विशेष संवाददाता
जानलेवा कोरोना वायरस से बचाव के लिए देश भर में लागू किया गया लॉकडाउन पहले से ही गंभीर बीमारियों से जूझ रहे मरीजों के लिए मौत का सबब बनता जा रहा है।
लॉकडाउन के चलते दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) परिसर के आसपास मौजूद फुटपाथ पर दर्जनों की संख्या में गंभीर रोगों से पीड़ित मरीज अपनी जिंदगी बिताने को मजबूर हैं। इनमें कैंसर जैसे जानलेवा बीमारी से पीड़ित लोग भी शामिल हैं। अन्य शहरों में भी लगभग ऐसे ही हालात हैं।
कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी और डायलिसिस जैसी जीवनरक्षक सेवाएं बंद
गौरतलब है कि, कोरोना वायरस से बचाव की तैयारियों के नाम पर तमाम अस्पतालों में ओपीडी सेवाएं बंद कर दी गयी हैं। यहां तक कि कैंसर रोगियों को दी जाने वाली कीमोथेरेपी एवं रेडियोथेरेपी और गुर्दे के रोगियों की डायलिसिस जैसी प्राणरक्षक सेवाएं भी बंद कर दी गयी हैं। डॉक्टरों का कहना है कि, अस्पतालों में कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा है, क्योंकि कोरोना वायरस से संक्रमित लोग पहले सामान्य मरीज के रूप में भी अस्पताल पहुंचते हैं। जांच रिपोर्ट पाज़िटिव आने के बाद ही उनके कोरोना पीड़ित होने का पता लगता है और उसके बाद ही उन्हें क्वारंटाइन करने या आइसोलेशन वार्ड में भेजने का फैसला किया जाता है। लेकिन इसके पहले तक वे भी आम लोगों की तरह मरीजों के बीच रहते हैं, जिससे उनके संक्रमित होने का खतरा बढ़ जाता है। इसी वजह से ओपीडी सेवाएं बंद कर दी गयी हैं। लेकिन इसके कारण बड़ी संख्या में मरीज समुचित इलाज से वंचित हो गये हैं। इलाज न हो पाने से भी उनका जीवन खतरे में पड़ गया है।
दवा-इलाज तो दूर, एक वक्त रोटी मिलना भी मुश्किल
इन मरीजों का कहना है कि लॉकडाउन की वजह से आसपास की तमाम दुकानें बंद हैं। धर्मशाला और रैन बसेरा में उनके लिए जगह नहीं बची है। इन मरीजों को दवा-इलाज तो दूर कई बार एक वक्त की रोटी भी मुश्किल से नसीब हो पा रही है। एक मरीज ने बताया कि वह गले के कैंसर से पीड़ित है। आसपास की दुकानें बंद हैं, जिसकी वजह से खाने-पीने की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। एम्स की जिरियाटिक मेडिसन विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. विजय गुर्जर ने अपने फेसबुक और ट्विटर अकाउंट पर इन मरीजों का दर्द साझा किया है। डॉ. विजय गुर्जर ने ऐसे मरीजों से बातचीत के वीडियो भी साझा किये हैं, जिसे लोग शेयर कर रहे हैं। ऐसे ही एक वीडियो में एक मरीज बता रहा है कि, वह एक सांसद के यहां रहते थे, लेकिन कोरोना वायरस के डर से उन्हें वहां से निकाल दिया गया। अब वे एम्स के आसपास फुटपाथ पर जिंदगी गुजारने के लिए मजबूर हैं। उन्होंने रैन बसेरा और आसपास की धर्मशालाओं में भी संपर्क किया, लेकिन भीड़ ज्यादा होने की वजह से उन्हें वहां रहने के लिए जगह नहीं मिली। डॉ. विजय गुर्जर ने कहा लॉकडाउन की वजह से ऐसे सैकड़ों मरीज पिस रहे हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए लॉकडाउन जरूरी है, लेकिन सरकार को निचले तबके के लोगों का भी ध्यान रखना चाहिए, ताकि ये लोग जरूरतें पूरा न होने की वजह से पलायन के लिए मजबूर न हों।
वृद्ध आश्रम जाकर बुजुर्गों की मदद कर रहे डॉक्टर
कोरोना वायरस संक्रमण का सबसे अधिक खतरा बुजुर्गों को होता है। इसी वजह से कुछ प्रोफेसर हेल्दी एजिंग इंडिया के सहयोग से वृद्ध आश्रमों में जाकर मरीजों की जांच कर रहे हैं और उन्हें कोरोना वायरस से बचने के बारे में जागरूक कर रहे हैं। एम्स के डॉ. प्रसून चटर्जी ने बताया कि, वे और उनके साथी एवं हेल्थी एजिंग इंडिया के स्वयंसेवक अभी तक दिल्ली और उसके आसपास के 27 वृद्ध आश्रमों में जा चुके हैं।