विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बुधवार को कहा कि लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर शांति और स्थिरता कायम रखने के लिए समझौतों का बीजिंग की ओर से उल्लंघन करने की वजह से भारत-चीन संबंधों को काफी नुकसान पहुंचा है और यह सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहा है। ऑस्ट्रेलियन थिंक टैंक लोय इंस्टिट्यूट के साथ ऑनलाइन संवाद के दौरान विदेश मंत्री ने कहा कि समझौतों का उल्लंघन करते हुए लद्दाख सेक्टर में एलएसी पर हजारों सैनिकों को लाने के लिए चीनी पक्ष ने पांच तरह की सफाई दी है।
8 महीनों से भारत-चीन के बीच जारी सीमा तनाव के बीच जयशंकर ने यह साफ किया कि दोनों देशों के बीच अलग-अलग स्तरों पर संपर्क के बावजूद इस मूल मुद्दे को नहीं सुलझाया जा सका है कि ”समझौतों का पालन नहीं किया जा रहा है।” जयशंकर ने कहा, ”चीन के साथ हमारे संबंधों में हम संभवत: सबसे मुश्किल दौर में हैं, निश्चित तौर पर पिछले 30-40 साल या उससे भी अधिक।” उन्होंने गलवान घाटी में 20 भारतीय सैनिकों की शहादत का जिक्र करते हुए कहा कि एलएसी पर 1975 के बाद पहली बार सैनिकों की जान गई है।
जयशंकर ने कहा, ”रिश्ते बेहद खराब हो गए हैं, क्योंकि पिछले 30 सालों में द्वीपक्षीय संबंधों में सभी सकारात्मक बदलाव, जिसमें चीन भारत का दूसरा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर बनना और पर्यटन शामिल है, इस बात पर निर्भर थे कि दोनों पक्ष सीमा विवाद को सुलझाते हुए बॉर्डर पर शांति बनाए रखने को सहमत थे। एलएसी पर बड़ी संख्या में सैनिकों को ना लाने के लिए 1993 से हुए कई समझौतों की ओर इशारा करते हुए जयशंकर ने कहा, ”अब किसी वजह से, जिसके लिए चीन ने हमें पांच अलग-अलग सफाई दी है, चाइनीज ने इसका उल्लंघन किया है।”
विदेश मंत्री ने कहा, ”लद्दाख में एलएसी पर चाइनीज वास्तव में हजारों सैनिकों को पूरी सैन्य तैयारी के साथ ले आए। स्वभाविक है कि इसका संबंधों पर बहुत बुरा असर होगा।” उन्होंने कहा कि सैनिकों के बीच आमना-सामना और बहस होती थी, लेकिन आपसी समझ का इतना बड़ा उल्लंघन कभी नहीं हुआ था। उन्होंने यह भी कहा कि दोनों देशों के सैनिक इस साल एक दूसरे के बेहद करीब थी और यह बहुत चौंकाने वाला नहीं है कि कुछ बहुत गलत हुआ।
जयशंकर ने यह भी कहा कि रिश्तों को दोबारा पटरी पर लाना बहुत बड़ा मुद्दा है, हालांकि दोनों पक्षों में संवाद कोई मुद्दा नहीं है। उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत तौर पर उन्होंने चाइनीज समकक्ष से बात की है और संघाई कोऑपरेशन आर्गनाइजेशन की बैठक में मिले हैं, रक्षा मंत्रालय, सैन्य कमांडर्स और कूटनीतिज्ञों के बीच भी बैठकें और बातचीत हुई है। जयशंकर ने कहा, ”संवाद कोई मुद्दा नहीं है, दिक्कत यह है कि हमारे बीच समझौते हैं, लेकिन उनका पालन नहीं किया जा रहा है।”