ग़ाज़ियाबाद के रामलीला मैदान पर हजारों का हुजूम देखकर कलेजा मुंह को आ जाएगा। भीड़ एक दूसरे में गुथी हुई दिखी। सोशल डिस्टेनसिंग की धज्जी उड़ने की बात भी बेमानी हो गई। इनकी ट्रेन शाम को रवाना होनी है। प्रशासन क्यों नींद मे है, यह समझ से परे रहा।
इसी तरह यूपी गेट पर भी मजदूरों की भीड़ को हटाना मुश्किल हो रहा है। दो दिनों से दिल्ली-गाजियाबाद बॉर्डर पर बड़ी संख्या में मजदूर जुटे हुए हैं। ये मजदूर ज्यादातर बिहार, उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। मजदूरों की ये भीड़ बॉर्डर पर उत्तर प्रदेश सरकार के नए आदेश के बाद लगी, जिसके मुताबिक मजदूर अब पैदल, ट्रक या टेम्पो से यात्रा नहीं करेंगे। लेकिन ये कह रहे हैं कि नहीं चाहिए बस और ट्रेन। सीमा खोलिए, हम अपने घर खुद चले जायेंगे।
यूपी सरकार के आदेश में लिखा है कि मजदूरों को ले जाने के लिए राज्य सरकार की तरफ से चलाई जाने वाली बसों और ट्रेनों के जरिये ही उनको घर भेजा जाएगा। सरकार के इस आदेश के बाद ही सारे बॉर्डर्स सील हो गए। जिसके बाद मजदूर राज्य के बॉर्डर के पास जगह-जगह फंस गए। मजदूरों की संख्या जितनी बड़ी है, बसों की व्यवस्था उस हिसाब से नहीं है
यूपी गेट बॉर्डर पर मौजूद मजदूरों को आसपास के शेल्टर होम्स में भेजकर सड़क को खाली करा दिया गया। मगर आज जम्मू से आये मजदूरों की भीड़ बॉर्डर पर लग गई। इन मजदूरों का कहना है कि इन्हें सरकारी बस नहीं चाहिए। इन्हें घर जाना है, बस बॉर्डर खोल दें ये खुद चले जाएंगे।
समान लेकर धूप में खड़ी छह साल की बच्ची रिंकी का कहना था वह दिल्ली के उत्तमनगर से गाजियाबाद तक पैदल आयी है। हमने जब पूछा गया कि पैदल उतनी दूर से कैसे आये तो रिंकी ने कहा कि चलते चलते दर्द हो जाता है पैर में तो रुककर पांच मिनट आराम करते हैं फिर चलने लगते हैं। हम लोग ऐसे ही घर चले जाएंगे बस हमें बॉर्डर पार कर लेने दीजिये।