अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी ने मुल्क छोड़ दिया है, लेकिन उनके भाई हशमत अभी भी काबुल में हैं। प्रभावशाली अफगानी नेता और बिजनेसमैन हशमत ने कहा कि उन्होंने तालिबानी हुकूमत को स्वीकार कर लिया है, लेकिन तालिबान में शामिल नहीं हुए हैं। अशरफ 15 अगस्त को अफगानिस्तान से फरार हो गए थे और अभी वे UAE में हैं।
मीडिया हाउस विऑन को दिए इंटरव्यू में हशमत ने वो वजह बताई, जिसके चलते अशरफ गनी ने अफगानिस्तान छोड़ा। हशमत ने कहा कि उनके भाई को कत्ल करने की साजिश रची जा रही थी, ताकि काबुल की सड़कों पर खूनखराबा हो और कुछ रिटायर्ड वारलॉर्ड अपनी चालें चल सकें।
मीडिया से बातचीत के दौरान हशमत ने कहा कि ये गलतफहमी है। मैंने उनकी हुकूमत को कुबूल कर लिया है, लेकिन मैं उनके साथ नहीं हूं, मैंने ये स्वीकार नहीं किया है। मैंने खूनखराबे से बचने के लिए उनका शासन स्वीकार किया है। मैं अपने शिक्षित और कारोबार कर रहे कबीलेवालों की सुरक्षा के लिए रुका हूं। मैं तालिबान को जॉइन नहीं करूंगा। मैं मुल्क में रहूंगा, ताकि तालिबान और उन लोगों के बीच एक पुल का काम सकूं, जिन्हें पता है कि मुल्क को कैसे चलाया जाता है, व्यापार को कैसे चलाते हैं। ऐसा इसलिए, ताकि मुल्क बर्बाद न हो, यहां भुखमरी न हो। अभी मेरा यही बयान है।
उन्होंने कहा कि, सुरक्षा को लेकर इन लोगों ने बहुत अच्छा काम किया है। समस्या केवल तालिबानियों और अमेरिकी फौजों के बीच सहयोग की है। मैंने एक प्रस्ताव दिया है और दोनों ही इस पर राजी नजर आते हैं। हम दखल दे रहे हैं, ताकि लोग सम्मान के साथ अफगानिस्तान छोड़ सकें। हम ऐसी व्यवस्था तैयार कर रहे हैं, जिसमें किसी को कत्ल न किया जाए, किसी की बेइज्जती न की जाए और कोई दर्द में ये मुल्क न छोड़े। जहां तक रोजमर्रा की चीजों के दामों की बात हैं, ये लगातार बढ़ रहे हैं, क्योंकि बैंकिंग सेक्टर नहीं है। अमेरिकी मदद बंद हो गई है। इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि तालिबानियों ने केवल अमेरिकी मदद को ही ठप नहीं कर दिया है, उन्होंने अफगानिस्तान का नेशनल रिजर्व भी रोक दिया है, जो यहां के आम आदमियों का है।
हशमत ने कहा कि भारत अभी अफगानिस्तान में पाकिस्तान का बहुत मजबूत रोल देख रहा है और इसे कोई नकार भी नहीं सकता है। समझदारी के साथ ही भारत अभी पीछे हट गया है। मैंने तालिबान से साफतौर पर कह दिया है कि भारत, ईरान, सेंट्रल एशिया, रूस जैसे देशों के साथ अंतरराष्ट्रीय और व्यापारिक संबंध अफगानी समुदाय और व्यापार के लिए जरूरी हैं। खासतौर से इस मौसम में अफगान के फल और ड्रायफ्रूट व्यापार के लिए ये बेहद अहम हैं। यहां भारत और पाकिस्तान दोनों के दूतावासों का होना जरूरी है। अगर ये होगा तो ऐसा नहीं कहा जा सकेगा कि हमारी जमीन का इस्तेमाल किसी दूसरे मुल्क के खिलाफ किया जा रहा है। हम तटस्थ देश होना चाहते हैं।
हशमत ने कहा, अशरफ गनी के खिलाफ साजिश रची गई थी। निश्चित तौर पर वो इस बारे में जानकारी देंगे। अभी वो ऐसा नहीं कर पा रहे हैं, लेकिन मुझे पता है कि वो आपको बताएंगे। कुछ लोग उनका कत्ल करके खूनखराबा मचाना चाहते थे। कुछ वारलॉर्ड चाहते थे कि वो फायदा उठा सकें, लेकिन अशरफ गनी ने मुल्क छोड़ दिया और ये सारी चीजें नहीं हुईं। उन्होंने काबुल को खून खराबे से बचा लिया।
उन्हें कौन मारना चाहता था, इस पर उन्हें ही जानकारी देने दीजिए। जब वो UAE से बाहर निकलेंगे और ऐसे मुल्क में होंगे, जहां राजनीतिक बयान दे सकें, वो जानकारी देंगे।
मुझे लगता है कि भारत और अफगानियों के रिश्तों पर तालिबानी हुकूमत का फर्क नहीं पड़ेगा। राजनीति आती-जाती रहती है, पर लोग हमेशा रहते हैं। एक दिन हम भारत, पाकिस्तान और सेंट्रल एशिया के बीच सामान्य राजनीतिक संबंध देखेंगे। 30-40 करोड़ लोगों को जिंदगी और भविष्य मिलेगा। वो एक-दूसरे पर बंदूकें ताने नजर नहीं आएंगे।