लक्ष्मी कान्त द्विवेदी
दिल्ली की सियासत में जूते उतारने के बाद हाथ धोने या न धोने के सवाल पर बहस छिड़ गयी है। भाजपा के लोग जहां हाथ धोना जरूरी बता रहे हैं, वहीं आम आदमी पार्टी के नेताओं का कहना है कि, भाजपा के लोग पोंगापंथ की राजनीति कर रहे हैं।
अब आम आदमी पार्टी के इन नेताओं को कौन समझाये कि, जूते उतारने के बाद हाथ न धोना सरासर गलत है, शास्त्र के अनुसार तो है ही आधुनिक विज्ञान के हिसाब से भी।
दरअसल इस विवाद की शुरुआत आज दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष मनोज तिवारी के एक ट्वीट से शुरू हुई, जिसमें उन्होंने मतदान करने के बाद कहा था कि, मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल कल हनुमानजी की पूजा करने गये थे या उन्हें अशुद्ध करने। उन्होंने जूते उतार कर बिना हाथ धोये उसी हाथ से माला लेकर हनुमानजी को चढ़ा दिया। जब मैंने उक्त वीडियो देखा तो मुझे बहुत तकलीफ़ हुई। मैंने पुजारी जी से कहा तो उन्होंने बहुत बार हनुमान जी को धोया। मनोज तिवारी ने यह भी कहा कि, वैसे हनुमानजी ने केजरीवाल की पूजा स्वीकार नहीं की। जब उन्होंने उक्त माला हनुमानजी की ओर फेंकी तो वह उनके गले में पड़ने के बजाय नीचे गिर गयी। उनका कहना था कि जब नकली भक्त मंदिर जाते हैं, तब यही होता है।
मनोज तिवारी का बयान आते ही आम आदमी पार्टी के नेताओं ने जवाब देने में जरा भी देर नहीं लगायी। पहले तो अरविन्द केजरीवाल एवं संजय सिंह ने बड़ी सफाई से बात घुमाते हुए कहा कि, यह भाजपा की अत्यंत गंदी राजनीति है। वे आज भी उसी युग में जी रहे हैं, जिसमेें दलितों को मंदिर में घुसने तक की मनाही थी। केजरीवाल ने ट्वीट कहा, ‘जब से मैंने एक टीवी चैनल पर हनुमान चालीसा का पाठ किया, तभी से भाजपा के लोग लगातार मेरा मजाक उड़ा रहे हैं। कल मैं हनुमानजी का दर्शन-पूजन करने गया था। आज भाजपा के लोग कह रहे हैं कि, मेरे जाने से हनुमानजी अशुद्ध हो गये।यह कैसी राजनीति है? भगवान तो सबके हैं। भगवान सभी को आशीर्वाद दें, भाजपा वालों को भी। सबका भला हो।’ इसके बाद आप सांसद संजय सिंह ने कहा, इससे घटिया बात और कुछ हो ही नहीं सकती। भाजपा के लोग दिल्ली के मुख्यमंत्री को अछूत मानते हैं। ये लोग आज भी उसी युग में जी रहे हैं, जब दलितों को मंदिरों में घुसने तक नहीं दिया जाता था। लेकिन जब पत्रकारों ने कहा कि, बात जाति की नहीं, बल्कि हाथ धोने की है तो उन्होंने इसे पोंगापंथ करार दिया।
बहरहाल संजय सिंह कभी यह साबित नहीं कर सकते कि, किसी भी गंदी चीज को, चाहे वह मल हो या जूता, छूने के बाद हाथ धोना पोंगापंथ या अंधविश्वास है। आधुनिक विज्ञान भी इसका समर्थन करता है। भोजन के बाद जूठा हाथ धोना भी आवश्यक माना जाता है। अब तो विश्व स्वास्थ्य संगठन भी पूरी दुनिया में बाकायदा इसका एक दिवस मनाता है, ताकि लोग इसके प्रति जागरूक हों। केजरीवाल और संजय सिंह चाहें तो अपने मोहल्ला क्लीनिक के डाक्टर या अपने स्कूलों के किसी टीचर से भी इसकी तस्दीक कर सकते हैं।
अब बात आती है धर्म शास्त्रों की। सनातन धर्म के संबंध में कहा गया है-
धृति, क्षमा दमोस्तेयं, शौचमीन्द्रिय निग्रह, धी, विद्या, सत्यमक्रोध: दशकं धर्मलक्षणं।
इसमें शौच का तात्पर्य अंत:करण और स्थूल देह की स्वच्छता से है। यही कारण है कि, सनातन धर्म में शुद्ध अंत:करण और शरीर से ही पूजा-पाठ, भोजन आदि करने का विधान है। टीवी पर बहस के दौरान एक वरिष्ठ पत्रकार महोदय ने भी संत रविदास का उदाहरण देते हुए कहा कि, वह जूता सिलते समय भी भगवत्स्मरण करते रहते थे और उनका कहना था कि मन चंगा, तो कठौती में गंगा। लेकिन शायद उन्होंने दो महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान नहीं दिया। पहली तो यह कि निर्गुण साधना के भगवत्स्मरण और सगुण उपासना के मूर्ति पूजन के विधि-विधान में काफी फर्क है और दूसरी बात यह कि, स्वयं संत रविदास ने ही शर्त रख दी थी कि, ‘मन चंगा’। यानी अंत:करण की शुद्धि होने पर ही कठौती में गंगा मिलेंगी, अन्यथा नहीं। और सिर्फ सनातन धर्म ही क्यों, सभी धर्मों में साफ-सफाई पर जोर दिया जाता है। नमाज अदा करने के पहले भी वजू करना जरूरी है। बेहतर होगा कि केजरीवाल अपनी भूल स्वीकार कर लें और नयी पीढ़ी को दिग्भ्रमित न करें, जिसे विश्व हाथ धोना दिवस मना कर एक अच्छा काम सिखाया जा रहा है। अन्यथा हाथ तो गंदा है ही, मन भी चंगा नहीं हो सकेगा।