श्रीनगर। क्या इतिहास 1990 को दोहराने जा रहा है ? यह सवाल एक बार फिर कश्मीर के मौजूदा हालात के बीच अपने लिए अच्छे दिनों की उम्मीद लगाए बैठे गैर मुस्लिम समुदाय के सामने खड़ा है। क्योंकि मात्र तीन दिन में आतंकियों ने पांच लोगों की हत्या की है। इनमें से चार कड़ी सुरक्षा व्यवस्था वाले श्रीनगर में ही मारे गए हैं। मृतकों में तीन अल्पसंख्यक हैं। यही कारण है कि कुछ दिन पहले तक रात को भी गुलजार नजर आने वाले बाजारों में आज शाम को ही सन्नाटा पसरा नजर आ रहा है। जो कि कश्मीर के हालात की पूरी कहानी सुना रहे है।
इससे जुड़े मामले को लेकर आज राजधानी दिल्ली में गृहमंत्री अमित शाह और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के बीच हो रही बैठक में आतंकियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की योजना बनाए जाने की उम्मीद की जा रही है।
करीब 23 परिवारों के कश्मीर से जम्मू पहुंचने की भी सूचना है। वादी में कश्मीरी हिंदुओं को प्रशासन ने 10 दिन का अवकाश दिया है, ताकि वह हालात सामान्य होने तक या तो अपनी कालोनियों में रहें या फिर कश्मीर से बाहर जम्मू या किसी अन्य शहर में अपने स्वजन के साथ। यह हालात 1990 के दौर की याद दिलाते हैं। चार अल्पसंख्यकों की हत्या कश्मीर के लिए कोई नई बात नहीं है। सिर्फ अल्पसंख्यक ही नहीं, मुस्लिमों की भी हत्या हुई है। आंकड़ों के खेल में जाएंगे तो मरने वालों में कश्मीरी मुस्लिम भी हजारों में हैं। इस वर्ष अब तक मारे गए 28 लोगों में अल्पसंख्यकों की गिनती केवल छह-सात है। कुछ समय से ऐसे हमलों की सूचनाएं सिर्फ खुफिया एजेंसियों तक ही नहीं बल्कि आम लोगों में भी ठीक उसी तरह चर्चा का विषय बनी हुई थीं, जिस तरह 1990 में आतंकी हिंसा का दौर शुरू होने से पहले कश्मीर में कुछ बड़ा होने की बातें होती थीं।
जम्मू-कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ प्रो. हरि ओम ने कहा कि कश्मीर 1990 जैसा ही नजर आने लगा है। करीब दो दर्जन परिवार कश्मीर से बीती रात लौट आए हैं। इनमें कई सरकारी मुलाजिम भी हैं। मतलब यह कि कश्मीर से गैर मुस्लिमों की फिर से खदेड़ने की साजिश है।
इन हालात में गैर मुस्लिमों को घाटी में रोकना होगा मुश्किल : वरिष्ठ पत्रकार और कश्मीरी मामलों के विशेषज्ञ अजात जम्वाल ने कहा कि यह हत्याएं सिर्फ कश्मीर के हालात खराब दिखाने की आतंकी साजिश नहीं हैं। मक्खन लाल बिंदरु, विरेंद्र पासवान, सुपिंदर कौर और दीपक चंद की हत्या कश्मीर से गैर मुस्लिमों को भगाने और उनमें डर पैदा करने के लिए हुई हैं। उन्होंने कहा कि बीते साल कश्मीर में मंदिरों पर पेट्रोल बम से हमले से लेकर माहौल बिगाड़ने की कई घटनाएं हुई। 1990 से पहले भी इस तरह की घटनाओं को सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया गया था। इसके बाद कश्मीरी समाज के गणमान्य नागरिक टीका लाल टपलू, सर्वानंद प्रेमी, नीलकंठ गजू आदि की हत्याओं का सिलसिला शुरू हुआ। पिछले दिनों हुई हत्याओं को आप इसी संदर्भ में देख सकते हैं। अगर इन हत्याओं को नहीं रोका गया तो कश्मीर में हिंदुओं या गैर मुस्लिम लोगों को रोकना मुश्किल हो जाएगा।
प्रधानमंत्री रोजगार पैकेज के तहत कश्मीर में नौकरी करने वाले कई कश्मीरी पंडित मुलाजिम जम्मू लौट आए हैं। एक कश्मीरी पंडित कर्मी ने अपना नाम न छापे जाने की शर्त पर कहा कि मेरी ड्यूटी कुलगाम में है। वहां माहौल में ही डर महसूस होने लगा है। जिस दिन मक्खन लाल बिंदरु की हत्या हुई, उसी दिन घरवालों ने वापस आने को कहा था। अब तो वहां नाम और पता पूछकर कत्ल कर रहे हैं।
जम्मू-कश्मीर पुलिस के पूर्व महानिरीक्षक अशकूर वानी ने कहा कि इस समय कश्मीर में कश्मीरी हिंदुओं की संपत्ति पर कब्जे छुड़ाने में प्रशासन सक्रिय है। इसी बीच, आतंकियों ने चार अल्पसंख्यकों को मार डाला। ऐसा कर उन्होंने कश्मीर में लौटने के इच्छुक विस्थापितों को रोकने का प्रयास किया है।