लक्ष्मी कान्त द्विवेदी

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंगलवार को एक ऐसी बात कह दी, जो संविधान के विरुद्ध तो है ही, साथ ही अराजकता फ़ैलाने वाली भी है। उन्होंने संविधान की लक्ष्मण रेखा पार करते हुए कहा कि जो लोग बांग्लादेश से आये थे और अब प्रदेश में रहकर चुनावों में वोट दे रहे हैं, वे भारतीय हैं। उन्हेंं देश की नागरिकता पाने के लिए नये सिरे से दोबारा आवेदन करने की जरूरत नहीं है।

नागरिकता के संबंध में कानून बनाने का हक सिर्फ केन्द्र को

गौरतलब है कि, भारतीय गणतंत्र एक संविधान के अनुसार काम करता है, जिसमें केन्द्र और राज्यों की सीमाएं और उनके अधिकार निर्धारित हैं। इनमें कुछ विषय केन्द्रीय सूची में शामिल हैं, जिन पर कानून बनाने का अधिकार केन्द्र का है। कुछ विषय राज्य सूची में शामिल हैं, जिन पर कानून बनाने का अधिकार राज्यों को है और कुछ विषय समवर्ती सूची में हैं, जिन पर कानून बनाने का अधिकार दोनों को है। लेकिन दोनों कानूनों में विरोधाभास होने पर केन्द्र के कानून को वरीयता देने की बात कही गयी है। इसमें नागरिकता के संबंध में कानून बनाने का काम केन्द्र को सौंपा गया है। किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री को यह अधिकार ही नहीं है कि, वह यह तय करे कि कौन नागरिक है और कौन नहीं है। ऐसी स्थिति में उन्हें यह कहने का अधिकार ही नहीं है कि, बांग्लादेश से आये लोग इस देश के नागरिक हैं। जहां तक उनके अब तक के चुनावों में मतदान करने की बात है, तो उन्हें यह पता होना चाहिए कि, फर्जी तरीके से मतदाता सूची में नाम चढ़वाना एक अपराध है, नागरिकता प्राप्त करने का विधिसम्मत तरीका नहीं।

सबने मनमानी शुरू की, तो फैल जाएगी अराजकता

ममता दीदी का यह कथन अनुशासनहीनता और अराजकता फ़ैलाने वाला भी है, क्योंकि यदि वह आज केन्द्र के अधिकार क्षेत्र में दखल देंगी, तो हो सकता है कि कल कोई स्थानीय निकाय भी राज्य सरकार के किसी कानून के खिलाफ कोई नियम बना दे। उस स्थिति में वह उसे अनुचित और अवैध कैसे बता सकेंगी? यही नहीं कल को यदि केन्द्र सरकार ने भी राज्य सूची के किसी विषय पर कानून बना दिया, तो देश में संविधान के हिसाब से काम करना असंभव हो जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करना बेहतर

अब यदि यह कहा जाए कि, केन्द्र सरकार ने नागरिकता कानून से मुस्लिमों को बाहर रख कर धार्मिक आधार पर भेदभाव कर संविधान के विरुद्ध कार्य किया है, तो उक्त कानून संविधानसम्मत है या नहीं, यह तय करने का अधिकार उच्चतम न्यायालय का है, जहां इस पर याचिका पहले से लम्बित है। इस संबंध में अदालत में अपनी बात कहना और उसका फैसला आने तक इंतजार करना ही सबसे उपयुक्त तरीका है। वैसे क्या ममता बनर्जी इस बात से इनकार कर सकती हैं कि, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में इस्लामी शासन है और वहां के अल्पसंख्यकों को धार्मिक कारणों से घोर कष्ट उठाना पड़ता है। ऐसी हालत में उन्हें राहत देने के लिए कानून बनाने में क्या बुराई है? चूंकि मुस्लिम तबके को उस आधार पर प्रताड़ना नहीं झेलनी पड़ती, अतः उन्हें इस कानून से अलग रखना गलत कैसे हैं? दरअसल यह सारी स्थिति के लिए जिम्मेदार भारत नहीं, बल्कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में धर्म के नाम पर अल्पसंख्यकों पर हो रहा घोर अत्याचार है। साथ ही इस बात पर भी विचार किया जाना चाहिए कि, क्या सीएए का विरोध करते समय जाने-अनजाने उसी अत्याचार पर पर्दा डालने या समर्थन करने की कोशिश नहीं की जा रही है? क्योंकि कहीं शरण न मिलने की स्थिति में उन्हें वापस उन्हीं लोगों के हवाले करना होगा, जो उनकी जान के दुश्मन बने हुए हैं। ऐसे लोगों की तुलना घुसपैठियों से कैसे की जा सकती है?

दिल्ली हिंसा को लेकर मोदी सरकार पर साधा निशाना

ममता बनर्जी ने हाल ही में दिल्ली में हुई हिंसक घटनाओं को लेकर केंद्र की मोदी सरकार पर भी निशाना साधा। दिल्ली में 42 से ज्यादा लोगों के मारे जाने को लेकर उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार हिंसा को रोकने में नाकाम रही, मैं बंगाल का हाल दिल्ली जैसा नहीं होने दूंगी।

एक सार्वजनिक बैठक में उन्होंने कहा कि, जो लोग बांग्लादेश से आये हैं, वे भारत के नागरिक हैं… उन्हें नागरिकता मिल चुकी है। आपको फिर से नागरिकता के लिए आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है। आप चुनावों में वोट डाल रहे हैं, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री का चुनाव कर रहे हैं… अब वे कह रहे हैं कि आप नागरिक नहीं हैं… ऐसे लोगों पर विश्वास मत करो। 

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