आखिर कब तक शहीद होते रहेंगे जवान ?

कश्मीर घाटी में स्थानीय लोगों को उनके घरों में बंधक बनाकर security forces सुरक्षाबलों को चुनौती देने वाले आतंकवादियों के ख़िलाफ़ अब रणनीति में कारगर बदलाव बेहद ज़रूरी है। बंधकों के जीवन की रक्षा में सेना के अनगिनत जवान अपने प्राण गंवाते जा रहे हैं। सरकार और सेना के रणनीतिकारों को इस चुनौती से निबटने के लिए अब सार्थक पहल करनी ही होगी।

Handwada हंदवाड़ा में कल भारतीय सेना के Colonel Ashutosh Sharma कर्नल आशुतोष शर्मा समेत चार जवानों और जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक sub inspector सब इंस्पेक्टर की शहादत पर देश के पूर्व सैन्यकर्मियों का कहना है कि कश्मीर में आतंकी हमलों से निबटने की रणनीति में बदलाव जरूरी है। सेना को राजनीति से दूर रखकर कार्रवाई करने की आवश्यकता है। 

इस संबंध में retired colonel VK Sahi रिटायर्ड कर्नल वीके साही का कहना है कि यदि कहीं कोई आतंकी किसी घर में पनाह लिए हुए है या लोगों को बंधक बना रखा है तो सबसे पहले वहां मौजूद लोगों को एक चेतावनी देकर बाहर आने के लिए कहा जाए। अगर ऐसा नहीं होता है तो उस जगह को विस्फोट से उड़ा देना चाहिए। इसी से आतंकियों को पनाह मिलनी बंद होगी।

उन्होंंने सवाल किया कि आखिर कब तक बंदी बनाने के नाम पर आतंकियों को पनाह मिलती रहेगी और इन्हें बचाने के नाम पर हमारे जवान शहीद होते रहेंगे? कश्मीर में आतंकियों को स्थानीय स्तर पर पनाह मिलती है, जिसकी आड़ में वे छुप जाते हैं और फिर लोगों को बंधक बनाने के नाम पर सुरक्षा बलों के अंदर आते ही हमला बोल देते हैं। 

इस साल अब तक 62 आतंकी मारे गये

इस साल जनवरी से अब तक Jammu-Kashmir जम्मू-कश्मीर के अलग-अलग इलाकों में हुई मुठभेड़ में 62 से ज्यादा आतंकी मारे गए हैं। Lockdown लॉकडाउन के दौरान आतंकियों की ओर से सीमा पार से लगातार घुसपैठ की कोशिशें भी जारी हैं।

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