हिंदु धर्म में मां दुर्गा की आराधना करने वाले श्रद्धालुओं के लिए चैत्र नवरात्रि का बहुत महत्‍व होता है। इस नवरात्रि में लोग अक्‍सर शक्तिपीठों के दर्शन कर मां से अपनी मनोकामना पूरी होने की प्रार्थना करते हैं। हिंदू धर्म के अनुसार शक्तिपीठ यानी वो पवित्र जगह जहां पर देवी के 51 अंगों के टुकड़े गिरे थे। ये शक्तिपीठ भारत के अलावा, बांग्‍लादेश, पाकिस्‍तान, चीन, श्रीलंका और नेपाल में फैले हुए हैं। जी हां, चीन के कब्‍जे वाले तिब्‍बत में एक शक्तिपीठ है। एक तो बलूचिस्‍तान में भी है।

कैलाश पर्वत के करीब

चीन के कब्‍जे वाले तिब्‍बत में जो शक्तिपीठ है वो कैलाश पर्वत के करीब है और पत्‍थर की शिला के रूप में है। यह शक्तिपीठ मनसा शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता है। यह पवित्र मानसरोवर झील के पीछे ही स्थित है। कहते हैं यहां पर माता सती का दायां हाथ गिरा था। माता यहां पर देवी दाक्षायनी के रूप में मौजूद हैं। कहते हैं कि दक्षियाणी माता ने दक्ष यज्ञ को नष्‍ट किया था। यहां माता सती को ‘दाक्षायनी’ और भगवान शिव को ‘अमर’ के रूप में जाना जाता है। इसे हिंदु धर्म के अनुयायी धरती पर सबसे पावन स्‍थल के रूप में मानते हैं। वो कहते हैं कि इस जगह के दर्शन करने से हर इच्‍छा पूरी होती है।

हर साल रहती है भीड़

यहां पर देवी का कोई मंदिर नहीं है सिर्फ एक बड़ा सा पत्‍थर स्थित है। लोग इसी पत्‍थर की पूजा करते हैं। विष्‍णुपुराण के मुताबिक कैलाश पर्वत की चोटियां क्रिस्‍टल, रूबी, सोने और नीले रंग के बहुमूल्‍य पत्‍थर से बनी हैं। इस जगह पर सिंधु, सतलज, ब्रह्मपुत्र जैसी नदियां बहती हैं। न केवल नवरात्र, बल्कि साल के बाकी दिनों में भी अगर मौसम ठीक रहता है तो यहां दर्शन करने वालों की भीड़ रहती है। तिब्बती धर्मग्रंथ ‘कंगरी करछक’ में मानसरोवर की देवी ‘दोर्जे फांग्मो’ का यहां निवास कहा गया है।

क्‍या है राक्षस ताल

कहते हैं कि भगवान देमचोर्ग, देवी फांग्मो के साथ यहां पर रोजाना विचरण करने आते हैं। ‘कंगरी करछक’ में मानसरोवर को ‘त्सोमफम’ कहते हैं। इसके पीछे मान्यता है कि भारत से एक बड़ी मछली आ कर उस सरोवर में तैरते हुए दाखिल हुई थी। इसी से इसका नाम ‘त्सोमफम’ पड़ गया। मानसरोवर के पास ही राक्षस ताल है, जिसे ‘रावण हृद’ भी कहते हैं।

मानसरोवर का जल एक छोटी नदी द्वारा राक्षस ताल तक जाता है। तिब्बती इस नदी को ‘लंगकत्सु’ यानी ‘राक्षस नदी’ भी कहते हैं। जैन-ग्रंथों के अनुसार रावण एक बार ‘अष्टपद’ की यात्रा पर आया और उसने ‘पद्महद’ में स्नान करना चाहा, किंतु देवताओं ने उसे रोक दिया। तब उसने एक सरोवर, ‘रावणहृद’ का निर्माण किया और उसमें मानसरोवर की धारा ले आया तथा स्नान किया। यह जगह भले ही चीन के कब्‍जे में हो लेकिन आज भी भारत के श्रद्धालुओं के लिए बहुत पावन है।

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