की दया याचिका खारिज करने के राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती देने वाली अपील बुधवार को ठुकरा दी। लोगों को उम्मीद है कि अब दोषियों को 1 फरवरी को फांसी पर लटकाया जायेगा। लेकिन कानूनी दावपेंच के खिलाड़ी अभी फांसी कुछ दिन और टलवाने को कमर कस कर बैठे हैं।

उधर न्यायमूर्ति आर. भानुमति, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना की एक पीठ ने कहा कि राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका का शीघ्र निपटारा किए जाने का मतलब यह नहीं है कि उन्होंने सोच-समझकर फैसला नहीं किया। पीठ ने कहा कि निर्भया मामले में सुनवाई अदालत, उच्च न्यायालय और शीर्ष अदालत के फैसले सहित प्रासंगिक रिकॉर्ड राष्ट्रपति के समक्ष गृह मंत्रालय की ओर से पेश किए गए।

अदालत ने यह भी कहा कि जेल में कथित पीड़ा का सामना करने को राष्ट्रपति के दया याचिका खारिज करने के खिलाफ आधार नहीं बनाया जा सकता

इधर खबर आ रही है कि निर्भया कांड के दोषी मुकेश के बाद अब अक्षय ने सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका दायर की है। इससे पहले विनय और मुकेश की क्यूरेटिव याचिका सुप्रीम कोर्ट में खारिज हो चुकी है. पवन ने अभी तक इसे दाखिल नहीं किया है। गौरतलब है कि 1 फरवरी को फांसी की तारीख तय की गई है, उससे पहले दोषी इसे टालने और किसी तरह बच जाने की हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं।

मुकेश की पुनर्विचार याचिका, क्यूरेटिव पेटिशन और आखिर में दया याचिका तीनों खारिज हो चुकी हैं। मुकेश के पास जो इकलौती लाइफ लाइन बची है वो है राष्ट्रपति भवन से खारिज दया याचिका को हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का मौका है।

विनय की क्यूरेटिव पेटिशन खारिज हो चुकी है पर दया याचिका पर फैसला अभी बाकी है। दया याचिका खारिज होने की सूरत में उस फैसले को ऊपरी अदालत में चैलेंज करने का राइट अभी उसके पास बचा है।

दरिन्दो के वकील दरअसल अपने-अपने मुवक्किल को बचा नहीं रहे। वे जानते हैं कि ऐसा करके दोषियो की साँस ही कुछ लंबी कर रहे और साथ ही ये अधिवक्तागण इस बहाने अपनी मार्केटिंग भी कर रहे हैं । हत्या के आरोपियों को वे इस बहाने संदेश भी दे रहे हैं कि हमारे पास आइए हम आपको बचाने के लिए ऐसे ही अंतिम क्षण तक कोशिश करेंगे ।

यह कैसी तो थोथी दलील दी बचाव पक्ष ने कि राष्ट्रपति ने इतनी शीघ्रता से दया याचिका खारिज क्यों कर दी ? इस पर सरकार की ओर से तुषार मेहता ने कहा कि पहले कई मौकों पर दया याचिका विलम्बित होने से फाँसी की सजा आजीवन कारावास में बदली जे चुकी है। इसलिए दया याचिका पर त्वरित कार्रवाई की गयी।

20 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने पवन की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उसने वारदात के वक्त खुद को नाबालिग बताया था। निचली अदालत और हाई कोर्ट पहले ही उसे नाबालिग मानने से इंकार कर चुकी थी। ऐसी सूरत में भी पवन के पास अब भी तीन लाइफ लाइन बची हैं. एक क्यूरेटिव पिटीशन, दूसरी दया याचिका और तीसरी खारिज होने की सूरत में दया याचिका को अदालत में चुनौती देने का रास्ता। तीन ही लाइफलाइन अक्षय के पास भी है. क्यूरेटिव पिटीशन, दया याचिका और दया याचिका खारिज होने पर उसे अदालत में चुनौती देने का रास्ता है।

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