CAA पर चिंतक पत्रकार
सुमेघा का बेबाक ब्लाग

देश में बबाल  मचा है नागरिकता संशोधन एक्ट (CAA) पर जो पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान के दशकों से प्रताड़ित अल्पसंख्यकों के लिए है और जो अर्से से देश में बदहाली, लाचारी, उपेक्षा का जीवन गुजार रहें हैं|

हिसंक प्रतिरोध जारी है मुख्यतया भारतीय मुस्लिम समुदाय द्वारा जिन्हे कई राजनितिक दलों और हर वर्ग के कुछ नामचीन बुद्धिजीविओं का support मिल रहा है||

पहली बात तो ये है की किसी भी देश की सरकार जिसके पास जनता का mandate है उसे कानून बनाने का अधिकार है| उसकी बृहद दृष्टि क्या है उस पर बहुत नजरिए  हो सकते हैं पर फिलहाल कुछ प्रताड़ित लोगों को जो  अपनी मिटटी से भाग कर यहाँ शरण लिऐ  हैं उनको CAA नागरिकता देता है तो भला उसमे मेरा और किसी का चाहे किसी भी धर्म का हो उसका क्या नुकसान है?

में अपने ऑस्ट्रेलिया के अनुभव साझा करना चाहती हूँ इस मुद्दे पर जहाँ की में बरसों से permanent resident (PR) हूँ | मुझे सालों से वहां नागरिकता लेने का अधिकार है पर उसके लिए आज तक भी मेरा दिल मेरे दिमाग के हत्थे नहीं चढ़ पाया| मुझे कभी मंजूर नहीं की मेरे पासपोर्ट पर उस रानी की फोटो या मोहर लगे जिसके नाम पर Great  Britania  के वाशिंदो ने हर तरह का छल-कपट , लालच-प्रलोभन देकर देश को अपनी मुट्ठी में जकड कर  रखा दो शताब्दी तक|

इस दो-चार दिन के जीवन मुझे अपनी पहचान (identity ) सबसे जरूरी है बाकी सब इसके आगे फीका है| अगर नागरिकता  ले लेती तो मेरी आत्मा जिसने इस देश की मिटटी में शरीर धारण किया उसकी पहचान नहीं बदल जाती|  में ऑस्ट्रेलिया में – that Indian woman, black woman, peson of  colour, migrant  थी, हूँ और हमेशा रहूंगी |

मुझे इस बात से कोई गिला नहीं है, ऑस्ट्रेलिया मेरी दूसरी पालनहार मां है और रहेगी | ऑस्ट्रेलिया में सरकार के पास हर निवासी का data  है|  यहाँ तक आप single हैं, couple  हैं, कितने बच्चे हैं,कितने bedroom के कैसे घर में रहते हैं|  वहां के लोग इस बात से थोड़ा irritate हो सकते पर उन्हें मालूम है की यह जरूरी है क्योंकि कोई भी nation state एक व्यवस्था का नाम है | वहां की वयवस्था साफ़-सुथरी गड्डा मुक्त सड़के,स्वच्छ सुन्दर green areas, बेहतर जनपरिवहन, स्वास्थय    सेवाएं, police , social  security  और वो हर चीज जो नागरिक को अच्छा जीवन-यापन करने के लिए आवशयक मानी  जाती है और जिसे उपलब्ध कराना सरकार की constitutional और mandatory जिम्मेदारी है वो सरकार उपलब्ध कराती है|

लोग तरह=तरह के छल-प्रपंच करते है ऑस्ट्रेलिया में entry  पाने के लिए|  जैसे कि एक नागरिक भारतीय भाई अपनी सगी बहन से शादी दिखा कर उसे लाने की  कोशिश करता है|  कुछ लोग अपनी PR  या नागरिक mature लड़कियों, बहनो का इस्तेमाल बड़ी रकम देकर लड़को को migrate कराने  में लगे रहते है|  साल दर साल. एक शादी करवाई, mandatory time period तक रिश्ता कागजो में निभाते रहे, इस बीच दुसरे client को तैयार करते रहे और free  का पैसा बटोरते रहे|  बहुत से भारतीय भारतीय छात्र लड़के कई बार Australian  single  महिलायों को प्रेम के नांम पर शादी में फंसा लेते हैं  ताकि रहने के लिए जुगाड़ हो जाये  और एक बार PR  या नागरिकता पाने में कामयाब हो जाते है तो अक्सर जीवन-मरण के  प्रेम को तिलांजली  देकर अपने रास्ते बढ़ जाते हैँ| एक और किस्सा  कि एक छात्र Christian  बन कर Australian immigration में गुहार लगाता रहा इस premise पर कि अब भारत में परिवार उसे प्रताड़ित कर रहा है क्योंकि वो ईसाई  बन गया है | बहुत से लोग जर्जर नावों में बैठकर ऑस्ट्रेलिया पहुँच गए और वहां की सरकार ने एक established process  के तहत बहुतो  को बसा लिया उनमे से कई उच्च public पदों पर रहकर अपने adopting देश की growth story  में योगदान दे रहें हैं|

वहीँ एक migrant  नागरिक अपनी कट्टर सोच के चलते सिडनी के प्रमुख जगहों पर जेहादी पर्चे बाटता था और एक दिन उसने अपने जेहादी जूनून में एक सुहानी सुबह एक नामी कैफ़े में आये लोगों को बंधक बना लिया। दो प्रखर, जवान, career  के शीर्ष पर बैठे Australian नागरिको की जान चली गयी police operation में, वो भी मारा गया क्या मिला किसको, क्या ऑस्ट्रेलिया इस्लामिक state  बन गया?

आज जो जगह जगह हिंसक प्रदर्शन चल रहा है उससे मुझे क्या मिलेगा  प्रतिरोध करें, खूब करें पर देश समाज की established मर्यादों में रह कर|  आम जनजीवन को खतरे में डालने का उसे अस्तवयस्त करने का किसी को अधिकार नहीं है|  मेरी बसें क्यों जलाई? मेरे टैक्स के पैसे से खड़ी  की गयी सार्वजनिक संपत्ति को क्यों तोड़ा-फोड़ा जिन बसों में तुम भी दिन-रात घूमते थे उनको जलाकर क्या मिला? कुछ फूँक कर विद्रोह करना तुम्हारा तरीका है तो अपने खुद के vehicles  क्यों नहीं फूंके, अपने घरों की खिड़की-दरवाज़ों पर गुस्सा क्यों नहीं निकाला?

जब से होश संभाला है, अगर कोई पूछता था, ज्यादातर विदेश प्रवास के दौरान कि में क्या हूँ  तो मेरा जवाब होत्ता था कि में हिन्दू हूँ, मुसलमान हूँ, सिख हूँ,ईसाई  हूँ, बौद्ध हूँ, जिसको जो मानना है मान लो| CAA को लेकर प्रतिरोध के सन्दर्भ से लगता है बेहतर होता यदि धर्म को define न कर सिर्फ ये लिखा जाता ये ACT  persecuted minorities ३ पडोसी देशो से आये शरणार्थी के  लिए है | और CAA की वयवस्था इतनी चाक -चौबंद रखी  जाती की जो लोग धर्म के नाम पर प्रताड़ित नहीं है फिर भी इसके तहत आने का प्रयास करते इस नीयत से की देश में दंगा=फ़साद करायें , आतंकी गतिविधियों को अंजाम दे उनको CAA की वयवस्था decline कर सकती थी ठोस parameters पर |

एक दूसरी बात जो में बरसों से पूछना चाहती हूँ पर पता नहीं किससे  पूछूँ कि जब British India  के  धर्म के आधार पर रातों-रात टुकड़े कर दिए गये  तब ये प्रदर्शनकारी कहाँ थे ?तब लोग क्यों नहीं खड़े हुये  जिन्ना, नेहरू, गाँधी, उन लोगो के ख़िलाफ़ जो धर्म  के आधार पर हमारे लोगों का कत्ले-आम करा रहे थे? तब लोग क्यों नहीं उतरे  सड़को पर ये बताने के लिए की पहली बात तो हम धर्म के आधार पर देश के टुकड़े नहीं होने देंगे और दूसरी बात ये की टुकड़े करे बिना नहीं मानोगे तो जो जहाँ रहता है उसे वहीँ रहने दो ? एक secular देश बनाने का वायदा किया था जिन्ना ने फिर ट्रेनों में लोग क्यों काटे गये | जो लोग पुश्तों से एक दुसरे के साथ रहते आ रहे थे वो कैसे एक दुसरे की गर्दने काटने लगे ? जो लोग एक दुसरे के लिए फूलमालायें बनाते थे, मज़ारों पर चादरे चढ़ाते थे, एक साथ ताज़िए उठाते थे, गुरु का लंगर छकते थे,रामलीलाएं करते थे कैसे एक दुसरे की बहन-बेटियों का चीरहरण करने लगे? और अंग्रेज British India को अपनी farewell party का cake समझ काट रहे थे? वो तो अपना बोरिया-बिस्तर और जाने क्या क्या समेट  कर ले गये  यहाँ से | उनसे किसी ने पूछा कि  सरकार  की जिम्मेदारी नहीं थी क्या कि सब नागरिक अंग्रेज  बहादुर की खींची  सीमाओं के आर-पार सुरक्षित जा सकेँ? और फिर अपने वायदे को भूलकर पाकिस्तान ईस्लामिक राष्ट्र बन गया | तब क्यों नहीं विद्रोह उठा देश से लेकर UN तक कि पाकिस्तान सबका है धर्म के परे | जो  देश राजधानी का नाम इस्लामाबाद रखे उससे कैसे उम्मीद की जा सकती है कि उस देश में अन्य धर्म के लोगों को समान अधिकार मिलेगा ? अंग्रेज  ने ये कैसा cake काटा कि अपनी ही ज़मीन  पर अन्य धर्म के लोग unwanted , दोयम दर्ज़े के नागरिक हो गये ? ज़ाहिर  सी  बात है बहुत लोग दिन-रात की जिल्लत बरदाश्त नहीं कर पाये  और हिंदुस्तान आते रहे, बसते  रहे | उनकी पुश्तों की पहचान अंग्रेज बहादुर ने अपनी कलम से मिनटों में मिटा दी, उनके अस्तित्व पर एक खौफनाक प्रशनचिन्ह  बिठा दिया | अंग्रेज बहादुर अपनी तथाकथित उच्च सभयता  का परचम लेकर कहाँ कहाँ नहीं गया फिर कैसे उसकी रानी की सरकार ने लाखों लोगो को कटने  दिया, उजाड़ दिया | विभाजन का cake खून से सराबोर कैसे हो गया ?

इस मिटटी का शासन बदलता रहा British India  से पहले मुग़ल इंडिया, उससे पहले कुछ और, इस बीच पिछले दोसों सालों  में पूरे  विश्व में हर क्षेत्र में व्यवस्था, क़ानून  विकसित होता रहा | पिछले ७० साल से हिन्दू-मुसलमान का ढोल, जिसकी ताल अंग्रेज बहादुर बिठा कर गया native सूरमाओ के साथ मिल कर, सीमा के आर-पार बज रहा है | इसकी आवाज़ कर्कश है, दिल दहलाने वाली है, हमारे अपने लोग इस ढोल की ताल से तरंगित होकर अपना ही घर फूंकने में लगे हुये हैं |

और में पूछती हूँ की अंग्रेज बहादुर तुम जब अपनी रौबदार वेश-भूषा, हष्ट -पुष्ट घोड़े पर बैठकर मेरे शहर में गश्त करते थे तो मेरी माँ को सहम कर सड़क किनारे दुबकने का अपमान क्यों सहना पड़ता था ? और मेरा क्या कसूर कि मै खुल कर अपने लाहौर, पेशावर नहीं जा सकती जहाँ की बातें मेरे नाना बताया करते थे ? मेरी  और जाने कितने ही लोगो की प्यारी , पूजनीय मा (सरला ठकुराल, अविभाजित हिंदुस्तान की पहली महिला पायलट) दिल्ली में आके बस गयीं  अपना लाहौर उन्हें छोड़ना पड़ा | बहुत पीड़ा होती होगी पर कभी दुखड़ा नहीं रोया | पर फिर भी नब्बे से ऊपर की उम्र में अपना लाहौर का पता मुझे लिखवाया, कहा बेटे कभी वहां जाना  हो दो देख कर आना मेरा घर |

इतना बड़ा घिनौना काम कर गया अंग्रेज बहादुर इस देश के लोगों के साथ | वो तो आराम से चला गया, आराम से यहाँ रह गया, अपने तरीके से, अपने कुत्तों, जिमखाना, क्लबों, अर्दलियों के साथ और हम हैं कि उसकी लगायी आग आज तक नहीं बुझा पाए बल्कि उसमे दिन-रात नफरत, अविशवास , धमकियों की आहुति   देते रहते हैं |

और फिर तथाकथित शांतप्रिय प्रदर्शनकारी मेरा क्या करेंगे ? न में हिन्दू हूँ, न  मुस्लमान हूँ, न ईसाई , न पारसी, न बौद्ध, अथवा अथवा ? हिन्दुस्तानी हूँ, दो हाथ दो पैर वाली इन्सान  हूँ | CAA  हो, NRC हो , मुझे किसी बात का डर नहीं | जो शरणार्थी हैं  उन्हें अधिकार मिले, वो आगे बढ़ें, उनके आसूं थमे उसमे सबका भला है | मेरी हिंदुस्तानियत को किसी धर्म की बैसाखी की ज़रूरत नहीं है | मेरे नाना-परदादा जाने कितनी पुश्तों से इसी ज़मीन पर गुजर-बसर कर इसी मिटटी में मिल गये, British India  तो बाद में बना | में nation state  से नहीं हूँ, में हूँ तो nation  state  है | और फिर कल को NRC के लिये  कागज़-पत्तर करने भी पड़े तो क्या डर है ? बोलूँगी  उन NRC वालों को की चले जाओ मेरी मिटटी में जहाँ मेरे पूर्वजो की बनाई गयी पानी की प्याऊ आज भी है, उनका लगाया गया बाग़  आज भी है | में मरने के बाद जलूं या दबूं , मुझे कोई फर्क नहीं पडेगा | मुझे यमराज अपने बैल पर बिठा कर ले जायें , मुझे जन्नत मिले या दोज़ख , ७० हूरें या हुडदंगी मिलें , कोई फर्क नहीं पडेग़ा| मेरे लिए असली ज़िहाद  है, धर्म, पंथो, जात -पात, gender, सीमाओं, काले -गोरे , जानवर-इन्सान की थोपी हुई बेचारगियों से परे हो जाना जीते जी| हर साँस  में क़बीर हो जाना मेरा ज़िहाद है| मेरे निजामुद्दीन में बैठे औलिआ मेरे सर पर अपना हाथ रखना बस|

मेरे अपने, मेरे सगे वाले, मेरे मुस्लमान और सभी विद्रोही साथियों अपनी बात रखो, जरूर रखो पर अपनी बोखलाहट , अपवाहों, संदेहों की आग में मुझे मत लपेटो | जय हिन्द |

(C)SumeghaAgarwal

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