मध्यप्रदेश के ‘महाराज’ अब भाजपा का दामन थाम चुके हैं। पार्टी में शामिल होने के महज छह मिनट बाद ही ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्यसभा का टिकट मिल गया। कांग्रेस का कहना है कि उनके जाने से कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन यह भी सच है कि सिंधिया के जाने से कमलनाथ सरकार संकट में आ गई है। इसे लेकर शिवसेना ने कांग्रेस पर निशाना साधा है। अपने मुखपत्र सामना में पार्टी ने लिखा है कि मध्यप्रदेश की सरकार अगर गिरती है तो उसकी वजह कांग्रेस का अंहकार है।

सामना में पार्टी ने लिखा, ‘कमलनाथ की सरकार जो गिरती हुई दिख रही है उसका कारण उनकी लापरवाही, अहंकार और नई पीढ़ी को कम आंकने की प्रवृत्ति है। दिग्विजय सिंह और कमलनाथ मध्यप्रदेश के पुराने नेता हैं। कमलनाथ भी पुरातन हैं। उनकी आर्थिक शक्ति अधिक है इसलिए बहुमत के मुहाने पर रहते हुए यहां-वहां से विधायकों को इकट्ठा करके समर्थन प्राप्त किया था। ये सच भले ही हो फिर भी मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया को नजरअंदाज कर राजनीति नहीं की जा सकती।’ 

शिवसेना का कहना है कि सिंधिया का प्रभाव पूरे राज्य पर भले ही न हो लेकिन ग्वालियर और गुना जैसे बड़े क्षेत्रों में सिंधियाशाही का प्रभाव है। विधानसभा चुनाव के पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया ही कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा थे। लेकिन बाद में वरिष्ठों ने उन्हें एक ओर कर दिया और दिल्ली हाईकमान उन्हें देखता रह गया। उस समय मध्यप्रदेश की स्थिति गुत्थम-गुत्थावाली थी जरूर लेकिन लोकसभा चुनाव हारनेवाले ज्योतिरादित्य सिंधिया को ‘कबाड़’ में डालना कांग्रेस के लिए आसान नहीं था।

कांग्रेस पर निशाना साधते हुए सामना में लिखा है, ‘असंतोष के कारण समय-समय पर चिंगारियां फूट रही थीं। उस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा था और बहुमत के मुहाने पर बैठी सरकार को हम खींच ले जाएंगे, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ऐसा भ्रम पाले बैठे थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया बहुत कुछ नहीं मांग रहे थे। शुरुआत में उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष पद मांगा था। उसके बाद उन्होंने राज्यसभा की उम्मीदवारी मांगी, ऐसी चर्चा है। इनमें से कोई एक मांग भी मान ली गई होती तो कांग्रेस पर ये नौबत नहीं आ पाती। ज्योतिरादित्य जैसा नेता पार्टी छोड़कर भाजपा में नहीं जाता।

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