विशेष संवाददाता
कोरोना वायरस के कहर के बीच एक सोची-समझी साजिश के तहत दिल्ली के निजामुद्दीन में तबलीगी जमात के मरकज में बड़ी संख्या में लोगों के आने और फिर संक्रमित हो कर पूरे देश में भाग कर छिप जाने से हड़कंप मचा हुआ है। इस मामले में दिल्ली पुलिस के एफआईआर दर्ज करने के बाद से ही तबलीगी जमात के स्वयंभू अमीर (मुखिया) मौलाना साद फरार हो गये हैं। हालत यह है कि, इस समय मौलाना साद देश के सबसे बड़े कोरोना विलेन माने जा रहे हैं और उन पर आतंकियों से साठगांठ तक के आरोप लग रहे हैं।
भले ही मौलाना साद का नाम सुर्खियों में अब आया हो, लेकिन विवादों से उनका पुराना रिश्ता रहा है। उन्होंने तबलीगी जमात के अमीर की गद्दी भी मध्य युगीन सुलतानों या बादशाहों की तरह अनैतिक, विवादित और हिंसक तरीकों से हासिल की थी।
मौलाना इलियास के परपोते हैं मौलाना साद
मौलाना साद का पूरा नाम मौलाना मुहम्मद साद कांधलावी है। वह तबलीगी जमात के संस्थापक मुहम्मद इलियास कांधलावी के परपोते हैं। गौरतलब है कि, तबलीगी जमात भारतीय उपमहाद्वीप में सुन्नी मुसलमानों का सबसे बड़ा संगठन है। मौलाना साद के परदादा मौलाना इलियास कांधलावी ने 1927 में तबलीगी जमात का गठन किया था। मौलाना इलियास उत्तर प्रदेश के शामली जिले के कांधला के रहने वाले थे और इसी वजह से वह अपने नाम के साथ कांधलावी लगाते थे।
मुस्लिम समुदाय में है काफी प्रभाव
मौलाना साद, मौलाना इलियास की चौथी पीढ़ी से आते हैं। उनका जन्म 1965 में दिल्ली में हुआ था। मौलाना साद की शुरुआती पढ़ाई मदरसा काशिफुल उलूम, हजरत निजामुद्दीन में हुई और इसके बाद उन्होंने सहारनपुर से आलमियत की डिग्री हासिल की। उनकी शादी 1990 में सहारनपुर के मजाहिर उलूम के मोहतमिम (वीसी) मौलाना सलमान की बेटी से हुई थी। मौलाना साद के बयानों और तकरीरों (उपदेश) को मुस्लिम समुदाय के बीच काफी सुना जाता है। तबलीगी जमात के इज्तिमा में मौलाना साद की एक झलक देखने और उनसे हाथ मिलाने के लिए लोग बेताब रहते हैं।
जमात के विभाजन की कीमत पर खुद को घोषित किया था अमीर
साल 1995 में मौलाना इनामुल हसन के इंतकाल के बाद तबलीगी जमात का अमीर कौन होगा, इसपर विवाद पैदा हो गया। इसके चलते किसी को भी प्रमुख नहीं बनाया गया, बल्कि 10 सदस्यों की जो सूरा कमेटी थी, उसी की देखरेख में जमात का काम चलता रहा। इस कमेटी के ज्यादातर सदस्यों की मौत हो चुकी है। मौलाना जुबैर के 2015 में इंतकाल के बाद सूरा में अब्दुल वहाब बचे थे। इसके बाद तबलीगी जमात में लोगों ने कहा कि कमेटी के जिन सदस्यों की मौत से जगह रिक्त हुई हैं, उन्हें भरा जाए। पर मौलाना साद इसके लिए तैयार नहीं हुए और उन्होंने खुद को तबलीगी जमात का अमीर घोषित कर दिया। इसके चलते तबलीगी जमात में काफी विवाद भी हुआ था। दोनों गुटों के बीच जमकर लाठियां-डंडे चले। ये मामला पुलिस तक भी पहुंचा। इसके बाद ही दूसरे गुट ने मरकज से अलग तुर्कमान गेट पर मस्जिद फैज-ए-इलाही से जमात का काम शुरू कर दिया। हालांकि, मुस्लिम समुदाय का बड़ा हिस्सा जो तबलीगी जमात से जुड़ा हुआ है, वो आज भी निजामुद्दीन स्थित मरकज को ही अपना केंद्र समझता है।
दूसरे गुट ने फैज-ए-इलाही मस्जिद से अलग जमात शुरू की
उधर दूसरी जमात में दस लोगों की एक सूरा कमेटी बन गयी, जो दिल्ली के तुर्कमान गेट पर मस्जिद फैज-ए-इलाही से अपनी अलग तबलीगी जमात चलाती है। मस्जिद फैज-ए-इलाही नाम की जमात में मौलाना इब्राहीम, मौलाना अहमद लाड और मौलाना जुहैर जैसे इस्लामिक स्कॉलर जुड़े हैं। खास बात यह है कि कोरोना संक्रमण के खतरे को भांपते हुए मस्जिद फैज-ए-इलाही ने तबलीगी जमात का काम सरकार की चेतावनी के बहुत पहले एक मार्च को ही बंद कर दिया था। दूसरी ओर, निजामुद्दीन मरकज में जमात का काम हर तरह की ऐहतियात से बेपरवाह रहते हुए जारी रहा। 13 मार्च को ही मौलाना साद ने मरकज में जोड़ का एक कार्यक्रम रखा था, जिसके लिए भारत ही नहीं विदेश से भी काफी लोग आये थे। इसी के चलते लॉकडाउन के बाद भी तबलीगी जमात के मरकज में हजारों की संख्या में लोग मौजूद थे।