पदम पति शर्मा

पिछले एक दो महीने से काशी से इन्दौर महाकाल एक्सप्रेस के बार मे बहुत कुछ सुना, पढा और देखा जा रहा था। दावा किया गया कि यह कारपोरेट ट्रेन यात्री को तीन ज्योतिर्लिंगों काशी विश्वनाथ, उज्जैन मे विराजमान महाकाल और इन्दौर के पास नर्मदा के तट पर स्थित ओकारेश्वर के दर्शन कराएगी।

दो राय नही कि यह अवधारणा अति उत्तम थी। देश की इस दूसरी निजी ट्रेन को संचालित करने वाली आईआरसीटीसी ने भिन्न पैकेज भी बनाए। लेकिन क्या उसने तीर्थयात्रियों की सुख सुविधा को पहली वरीयता दी ? यह करोड टके का सवाल है। जहां तक सुख सुविधा का सवाल है तो बेशक यह नवजवानों के लिए पिकनिक कम तीर्थ यात्रा जरूर है।

तीर्थयात्री मायने सीनियर सिटीजन अर्थात जीवन की साँझ जो देख रहे हैं, जो अशक्त हैं और जो दिव्यांग है। रेलवे को उन पर सबसे ज्यादा फोकस रखना चाहिए था। लेकिन दुख के साथ कहना पड रहा है कि चौथे पहर वालों सहित परिधि मे आने वाले उक्त सभी को हाशिए पर रखा गया। कैसे ? चलिए बताते हैं।

1- यह ट्रेन वाराणसी से प्लेटफार्म नंबर सात से रवाना होती है जबकि इसके लिए प्लेटफार्म नंबर एक सबसे मुफीद रहता । चलिए तकनीकी कारणों से ऐसा नहीं किया जा सका। क्या वरिष्ठ नागरिकों के लिए लिफ्ट के बाहर व्हीलचेयर का प्रबंध किया गया ? गनीमत है कि लिफ्ट चल रही थी। स्वचालित सीढी खराब थी। लिफ्ट से बाहर निकलने पर यात्री को पैदल चलने के बाद सीढियों से उतरना कष्टदायी था ही उससे ज्यादा वेदना तो कोच तक पहुचने मे है। मै कोई धन्ना सेठ नहीं एक मामूली पत्रकार हूं मगर पत्नी के घुटनों की तकलीफ के चलते दशकों से विमान यात्रा करनी पडती है। क्योकि व्हील चेयर मिल जाती है और वह गंतव्य तक पहुँचने पर कार या टैक्सी तक साथ देती है। चेन्नई और हावड़ा जैसे अपवाद हैं जहाँ आपको गोल्फ कार्ट मिल जाती है। मगर वाराणसी जैसा स्टेशन जिसके साथ पीएम मोदी जी का नाम जुडा हुआ है, यह सुविधा आजतक प्रतीक्षित है। विमला की तो लिफ्ट सा ट्रेन की बी सेवेन कोच तक पहुचने मे हालत इतनी खराब हो गयी कि उसको सांस लेने में तकलीफ होने लगी। आधा घंटा लग गया उसको सामान्य होने में।

2 वाशरूम बेहतर हैं निस्संदेह मगर यहाँ भी सीनियर सिटीजन का ध्यान नहीं रखा गया। चार मे सिर्फ एक मे कमोड शेष सभी देसी। यदि आपकी बर्थ पहले केबिन की है तो आपको वहां जाने के लिए द्रविड़ प्राणायाम करना होगा। होना चाहिए दोनो छोर पर एक एक कमोड।

3-अपर बर्थ के लिए चढने का इन्तजाम किया है बजाय सीडी के जैसा कि प्रथम श्रेणी के कोच मे यह व्यवस्था है। क्या आईआरसीटी ने किसी वृद्ध को चढा कर इसका प्रयोग किया था ? ‘पंगु गिरि लंघे’ वाला मामला है। चलिए फिलहाल अभी नयी नयी ट्रेन है तो लोअर बर्थ मिल जाती है। मगर यात्री पानी की बोतल कहाँ रखे यह विकट समस्या है। बोतल होल्डर नाम का ही है। सच तो यह है कि जहाँ ट्रेन ने गति पकडी बोतल लुढक कर फर्श पर। बेहतर होता कि जैसी मिडिल और अपर बर्थ मे सुविधा है, वैसी ही लोअर बर्थ वालों को मिलती उनके सिरहाने।

4- ट्रेन मे कम से कम एक प्रथम श्रेणी और एक द्वितीय श्रेणी शयनयान होना चाहिए

5- यह ट्रेन भोर में पांच बजे वाराणसी पहुंचती है। फिलहाल बिफोर चल रही है। जरा कल्पना कीजिए कि साढे चार बजे उनीदी आखों से जब यात्री उतरेगा, उसको कितना कष्ट होता होगा। समय साढे छह का हो तो कम से कम नींद तो पूरी होगी।

6- खाना और नाश्ता बेहतर लेकिन न जाने परांठे की प्रेत बाधा से कब मुक्ति मिलेगी। काश रोटी की वैकल्पिक व्यवस्था की जाती तो वृद्ध यात्री कितना सहज होकर खाता। छोटे दो पराठो की जगह चार या तीन रोटी होती। जरा मैन्यू देखे रेलवे चार दशक पहले का कि जिसमें आठ से दस आयटम होते थे। तीन रोटी और एक मिस्सी। सलाद, पापड, चटनी, दो तीन तरह की सब्जी। नाश्ते मे भी दो कचौरी और दो मोटी सोनपपडी खाना भी वृद्ध के लिए कम समस्या नही। एक कचौरी के साथ सुपाच्य कुछ हो तो बेहतर। चने की चटपटी दाल जायकेदार है।

बेडरोल फिलहाल स्तरीय है मगर कब तक रहेंगे, समय देगा इसका उत्तर।

कुल मिला कर यही कहना होगा कि इस ट्रेन को सही मायने में तीर्थयात्री फ्रेन्डली बनाइए। ट्रेन पर चढने उतरने को ज्यादा सुविधाजनक बनाइए। वृद्ध, अशक्त, दिव्यान्ग को चोटी की वरीयता दीजिए तभी यह ट्रेन अपने नाम को सार्थक करेगी।

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