विशेष संवाददाता
भारतीय प्रधानमंत्री मंत्री ने बुधवार को जब यह कहा कि शहीदों का बलिदान व्यर्थ नही होने देंगे, तब उसके निहितार्थ आसानी से समझे जा सकते हैं कि जल्दी ही कुछ बडा धमाका होने वाला है। देश देख चुका है कि पाकिस्तान की आतंकी कार्रवाई का किस तरह भारतीय सेना ने सर्जिकल और एयर स्ट्राइक से मुहतोड़ जवाब दिया था। इसी के मद्देनजर अपेक्षाकृत मजबूत दुश्मन चीन की बारी है। लद्दाख सामरिक दृष्टि से काफी संवेदनशील इलाका है। चीन ने काफी भूभाग 1962 की जंग मे हडपा हुआ है। कौन जानता है कि इस बार आरपार की लडाई से पुराना हिसाब चुकता हो जाय ।
इसके संकेत नजर आने लगे हैं। बताने की जरूरत नहीं कि पिछले 15/16 जून की रात हिंसक झड़प के बाद चीन से सटी 3400 किमी लंबी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल को अलर्ट कर दिया गया है। सभी जगह फॉरवर्ड पोस्ट के कंपनी कमांडरों को चीन की ओर से कोई हरकत होने पर एक्शन लेने के लिए आदेश दे दिये गये है। लद्दाख के गलवान घाटी में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर हुई हिंसक झड़प में 20 जवानों की शहादत के लिए भारत ने सीधे तौर पर चीन को जिम्मेदार ठहराया है।
लद्दाख में सीमा से सटे गांव खाली करवाने की तैयारी शुरू हो गई है। सेना ने एहतियातन लोगों से गांव खाली करने को कहा है। देमचोक पैंगॉन्ग लेक के आसपास के इलाकों में मोबाइल फोन बंद कर दिए हैं। यहां तक कि सेना के लैंडलाइन फोन भी बंद कर दिए गए हैं।।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन नीति के लिए विपक्ष के साथ-साथ स्वदेशी जागरण मंच तथा आर.एस.एस. व भाजपा में चीन-विरोधी लॉबी ने उन पर चीन के खिलाफ कठोर कदम उठाने के लिए भारी दबाव बना दिया है।
प्रधानमंत्री ने चीन से झड़प की घटना के पूरे 24 घंटे के बाद अपनी चुप्पी तोड़ी तथा वह भी कोविड-19 पर मुख्यमंत्रियों के साथ दूसरी बैठक करने के बाद। प्रधानमंत्री कार्यालय के सूत्रों के अनुसार किसी भी विषय पर अपना विचार जाहिर करने से पहले मोदी उस पर गहन चिंतन-मनन कर लेते हैं।
लद्दाख सीमा पर चीन की साजिशन झड़प से प्रधानमंत्री मोदी पूरी तरह हैरान और अविश्वास की स्थिति में हैं क्योंकि चीनी पक्ष लगातार उन्हें राजनयिक माध्यम से यह कह रहा था कि उसकी सेना पीछे हट रही है।
वैसे तो गत 40 दिनों से चीन से सीमा पर तीन स्थानों पर झड़पें चल रही थीं परंतु मोदी को विश्वास था कि 2017 के डोकलाम संकट की तरह वह इसे भी सुलझा लेंगे। तब चीनी पीछे हट गए थे और उनकी कूटनीति सफल होने पर जनता में उनका सम्मान बढ़ गया था। तब उन्होंने यह भी जोर-शोर से कहा था कि चीनियों से उनका निकट का संपर्क (गत 6 वर्षों में चीनी राष्ट्रपति से द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय मुलाकातों में 18 बैठकें) इस संकट को शांत करने में काम का साबित हुआ।
परंतु इस बार चीनियों ने अपनी मक्कार और धोखेबाजी से भारत को लहूलुहान कर दिया है। उनकी टीम, जिसमें विदेश मंत्री एस. जयशंकर व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल शामिल हैं, चीनियों के बदले इरादे को समझने में नाकाम रही। इस टीम ने अन्य सुरक्षा विशेषज्ञों व विदेश मामलों के जानकारों की इन चेतावनियों को भी अनदेखा कर दिया कि चीनी भारतीय सीमा में गलवान क्षेत्र में 60 किलोमीटर अंदर तक घुसपैठ कर चुके हैं और उन्होंने 14,500 फीट ऊंचाई पर बंकर बना लिए हैं। भारत वहां नीचे तल से लड़ाई लड़ रहा है जो बहुत कठिन स्थिति है।
प्रधानमंत्री ने तुरंत सर्वदलीय बैठक बुला ली है जो ऐसे हालात में उन्होंने पहले कभी नहीं बुलाई। विपक्ष इस बात के लिए आग-बबूला है कि सरकार ने 40 दिन तक चीनी घुसपैठ की बात छुपाई। इस बैठक का उद्देश्य विपक्ष को समझाना तथा उन्हें इस हालात में साथ लेकर चलना है। चीन ने जो 1962 में जवाहर लाल नेहरू के साथ किया था, वैसा ही उसने 2020 में नरेंद्र मोदी के साथ किया है, हमे यह नहीं भूलना है। हालांकि यह बात दीगर है कि यह नेहरू के 1962 का पंचशील वाला कमजोर भारत नहीं मोदी के सबल नेतृत्व वाला 2020 का एक ऐसा भारत है जो ईट का जवाब पत्थर से देने में सक्षम है।