महामारी के बाद अब उल्कापिन्ड गिरने से डूब जाएंगे कई देश ?
विशेष संवाददाता
ऐसे समय जब पूरी दुनिया कोरोना वायरस के खतरे से जूझ रही है, एक बार फिर नास्त्रेदम की भविष्यवाणियों की चर्चा शुरू हो गयी है। कुछ लोग दावा कर रहे हैं कि उन्होंने अपनी पुस्तक में कोराना वायरस का जिक्र किया है। उनके मुताबिक नास्त्रेदम ने कहा है कि, समुद्र से सटे एक शहर में बड़ी महामारी फैलेगी, जिसके शिकार लाखों लोग होंगे। इसके साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि, तब आसमान से एक उल्कापिंड गिरेगा, जिसकी वजह से अनेक महान देश समुद्र के पानी में डूब जाएंगे।
समीक्षकों के मुताबिक, हिन्द महासागर में गिरेगा उल्कापिंड
कहा जा रहा है कि जिस शहर का जिक्र नास्त्रेदम ने किया है, लगता है वह चीन का वुहान शहर ही है। यहां समुद्री जीवों का कारोबार होता है। चीन के इसी शहर से कोरोना वायरस फैला है। हालांकि अब लोग यह भी प्रचारित कर रहे हैं कि नास्त्रेदम ने कहा था कि जब महामारी फैलेगी, उस समय आसमान से आफत गिरेगी, अर्थात उल्का पिंड गिरेगा। ‘एक मील व्यास का एक गोलाकार पर्वत अंतरिक्ष से गिरेगा और महान देशों को समुद्री पानी में डुबो देगा। यह घटना तब होगी, जब शांति को हटाकर युद्ध, महामारी और बाढ़ का दबदबा होगा। इस उल्का द्वारा कई प्राचीन अस्तित्व वाले महान राष्ट्र डूब जाएंगे।’ समीक्षक और व्याख्याकार इस उल्का के गिरने का केंद्र हिन्द महासागर को मानते हैं।
ऐसे में मालदीव, बुनेई, न्यूगिनी, फिलीपींस, कंबोडिया, थाईलैंड, बर्मा, श्रीलंका, बांग्लादेश, भारत, पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका के तटवर्ती राष्ट्र तथा अरब सागर से लगे राष्ट्र डूब से प्रभावित होंगे।
चीन करेगा रासायनिक हमला
नास्त्रेदम के मुताबिक चीन और अरब का गठजोड़ विश्व में तबाही लाएगा। नास्त्रेदम ने अपनी एक भविष्यवाणी में कहा है कि, जब तृतीय विश्वयुद्ध चल रहा होगा, उस दौरान चीन के रासायनिक हमले से एशिया में तबाही और मौत का ऐसा मंजर होगा, जो आज तक कभी नहीं हुआ। फिर अमेरिका और रूस मिलकर हमालावर देश पर कीटाणु का हमला करेंगे। बचाव का कोई चारा न देख वे ऐसा करेंगे। नास्त्रेदम लिखते हैं कि इस तरह धीरे-धीरे अमेरिका और रूस मिलकर अरब और चीन की फौजों को पीछे धकेलते जाएंगे और अंत में हमलावार खुद अपने देश में सत्ता गवां कर शक्तिहीन हो जाएंगे।
नास्त्रेदम की भविष्यवाणियों को लेकर मतभेद
अब ये भविष्यवाणियां सही हैं या गलत, यह कहना मुश्किल है। अधिकतर लोग इसे अफवाह ही मानते हैं। उनका कहना है कि हर पांच-दस साल में कोई न कोई महामारी फैलती ही है। कोरोना से पहले प्लेग, हैजा, कॉलरा, स्पेनिश फ्लू, इबोला आदि महामारियां फैल चुकी हैं। जहां तक उल्कापिंड का सवाल है, तो रोज हजारों पत्थर धरती पर गिरते रहते हैं, जो बड़े पत्थर होते हैं वे धरती के वायुमंडल के संपर्क में आते ही टूटकर बिखर जाते हैं। लेकिन कुछ लोग यह भी मानते हैं कि उल्कापिंड के कारण ही डायनासोर जैसे जीव-जंतु लुप्त हो गये हैं। ऐसे में उल्कापिंड के खतरे को नकारा नहीं जा सकता।
धरती को उल्कापिंड से बचाने का कोई उपाय नहीं
गौरतलब है कि, मानव ने ठंड से बचने के उपाय तो ढूंढ लिये, भूकंप, तूफान और ज्वालामुखी से बचने के उपाय भी ढूंढ लिये हैं, लेकिन धरती को सूर्य, एस्ट्रायड या अन्य ग्रहों के दुष्प्रभाव से कैसे बचाया जाए, इसका उपाय अभी नहीं ढूंढा है। धरती को बचाये रखना है, तो जल्द ही इसके उपाय खोजने होंगे। एस्ट्रायड (उल्कापिंड) या गैसीयपिंड के धरती के नजदीक से गुजरने की कई घटनाएं दर्ज की गयी हैं। वर्तमान में भी धरती पर उल्कापिडों का खतरा बना हुआ है। वैज्ञानिक कहते हैं कि यदि कोई बड़ा उल्कापिंड धरती से टकराया, तो क्या होगा कहना मुश्किल है, लेकिन तबाही जरूर होगी।
कई उल्कापिंड आ रहे पृथ्वी के करीब
वैज्ञानिक मानते हैं कि उल्कापिंड धरती पर महाविनाश ला सकता है। ऐसी कई विनाशकारी उल्कापिंड हैं, जो धरती के नजदीक आ रहे हैं। उन्हीं में से एक नाम 2002 एनटी-7 है तो दूसरे का नाम ‘2005 वाय-यू 55’ और तीसरा नाम है एपोफिस। इसके अलावा हर्कोलुबस की बात भी की जाती है, लेकिन यह अपुष्ट है। एपोफिस 37014.91 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से पृथ्वी से टकरा सकता है। इससे भी बड़ा उल्कापिंड ‘2005 वाय-यू 55’ है। हालांकि कौन सा उल्कापिंड कब टकराएगा, इसका सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है। यह भी कहा जाता है कि, हो सकता है ये उल्कापिंड धरती से न टकरायें, बल्कि उसके पास ही ही गुजर जाएं और यह भी हो सकता है कि ये उल्कापिंड अपना रास्ता ही बदल दें।