क्रिकेटर बनने का ख्वाब अधूरा ही बन कर रह गया
रतन सिंह
सुनिये इरफान को अंतिम बार
यह माना जाता है कि सिनेमा-गीत-संगीत से क्रिकेट के तार जुड़े होते हैं। जैसे एक्टिंग (acting )को टाइमिंग का खेल माना जाता है उसी तरह क्रिकेट भी टाइमिंग ( timing) की मोहताज होती है। वहां भी लय, यहां भी रिदम। इरफान का जाना एक कड़वी हक़ीक़त है तो उनकी याद एक सुनहरी, पर त्रासद तसव्वर (कल्पना ) भी । उनकी फिल्में देखकर उनके पास होने की सोच से खुद को गफलत की लोरी देना, वहीं हक़ीक़त में उन्हें फिर इस दुनिया में रूबरू फिर न देखने का सन्नाटे भरा एहसास। यही सालता रहेगा तो राहत भी देगा। इसके सिवा चारा भी क्या होगा।
आज पूरा भारत अपने रिचर्ड बर्टन ( richard burton)के चले जाने से गमगीन है, उदास है तो जानिए हॉलीवुड के उस बेमिसाल एक्टर बर्टन के बारे में। 1940 और 50 के दशक के अदाकार बर्टन अपनी भूरी आंखों से एक्टिंग के उस्ताद माने जाते थे। उनका कम बोलना ही एक्टिंग (acting ) की मील का पत्थर बना था। फिर संवाद बोलते तो जीभ से चिपके गाल के चटकारे की आवाज आती थी। वैसे ही इरफान अगर मूक फिल्मों के जमाने में होते तो बहुत सफल होते। उनकी गिनती मोतीलाल, बलराज साहनी, अशोक कुमार, संजीव कुमार, अमरीश पुरी, नसीरुद्दीन शाह ओम पुरी और अनुपम खेर की श्रेणी में होती है।
कोरोना की ट्रेजिडी ने जिंदगी लॉक डाउन की है और इरफान का इस समय जाना दिल कचोटने वाला है। वर्सोवा के कब्रिस्तान में सुपुर्दे खाक होने का वह कारुणिक नजारा, जहां महज 20 लोग ही जा सकते थे। लाखों-करोड़ों को जुटाने वाला कितना तन्हा रह गया। आज इरफान के साथ कोरोना लॉक डाउन भी अमर हो गया।
सी के नायडू-23 टीम में चुने गए थे
इरफान सीके नायडू अंडर-23 के लिए राजस्थान की टीम में चुने गए थे, पर अजमेर जाने के नहीं थे पैसे। और वह सपना पूरा नही हुआ।
यूट्यूब के एक टॉक शो ( talk show) ‘सन ऑफ अबिश’ में उन्होंने अपने इस छिपे हुए सपने के बारे में जानकारी भी साझा की थी। इरफान ने बताया था कि वे एक ऑलराउंडर थे। उन्हें बल्लेबाजी काफी पसंद थी, लेकिन कप्तान के कहने पर उन्हें गेंदबाजी करनी पड़ती थी और विकेट मिल जाते थे।
इरफान ने बताया था कि उन्हें खेलने के लिए छिप कर जाना पड़ता था, घर का माहौल भी ऐसा था कि बताना पड़ता था कि कहां जा रहे हैं। ऐसे में कभी क्रिकेट को करियर के तौर पर नहीं सोचा। जब मेरा सेलेक्शन हुआ, तो टीम को जयपुर से अजमेर जाना था। सभी को 200-250 रुपए अरेंज करने थे अपने लिए। मैं वो अरेंज नहीं कर पाया। उस दिन मुझे लगा कि मैं क्रिकेट आगे नहीं खेल सकता।
क्रिकेट उनका एक अधूरा ख्वाब बन कर रह गया। इसलिए नहीं कि उनमें प्रतिभा की कोई कमी थी बल्कि इसलिए कि वो उस दौर मे पैदा हुए थे जब देश मे क्रिकेट संघ आज की तरह समृद्ध नहीं थे । खिलाडी को सिर्फ मैदान पर ही पसीना नहीं बहाना पडता था पैसे जुटाने के लिए भी न जाने कितने पापड बेलने पडते थे और न जाने इरफान जैसे कितने ही क्रिकेटर्स के अर्थाभाव के चलते सपने बिखर गये होगें उस युग में । आज की दुनिया अलग है । सीके नायडू तक खेलने वाला आज वर्ष मे खासी रकम पा जाता है।
खैर, इरफान क्रिकेट मे तो वीनू माकड जैसे आलराउंडर नही बन सके मगर अभिनय की दुनिया मे तो वो महान हरफनमौलाओ मे खुद को शुमार करा ही बैठे।
अलविदा इरफान भाई ! आपको भारतीय सिनेमा और उसके दर्शक लम्बे अर्से तक शिद्दत से याद करते रहेगे।