भारत और रूस के रिश्तों में बढ़ती दूरियों की अटकलों के बीच रूसी विदेश मंत्री सर्गेइ लवरोफ़ ने सोमवार को कहा कि रूस के लिए भारत बहुत ख़ास है। सर्गेइ लवरोफ़ ने ये बातें पिछला साल 2020 कैसा रहा, इस पर आयोजित वार्षिक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कही।
रूसी विदेश मंत्री से एक भारतीय पत्रकार ने पूछा कि आप बदलती वैश्विक परिस्थिति में भारत और रूस के बीच संबंधों के फैलाव को कैसे देखते हैं? ख़ास करके तब जब रूस और भारत के रक्षा संबंधों को लेकर कुछ देशों से प्रतिबंध लगाए जाने का ख़तरा है।इनमें रूस से भारत का एस-400 का सौदा भी शामिल है।
इस सवाल के जवाब में रूसी विदेश मंत्री ने कहा, ”भारत और रूस के बीच की साझेदारी बहुत विस्तृत है। आप इसे रणनीतिक साझेदारी भी कह सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद हमारी रणनीतिक साझेदारी को विशेष रणनीतिक साझेदारी कहा गया। रूस और भारत के रिश्ते बहुत ख़ास हैं। रूस के लिए भारत बहुत क़रीब है। बहुत रणनीतिक है। आप चाहे इसे अर्थव्यवस्था के स्तर पर देखें, इनोवेशन के स्तर पर, हाइटेक या फिर सैन्य तकनीक के स्तर पर।
”हम सभी मोर्चे पर बहुत नज़दीक हैं। भारत हमारा सबसे क़रीबी साझेदारों में से एक है। ज़ाहिर है कि हम दोनों के बीच नज़दीकी राजनीतिक समन्वय है। वो चाहे संयुक्त राष्ट्र के भीतर हो या ब्रिक्स स्तर पर। हमने इन मंचों पर साथ में बहुत कुछ किया है। भारत और पाकिस्तान शंघाई को-ऑपरेशन कॉर्पोरेशन में भी हैं। हम इन मंचों से पूरे महाद्वीप में मिलकर काम करते हैं। इसे व्यापक तौर पर एशिया-पैसिफिक कहा जाता है।दोनों देशों के बीच संवाद मंत्री स्तर से लेकर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के स्तर तक होता है।’
सर्गेई लवरोफ़ ने कहा, ”हम आपस में बहुत खुलकर बात करते हैं।हम राजनीतिक मुद्दों के साथ कई आइडिया पर भी बात करते हैं। इनमें इंडो-पैसिफिक रणनीति भी शामिल है। हम केवल टर्मोलॉजिकल बदलाव पर भरोसा नहीं करते हैं। अगर आप केवल टर्म के आधार पर जाएं तो इंडो का मतलब संपूर्ण हिन्द महासागर है। लेकिन पूर्वी अफ़्रीका, फ़ारस की खाड़ी भी इंडो पैसिफिक में हैं।
”लेकिन अमेरिका प्रायोजित अवधारणा में इंडो पैसिफिक की व्याख्या कुछ और है। क्वॉड गुट में यूएएस, ऑस्ट्रेलिया, जापान और इंडिया हैं। इसे माइक पॉम्पियो ने इंडो पैसिफिक इलाक़े में स्वतंत्र आवाजाही के लिए सबसे अहम बताया है। हमारे पास ऐसा मानने के लिए वजह कि ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका इस प्रारूप को आगे बढ़ा रहे हैं इस प्रारूप में वे खुलेआम कह रहे हैं कि यह साउथ चाइना सी में स्थिरता के लिए है और चीन को रोकने के लिए है।”
रूसी विदेश मंत्री ने कहा, ”मैंने अपने अच्छे दोस्त और भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से इस पर बात की है। भारत में मैंने अपने सहकर्मियों से भी इसे लेकर बात की है। वे इस बात को समझते हैं कि अमेरिका की इंडो पैसिफिक रणनीति समावेशी नहीं है। यह रणनीति टकराव को बढ़ाने वाली है। इंडो-पैसिफिक में ये आक्रामकता चिंता की बात है। ये आसियान देशों की केंद्रीय भूमिका को ख़ारिज कर रहे हैं।”
”मुझे पता है कि भारत में इस मुद्दे पर चर्चा ज़ोरों पर है। मुझे पता है कि भारत अमेरिका की इंडो-पैसिफिक की उस रणनीति में शामिल नहीं होगा तो सकारात्मक और रचनात्मक नहीं होगी। इस पर मेरा पहले का बयान इंडिया में चर्चा का विषय बना था.। ख़ास करके भारत उस मीडिया में इसकी चर्चा ज़्यादा हुई जिनका सरकार से संबंध बहुत दोस्ताना नहीं है.।”
रूसी विदेश मंत्री ने कहा, ”मैं साफ़ कर देना चाहता हूं कि भारत के लोगों में इसे लेकर कोई भ्रम नहीं होना चाहिए. हम भारत के दोस्त हैं। हम कोशिश कर रहे हैं कि भारत और चीन, जो कि हमारे अच्छे दोस्त और भाई हैं, दोनों एक दूसरे के साथ शांति से रहें। यही हमारी नीति है। हम इसे न केवल एससीओ और ब्रिक्स में बढ़ावा दे रहे हैं बल्कि हम इस पर विशेष त्रिस्तरीय प्रारूप में भी काम कर रहे हैं. यह प्रारूप त्रोइका- RIC (रूस, इंडिया, चाइना) है।यह 90 के दशक में अस्तित्व में आया और अब भी जारी।