विशेष संवाददाता
भारतीय वैज्ञानिक अब चन्द्रमा को पावर हाउस बनाने की कोशिशों में जुटे हैं। यदि उन्हें कामयाबी मिलती है, तो देशवासियों को दस से बीस पैसे प्रति यूनिट की दर से बिजली मिलेगी। इतनी सस्ती अक्षय ऊर्जा उपलब्ध होने के बाद जहां देश में आर्थिक क्रांति आयेगी, वहीं लोगों के जीवन स्तर में भी जबरर्दस्त उत्थान देखने को मिल सकता है।
पर वहां से बिजली लाना किसी एक देश के बस का नहीं, मिलकर करना होगा प्रयास
इसरो के सेवानिवृत्त वैज्ञानिक और चंद्रयान-2 अभियान से जुड़े रहे डॉ. राजमल जैन ने मध्य प्रदेश के इंदौर में विज्ञान दिवस पर आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि, आज पूरी दुनिया सौर ऊर्जा के उपयोग की दिशा में काम कर रही है, पर इसरो का अगला प्रयास चंद्रमा को इलेक्ट्रिक हाउस (पावर हाउस) बनाने का है। चंद्रमा का 54 प्रतिशत भाग रोशनी से भरा है। यदि हम वहां से बिजली लाने में सफल हुए तो वह 10 से 20 पैसे प्रति यूनिट के हिसाब से हमें मिलेगी। पर वहां से बिजली धरती पर लाना किसी एक देश के बस की बात नहीं है। इसके लिए सभी देशों को कहा जा रहा है, ताकि मिलकर यह काम किया जा सके।
चंद्रमा के काफी करीब पहुंच गया था चंद्रयान
उन्होंने कहा कि, इसरो चंद्रमा की तत्व संरचना का पता लगाने का प्रयास कर रहा है। यदि तत्व संरचना के बारे में वस्तुस्थिति पता लग जाती है, तो इस रहस्य से पर्दा हट जाएगा कि चंद्रमा धरती का हिस्सा था या ये दोनों साथ-साथ बने थे। चंद्रयान की असफलता को लेकर उन्होंने कहा कि, ‘मैं इसे असफल प्रयोग नहीं मानता, क्योंकि यान चंद्रमा के बहुत नजदीक पहुंच गया था। चंद्रयान को जब चंद्रमा पर उतरना था, तब उसमें ब्रेक लगाने की कोशिश (वैज्ञानिक भाषा में रिटार्डिग फोर्स) की गणना थोड़ी बिगड़ गयी थी। इससे वह रुका नहीं, बल्कि उसकी दिशा बदल गयी। हमने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर जाने की चुनौती ली थी। इस चुनौती को लेने के पीछे हमें दो फायदे नजर आ रहे थे। पहला फायदा चंद्रमा पर पानी की उपलब्धता और दूसरा चंद्रमा की तत्व संरचना का पता लगाना था।’
100 से ज्यादा ग्रहों पर हो सकता है जीवन
डॉ. जैन ने यह भी कहा कि, ‘वैज्ञानिक चंद्रमा के अलावा अन्य ग्रहों के उपग्रहों पर भी जीवन की तलाश में हैं। हम शनि ग्रह के चंद्रमा पर भी जीवन की संभावनाएं तलाश रहे हैं और वहां इसके सकारात्मक संकेत मिले हैं। अभी तक 100 से ज्यादा ऐसे ग्रहों का पता चल चुका है, जिन पर जीवन की संभावना हो सकती है।’
सूर्य के काले धब्बे घटे, तो करोड़ों लोगों की जान को खतरा
डॉ. जैन के मुताबिक, अमूमन हर 400 साल में एक दौर ऐसा आता है जिसमें सूर्य के काले धब्बे (सन स्पॉट) कम होने लगते हैं। इससे तापमान में गिरावट आती है। वर्ष 1650 से 1715 तक का दौर ऐसा ही था। तब करोड़ों लोगों की जान गिरते तापमान की वजह से गयी थी। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव यूरोप में दिखा था। सन स्पॉट कम होने के कारणों पर शोध जारी है। वर्तमान में फिर ग्राफ नीचे की ओर जा रहा है।
ग्राफ को देखते हुए आशंका जताई जा रही है कि 2025 के बाद फिर ऐसी स्थिति बन सकती है। पर यह बात 2022-23 में पता चलेगी कि सन स्पॉट कम हो रहे हैं या नहीं। यदि ग्राफ नीचे जाता है तो जहां तापमान 15 डिग्री होता है, वहां 5 डिग्री तक हो जाएगा। यह स्थिति दशकों तक रहती है। ऐसे में जन्मदर कम और मृत्युदर अधिक हो जाती है।