डाक्टर रजनीकांत दत्ता
पूर्व विधायक शहर दक्षिणी
वाराणसी ( यूपी )

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से किसी ने पूछा कि बाबू आप तो सर्वधर्म समभाव में विश्वास रखते हैं तो बताएं कि आप किस धर्म के अनुयाई हैं? बापू बोले- मैं मनसा, वाचा, कर्मणा सनातन धर्म का अनुयाई हूं जो पुनर्जन्म में विश्वास रखता है और जिसकी फिलॉस्फी philosophy है कि हर सनातन धर्म मानने वाले का कुटुंब पूरा विश्व है और वह जो भी कार्य करता है वो दुनिया में रहने वाले हर व्यक्ति के हित और सुख के लिए होता है। चाहे उसका धर्म, जाति और देश कोई भी हो।

▪️एक बार लॉर्ड माउंटबेटन ने बापू से पूछा कि मिस्टर गांधी अगर आपके सामने दो विकल्प हो कि स्वराज्य और गो वध निषेध कानून तो आप किसे प्राथमिकता देंगे? तब गांधीजी ने कहा कि मैं गो वध निषेध के कानून को प्राथमिकता दूंगा, आजादी तो हम कालांतर में आपसे ले ही लेंगे।

▪️राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ये मानते थे कि हिंदुस्तान में रहने वाला हर व्यक्ति भारतीय है। चाहे वह हिंदू ,मुसलमान ,सिख, ईसाई पारसी ,बौद्ध या जैन ही क्यों न हो सवर्ण या दलित ही क्यों ना हो । उसके बिना भारत की कल्पना ही नहीं की जा सकती। इसलिए वो आजादी के नाम पर देश के विभाजन के प्रचंड विरोधी थे। उनका कहना था कि अगर ये विभाजन होता है तो वह उनकी लाश पर होगा।

कहते है कि कालचक्र अपने को दोहराता है। द्वापर में धृतराष्ट्र का पुत्र दुर्योधन हुआ था और कलियुग में महात्मा गांधी का मानस पुत्र जवाहरलाल नेहरू। उसने हिंदुस्तान को जितना नुकसान पहुंचाया शायद वह जयचंद और मीर जाफर ने भी नहीं पहुंचाया होगा। हां उसकी तुलना उनके नाती की पुत्र वधू इटालियन मूल की फासिस्ट नाजी परिवार की एंटोनियो माइनो सोनिया गांधी से की जा सकती है। इसी क्रम में यदि दो ऐतिहासिक बिंदुओं को आपके संज्ञान में नहीं लाता हूं तो वार्ता अधूरी रह जाएगी।

(1) 1930 में लाहौर अधिवेशन में सार्वजनिक मंच पर मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा था कि मुसलमान एक कौम है जिसका धर्म, कर्मकांड, रहन-सहन, खान-पान, रीति रिवाज, बोलचाल की भाषा, पहनावा एवं संस्कार भारत में रहने वाले बहुसंख्यक हिंदुओं से भिन्न है। ब्रिटिश साम्राज्य की देखरेख में एक एथिनिक रेस होने के बावजूद हम मुसलमानों ने इसे बर्दाश्त किया। अगर भारत को आजादी मिलती है तो हमें अपना एक अलग इस्लामिक देश चाहिए जहां भारत के सभी मुसलमान रहेंगे। तत्पश्चात 1946 में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग ने हिंदुस्तान में फैली हुई अपनी सभी जमातों का जनमत संग्रह कराया कि वह अखंड भारत में रहना चाहते हैं या अलग इस्लामिक राज्य की मांग करते हैं तो 485 में से 425 इकाइयों ने इस्लामिक राष्ट्र की मांग करते हुए हिंदुस्तान से अलग रहने की बात की। लेकिन जब हिंदुस्तान आजाद हुआ तो इनमें से 2% ही पाकिस्तान गए और 98% जिन्होंने हिंदुस्तान के विभाजन की बात कही थी और हिंदुस्तान में रहने से इंकार किया था ववे हिंदुस्तान में ही रह गए।अब देखिए राजनीतिक दोगलापन कि वे कहते हैं कि जब 7 करोड़ थे तो हंस के लिया था पाकिस्तान, अब तो 30 करोड़ है तो जबरदस्ती ले लेंगे हिंदुस्तान। मैं इस बात से सहमत नहीं हूं क्योंकि मैं जानता हूं कि 80% अल्लाह वाले मुसलमान उसी तरह देश भक्त हैं जैसे हिंदुस्तान का अन्य कोई भी नागरिक और 20% जो मुल्ला वाले मुसलमान हैं और मुस्लिम ब्रदरहुड अवधारणा के तहत आतंकवादी मानसिकता रखते हैं, वामपंथी विचारधारा के कठमुल्ला हैं वही ऐसा सोचते हैं। यहां ये भूलना नहीं चाहिए कि हमारे अपने इन मुसलमान भाइयों के पूर्वज सदियों पहले हमारे पूर्वजों की तरह सनातन धर्मी भारतीय थे। जिन्होंने तलवार के डर से सलवार पहन ली थी। मेरे प्यारे देशवासियों यह पुनर्जागरण हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ यानी कि अंधेरे से प्रकाश की तरफ प्रस्थान। विकृत राष्ट्रीय मानसिकता के खिलाफ राष्ट्र के प्रति समर्पण। यानी कि चाहे वह हिंदू हो, चाहे वह मुसलमान या और कोई इंडियन हिंदू है, इंडियन मुसलमान है। अपने धर्म को मानते हुए भी राष्ट्र और उसकी स्मृति, एकता और अखंडता और सार्वभौम विकास को समर्पित।

(2) अब मैं श्रीमती इंदिरा गांधी जी के कालखंड की बात करूंगा। वो एक दृढ़ निश्चयी राष्ट्रवाद को समर्पित आयरन लेडी थी। जिन्होंने सिंडीकेट कांग्रेस के अस्तित्व को समाप्त कर इंडियन कांग्रेस की स्थापना की। पूर्ण बहुमत से सत्ता में वापस आई और बांग्लादेश की लड़ाई में अमेरिका के सातवें सामुद्रिक बेड़े की धौस के बावजूद उन्होंने पाकिस्तान को धूल ही नहीं चटाई बल्कि 90 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को भारतीय सेना के सामने हथियार डालने पर बाध्य करते हुए पराजित किया। यही नहीं इसके पहले उन्होंने राजाओं का प्रिवी पर्स समाप्त किया, बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया और देश को नारा दिया कि वे कहते हैं ‘इंदिरा हटाओ और इंदिरा कहती हैं गरीबी हटाओ’। इस कारण पूरी दुनिया उनकी सामर्थ्य का लोहा मानने लगी और उनके नेतृत्व में आस्था व्यक्त करने लगी। स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई ने तो ने उन्हें 1971 में वाराणसी के टाउन हाल में हुई सार्वजनिक सभा के दौरान माँ दुर्गा का अवतार तक कह डाला और देशवासियों ने “Indira is India And India is Indira” तक कहा।यही नहीं उनका दाहिना हाथ उनका कनिष्ठ पुत्र संजय गांधी कुछ अवधारणाओं को छोड़ सही मायने में राष्ट्रवादी, दूरदृष्टि और दृढ़ संकल्प वाला प्रशासक था। उसी ने यह नारा दिया था कि हम और हमारे दो, दूर दृष्टि, पक्का इरादा और कठिन परिश्रम के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं।

द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद दुनिया दो खेमों में बंट चुकी थी।एक रूस और उसके मित्र राष्ट्रों का। दूसरा अमेरिका और उसके मित्र राष्ट्रों का और तीसरा एक और गुटनिरपेक्ष देशों का खेमा उबाल ले रहा था जिसने श्रीमती इंदिरा गांधी को अपना निर्विवाद नेता स्वीकार कर लिया था जो सोवियत संघ और अमेरिकन खेमे को कतई बर्दाश्त नहीं था। तभी राजीव गांधी की पत्नी के रूप में एंटोनियो माइनो सोनिया का नेहरू-गांधी परिवार में प्रवेश होता है और शुरू हो जाती है वह कूटनीति जिसमें देश के प्रति समर्पित पहले संजय गांधीजी का वायु दुर्घटना में मृत्यु होती है फिर इंदिरा गांधी जी अपने ही सुरक्षाकर्मियों के हाथों मौत के घाट उतार दी जाती हैं और 1991 में दक्षिण भारत में चुनाव प्रचार करते समय मानव बम से राजीव गांधी जी की हत्या करा दी जाती है। धीरे-धीरे रास्ता साफ होता है और 2004 में जब इटालियन मूल की महिला होने के कारण सोनिया गांधी प्रधानमंत्री नहीं बन पाती हैं तो वह कांग्रेस संगठन को अपने शिकंजे में कस कर उसकी अध्यक्षा बन जाती हैं और रबर स्टाम्प के रूप में मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बना देती हैं और बिना जवाबदेही खुद शासन करती है। 2004-2014 का दौर आपको याद ही होगा।अब 2014-2020 का दौर सोनिया गांधी, उनके पुत्र राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा के देशहित और देश विरोधी कार्यों का मूल्यांकन करिए। अक्लमंद को इशारा काफी होता है। एक बार गलती के बाद दूसरी बार भी वैसी गलती की जाए एक प्रबुद्ध राष्ट्र और उसके भाग्यविधाता द्वारा फिर कुछ ऐसा कभी होने नहीं देंगे। चाहे वो बहुदलीय प्रजातंत्र हो या पंडित नेहरू द्वारा जन मथाई जैसे लोगों को लेकर बनवाया गया संविधान जिसमें आर्टिकल 35a है कॉन्स्टिट्यूशनल फ्रॉड हो और तुष्टिकरण की राजनीति के तहत यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट न हो आदि आदि पर भी सार्थक विचार करना होगा। आगे आप खुद समझदार हैं। महात्मा गांधी, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, श्यामा प्रसाद मुखर्जी आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन स्वर्ग में बैठे हुए वो यह जरूर सोच रहे होंगे कि हमारे बलिदानों का देश को क्या सिला दिया जा रहा है? वंदे मातरम

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