नई दिल्ली (एजेंसी) । नियंत्रक एवं महालेख परीक्षक (कैग) की ओर से शुक्रवार को पेश रिपोर्ट में नोएडा की एक फार्महाउस स्कीम पर सवाल उठाया गया है। करीब 500 पृष्ठों की इस रिपोर्ट में वर्ष 2005 के बाद के दौर की समीक्षा की गई है। दरअसल साल 2008-11 की अवधि में नोएडा में लांच फार्म हाउस स्कीम पर पहले उत्तर प्रदेश सरकार की मंंजूरी होनी चाहिए थी जो नदारद है।  साथ ही रिपोर्ट में इस स्कीम के आवंटन के तरीके पर भी संदेह जताया गया है। कैग की इस रिपोर्ट के बारे में पूछे जाने पर नोएडा प्राधिकरण ने कहा कि उसने अभी इस रिपोर्ट का अध्ययन नहीं किया है।

रिपोर्ट के अनुसार इस स्कीम में संदेहास्पद ढंग से आवंटन किए जाने से सरकारी खजाने को 2,833 करोड़ रुपये का चूना लगा है। रिपोर्ट में नवीन ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण (नोएडा प्राधिकरण) की नीतियों कई गड़बड़ियों का भी जिक्र किया गया है। इसके मुताबिक प्राधिकरण की इन कमियों से सरकारी खजाने को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ।

प्राधिकरण की मुख्य कार्यपालक अधिकारी ऋतु माहेश्वरी ने बताया, ‘अतीत में आवंटन से संबंधित खामियों को सही किया जा रहा है। मसौदा रिपोर्ट में उठाए गए कुछ बिंदुओं से हम सहमत थे जबकि कुछ बिंदुओं पर प्राधिकरण ने जवाबी तथ्य भी रखे थे। अंतिम रिपोर्ट का अभी अध्ययन किया जाना बाकी है।’

भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की वरिष्ठ अधिकारी माहेश्वरी ने कहा कि रिपोर्ट के अध्ययन के बाद सरकार से मिले निर्देशों के अनुरूप कदम उठाए जाएंगे। CAG ने फार्महाउस प्लाट के आवंटन पर कहा है कि वर्ष 2008-11 के दौरान ऐसी दो स्कीम लाई गई थीं जिनमें 157 आवेदकों को 18.37 लाख वर्ग मीटर क्षेत्र की जमीन आवंटित की गई। वहीं CAG रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों फार्महाउस स्कीम  पूर्व-अनुमति एवं निर्धारित प्रक्रिया के बगैर ही लाई गई थीं। रिपोर्ट के मुताबिक, ये दोनों योजनाएं प्राधिकरण की क्षेत्रीय योजना के अनुरूप नहीं थीं जिसमें रिहायशी क्षेत्र से दूर फार्महाउस के विकास की बात कही गई थी। इसके साथ ही कैग ने फार्महाउस प्लॉट के लिए आरक्षित मूल्य कम रखने को लेकर भी सवाल उठाए हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘नोएडा प्राधिकरण ने किसानों से जमीन खरीदी और कंपनियों के दफ्तरों वाले एक विकसित इलाके से सटकर फार्महाउस के प्लाट आवंटित कर दिए।’ कैग ने अपनी रिपोर्ट में फार्महाउस प्लाट की दरें बहुत कम रखे जाने पर भी सवाल उठाए हैं।  इसमें कहा गया है कि बाजार दर के हिसाब से भुगतान की क्षमता रखने वाले आवंटियों को भी 3,100 रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से प्लाट दिए गए जबकि वर्ष 2008-09 में न्यूनतम दर 14,400 रुपये प्रति वर्ग मीटर थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि इतनी कम दर पर प्लाट आवंटित किया जाना काफी संदेहास्पद है और इससे आवंटियों को 2,833 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ हुआ जिससे प्राधिकरण को बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ। उसने प्लॉट का आवंटन भी पारदर्शी तरीके से नहीं होने की बात कही है।

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