भारत की आर्थिक, सामाजिक स्थिति (सन 1980-2020)- विहंगावलोकन : भाग-4
के.एन.गोविंदाचार्य
चिंतक-विचारक

एनरान घटना नहीं, प्रक्रिया है, विदेशी ताकतों की एक झांकी भर है| इसलिए एनरान की घटना का उल्लेख उपयोगी लगा| मुंबई के कार्यकर्ता सुरेन्द्र थत्ते और उनके साथियों की आपबीती सुनने लायक है|

अब ट्रोलिंग की विधि प्रक्रिया चालू हो गई| स्वदेशी की अलग-२ धारा के लोगों को झोला-छाप, Frustrated, Disgrauntled Elements, Fringe Elements, Impractical आदि शब्दों से नवाजा जाने लगा| कालांतर में दिल्ली में स्वदेशी पत्रिका कार्यालय को रातों रात खाली कराया गया| महात्मा बुद्ध का मध्य मार्ग अब यथास्थितिवाद का पक्षधर बनता गया|

उपनिवेशवाद से एक हद तक मुक्त होने के बाद परानुकरण, विदेशों के अंधानुकरण की बजाय अपने घर अर्थात् अपने देश के भूगोल और इतिहास को ठीक करना था| जैसे किसी जबरन घर मे घुसे हुए व्यक्ति को भगाने मे सफल होने के बाद गृहस्वामी अपने घर की चहारदीवारी , नालियों, खिड़की, दरवाजे आदि को ठीक करता है| कहीं पानी छत से चू रहा हो, उसकी मरम्मत करता है| तब कहीं वह झाडफानूस, कालीन, मसनद आदि की चिन्ता यथावश्यक रूप से करता है| ऐसे ही पहले जमीन, खेती, जल, जंगल, पशुधन, पर्यावरण आदि की समुचित व्यवस्थापन ही प्राथमिकता थी| उसकी बजाय बिना आधार के इमारत खड़ी करने के प्रयास हुआ| भारत में चले प्रयास को भीमकायपन Giganticism के आकर्षण का कुप्रभाव माना जायेगा|*

देश की यात्रा का इसी दिशा में विस्तार कालक्रम मे होता गया| ऐसा प्रतीत होने लगा कि रफ़्तार बढ़ी पर दिशाभूल बनी रही| दूसरी तरफ भूसांस्कृतिक चेतना का आग्रह भी बढ़ता गया| अर्थव्यवस्था मे विदेशी मॉडल को आरोपित करने का प्रयास और भी गतिशील होता रहा|

एनरान की कहानी 93 से 2020 तक अनेक प्रकार से दोहराई जाती रही है| उस कहानी की अंतर्कथाएँ बहुत सारी हैं| उन पर फिर कभी चर्चा होगी| कथानक वही रहा, पात्र बदलते गये| एक के बाद राजसत्ता में जो भी आये उनकी सोच आर्थिक सुधारों की गति बढाने पर जोर लगाने की रही| गति बढ़ी, दिशा सुधार के नाम पर अर्थव्यवस्था में विदेशी आर्थिक ताकतों की भूमिका बढाने की ही रही| सत्तापक्ष विपक्ष का भेद मिटा| सांस्कृतिक, सामाजिक दलों की अलग भले ही रही, आर्थिक उदारीकरण के बारे में अनुकूल समझ सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों की रही है|

पिछले 10 वर्षों मे यूरोप अमेरिका के अतिरिक्त जापान, चीन का भी अर्थव्यवस्था स्तर पर भारत के साथ लेन-देन बढा है| भूराजनैतिक जरूरतों ने भी अर्थ नीति से प्रभावित किया है| बुलेट ट्रेन उसका एक उदाहरण है|

राजसत्ता और अर्थसत्ता का गठजोड़ मजबूत हुआ| शब्द अर्थ खो रहे हैं| आत्मनिर्भरता का संदेश, नशा बंदी का संदेश, एकजुटता, मिव्ययता का सन्देश सभी आम जनता के खाते मे भेजे जा रहे हैं| विदेशों के साथ द्विपक्षीय वार्ता, रणनीतिक आर्थिक गठजोड़ आदि सत्ता के स्तर हो रहे हैं| कम पूंजी, कम लागत की बेहतर खेती का संदेश आम किसानों को और वहीँ दूसरी ओर अपने बीज संरक्षण विधियों पर जोर देने की बजाय नकदी पर जोर फसल, तदनुसार बीजों के बारे मे विदेशी कंपनियों को रियायतें दी जा रही है| कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के लिये अनेक रियायतें देने की योजना है| विदेशी कंपनियों का प्रवेश सहूलियत पा सके ऐसा राजसत्ता और अर्थसत्ता के गठजोड़ की ओर से प्रावधान किया जा रहा है| बात आत्मनिर्भरता की और दिशा परावलंबन की ओर जाये तो कहना पड़ेगा कि शब्द अर्थ खो रहे है|*

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