रतन सिंह

24 घंटे पहले भारत की हालत को लेकर दोस्तों में पुजारा की धीमी बैटिंग पर बहस चल रही थी। टेस्ट क्रिकेट में टिककर खेलने की महत्ता जानते हुए हस्तक्षेप नहीं कर पाया। यह भी सच है कि कई कंटक हालात में कपड़ा उतार बल्लेबाजी काम आई है। पंत ने पहले यही किया जब सुबह हार दिख रही थी। उनके काउंटर अटैक ने ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजी की गर्मी उतार दी और फिर जब तक वह तेवर कायम करती। पुजारा, विहारी और अश्विन की तिकड़ी मुकाबले को अपनी ओर खींच ले गई। 407 का लक्ष्य तो नहीं मिला, लेकिन 5 विकेट पर 335 के स्कोर पर दोनों टीम ने सफेद झंडी ऊपर की तो तालियां भारत के लिए एससीजी पर बज रहीं थीं। हां, मेजबानों ने चार कैच गिरा कर खुद को जीत से महरूम किया, जिसमें तीन कप्तान पेन ने टपकाए।

पंत के लिए यह साफ हो गया कि उन्हें बतौर बल्लेबाज़ खिलाया जाए। कीपिंग साहा के लिए फिलहाल है। पंत एक ही तरह से खेलना जानते हैं और इसकी छूट उन्हें मिले। उनकी 117 गेंदो पर 97 रन की तूफानी पारी दल को जिता नहीं सकी तो भी इसने टीम को मैच बचाने का माद्दा तो दे ही दिया। उन्हें सेंचुरी बनानी चाहिए थी। जल्दबाजी से बचना भी सीखना होगा।बचे रहते तो कहानी कुछ और भी होती।

रही बात पुजारा की तो वह भी एक ही तरह से खेलते हैं और इसी के लिए उनकी टीम में अहमियत है। राहुल द्रविड़ को आज जन्मदिन पर बधाई दी जा रही है तो उनके पदचिन्हों पर चल रहे पुजारा की आलोचना अहसान फरामोशी होगी। उनकी 205 गेंदों पर 77 रनों की पारी ने भारत को सुरक्षित किया था। हालांकि उनके आउट होने के बाद भारत को 49 ओवर खेलना था, लेकिन हनुमा विहारी औऱ अश्विन ने संघर्ष दिखाकर भारत को सिरीज़ में बनाये रखा। विहारी संभव है टीम की सेटिंग में अपना स्थान न बचा सकें, लेकिन पैर की चोट के बावजूद जो जुझारूपन दिखाया, उसने उनके कटु आलोचकों को भी चुप करा दिया है। गजब का धैर्य दिखाया। तीन रन पर वह खड़े रहे और तीन दर्जन से ज्यादा गेंद बिना रन के खेले। याद रखिये हम 20-20 के ज़माने में हैं। यहां ये भी रवैया रखना खेल नहीं है। हाथ में ही नहीं, दिमाग में भी खुजली होने लगती है। विहारी अपनी 161 गेंदों पर 23 रनों की पारी सहेज कर रखेंगे, भले किसी 20-20 के फैन को यह याद रहे या नहीं। 1980-81 में यशपाल शर्मा ने 157 गेंदों पर 17 रन की पारी खेली थी तब उनकी तारीफ हुई थी। आश्विन ने चोट खाकर भी विकेट विपक्षी को नहीं दिया और 128 गेंदों पर 39 रन की पारी खेलकर सिर उठाये लौटे तो साथियों ने गरमजोश स्वागत किया। रहाणे के उस चेहरे पर राहत दिखी जो सुबह दो के स्कोर पर चलता होने के बाद से खिंचा हुआ था।

बात पिच की हो। इसने अपने व्यवहार से चकित किया। तीसरे दिन यह असमान उछाल दिखा रही थी तो लगा कि बचे दो दिन में न जाने क्या होगा। लेकिन यह बेहतरीन रही। बल्लेबाजों के मनमाफिक। मेजबान ऑफ स्पिनर लॉयन निराश होंगे कि वो दल को जीत नहीं दिला सके। यहां उनमें विविधता की कमी दिखी। अश्विन उनकी जगह होते तो काम कर जाते। स्मिथ को मैच का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी चुना जाना ही था

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