के.एन गोविंदाचार्य*
चिंतक-विचारक

इस बीच आत्मनिर्भरता शब्द उभरा है| शब्द दोहराने से ज्यादा महत्वपूर्ण है इसके अर्थ को जीना | अर्थ को समझा जाय, तब जिया जाय । तभी तो उस शब्द का अर्थ कुछ मायने रखेगा |
अन्यथा यह “शब्दजाल”, या शब्द “छल” का माध्यम बन जायेगा | इससे सावधान रहकर कदम बढाने की जरुरत है | अन्यथा संस्कृत की वह उक्ति लागू होगी “विनायकं प्रकुर्वाणो रचयामास वानरः”| जानदार संकल्प केवल नारा बनकर रह जाता हैं |

यही हश्र डिमाक्रेसी, सेकुलरिज्म, सोशलिज्म का हुआ । यह प्रक्रिया सभी जगह और सभी काल में घटित होती है |

एक राही कस्बे के सड़क पर कहीं जा रहा था | पेड़ पर बैठी एक चिड़िया सुरीली आवाज मे कुछ बोल रही थी| राही को उत्सुकता हुई कि चिड़िया क्या बोल रही है? मंदिर का एक पुजारी उस रास्ते जा रहा था| राही ने पुजारी से पूछा चिड़िया क्या बोल रही थी, आपको कुछ समझ में आया? पुजारी जी ने तुरन्त उत्तर दिया कि चिड़िया कह रही थी “राम, लक्ष्मण, दशरथ”|

राही को संतोष नहीं हुआ | उसने पास मे सब्जी के ठेले पर सब्जी बेच रहे व्यक्ति से वही सवाल पूछा कि चिड़िया क्या बोल रही थी? उत्तर मिला “आलू, प्याज, अदरख”| राही अब भ्रमित हो गया। उसने पास ही बैठे एक पहलवान से पूछा- महाराज! आपने भी तो चिड़िया की पुकार सुनी थी | चिड़िया क्या बोल रही थी ? उस पहलवान ने कहा चिड़िया तो साफ़ –साफ़ बोल रही थी “दंड, बैठक, कसरत ।

जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि| या यों कहें “सृष्टिः मनसा व्यापार । स्वदेशी, आत्मनिर्भरता ये शब्द लोगों के मन-मस्तिष्क मे अलग-अलग अर्थ पाते हैं | परवरिश, शिक्षा, संस्कार, जीवन यात्रा के प्रभाव आदि बहुतेरे कारण अभिमत, विचार आदि को गढ़ने मे भूमिका अदा करते हैं | तदनुसार समझ, आग्रह, दिशा आदि का निर्धारण होता है । इन बातों का स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय, वैश्विक आदि पहलुओं से भी साबका पड़ता है | अर्थग्रहण और अंकन मे इन सारे पहलुओं का ध्यान रखना चाहिये | धारणाएँ बनाने से परहेज करना चाहिये | अर्थ थोपने के आग्रह से तो बचना ही चाहिये |

इसमें ही अतिआग्रह से अंध भक्त, अंध विरोधी श्रेणियाँ तैयार होती है | इसमे व्यक्ति के स्वभाव दोष के नाते Gullibility ने भूमिका अदा की तो बात और बिगड़ जाती है|

शब्दों के अर्थ कितनी विकृति पा जाते है इसका एक अनुभव 1992 में अमेरिका प्रवास के दौरान मिला था | उस समय अमेरिका में Be American, Buy American का हल्ला था । मैं भारत में भाजपा महामंत्री के साथ स्वदेशी जागरण . मंच में भी संचालन समिति के सदस्य के नाते योगदान करता था । स्वाभाविक था कि Buy American शब्दावली को अपने परिप्रेक्ष्य में लेता । भारत में स्व. जा. मंच का विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और स्वदेशी वस्तुओं का प्रचार हमलोग कर रहे थे | स्वदेशी, विदेशी सामानों की सूचि भी वितरित हो रही थीं |

मैं थोड़ा भ्रमित हुआ था। अमेरिकन को सर्वश्रेष्ठ समाज के नाते प्रस्तुत किया जा रहा था | किसी भी देश का सभ्यता मूलक पहलू राष्ट्र के चित्त, मानस को गढ़ने में महत्वपूर्व भूमिका अदा करता है | अमेरिका की दुनिया भर की थानेदार बनने की इच्छा भी मैं भांप रहा था | उनके स्वदेशी को समझने का मुझे अनायास ही अवसर मिला | अमेरिका मे भी सुबह टहलता था । अखबार की दूकान खुल जाती थी। एक दिन एक टेब्लायड़(पत्रिका) हाथ आयी उसमे सामान्य अमेरिकन, कैसी दुनिया?, कैसा अमेरिका? चाहता है इसका बोध हुया ।
उस मे लिखा था हम ऐसा अमेरिका चाहते है जिसमे खाने का मांस अफ्रिका से आये, लैटिन अमेरिकन देशों से सब्जी, फल, दक्षिण एशिया से अनाज और यूरोप से पेय पदार्थ आवे साथ ही दक्षिण पूर्व एशिया हमारे लिये ऐशगाह रहे, अगर कभी तृतीय विश्व युद्ध की स्थिति हो तो ऑस्ट्रेलिया गोरे-लोगों का एन्क्लेव के नाते उपलब्ध रहे ।

तब मुझे समझ में आया कि यूरोप (जिसका विस्तार है अमेरिका भी) जब-जब समृद्ध हुआ है दुनिया को युद्ध, हिंसा, शोषण, मृत्यु का ही तूफ़ान झेलना पड़ा और भारत जब संमृद्ध हुआ तो भारत की ताकत दुनिया और सृष्टि को बेहतर बनाने मे लगी।

भारत के स्वदेशी और आत्मनिर्भरता का अर्थ हम समझें | अन्य लोग भी हमारी तरह सोचते होंगे ऐसा भ्रम न पालें | रूस, चीन, अमेरिका, भारत के स्वदेशी आत्मनिर्भरता का अर्थ अलग-अलग होगा ।

भगवान् हर देश को अलग-अलग प्रश्नपत्र देता है क्योंकि भूगोल, इतिहास सबका अपना है | समझ भी अपनी है | वैश्विक लक्ष्य भी अलग है | हम अपने भूगोल, इतिहास, चित्त मानस को समझकर अपने स्वदेशी और आत्मनिर्भरता को विचार, व्यवहार में गढ़ें यह जरुरी है।

अपनी राह हम स्वयं गढ़ें, यह समय की मांग है

उसके लिये सर्वप्रथम स्वत्वबोध को स्वदेशी, आत्मनिर्भरता को अधिष्ठान बनायें । स्वत्वबोध के अधिष्ठान की समझ बढाने में सदगुण विकृति से बचें। स्वत्वबोध प्रकाश मे स्वाभिमान, स्वाभिमान के आधार पर आत्मविश्वास के साथ स्वदेशी, विकेंद्रीकरण, स्वालंबन की दिशा में बढ़ें, अपनी राह स्वयं गढ़ें यह समय की मांग है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here