दृगविंदु मणि सिंह
सामाजिक कार्यकर्ता

अभी कुछ ही दिनों पूर्व टुकडे टुकडे गैंग की सक्रिय सदस्य शहला रशीद ने मुस्लिम दलितों के लिए आरक्षण की एससी संवर्ग में से मांग की थी। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा कि अगर मुस्लिमों से दोस्ती चाहते हो तो एस सी संवर्ग से ‘दलित मुस्लिमों’ को आरक्षण दो जिससे यह साबित हो कि भारत धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं करता।

अब एक हालिया घटनाक्रम में सुप्रीम कोर्ट ने अल्पसंख्यक निकाय ‘नेशनल काउंसिल ऑफ दलित क्रिश्चियंस’ की याचिका विचार करने के लिए स्वीकार की है। इस याचिका में अनुसूचित जाति मूल के ईसाइयों को अनुसूचित जाति जैसा लाभ देने का सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है।इस याचिका में अपील की गई है कि अनुसूचित जाति समुदाय को धार्मिक आधार से मुक्त किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में सरकार से दो हफ्ते में जवाब मांगा है साथ ही इसी प्रकार के एक और मामले को इस मामले के साथ जोड़ दिया है। इस मामले की सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने कहा इस्लाम में भी यही समस्या आती है क्यों न इन मामलों को एक साथ सुना जाए । इस्लाम में भी कोई आरक्षण नहीं है। नेशनल काउंसिल ऑफ दलित क्रिश्चियंस ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करके ईसाइयों में दलितों के लिए अनुसूचित जाति का दर्जा मांगा है जिससे कि ईसाई दलितों को भी हिंदुओं में अनुसूचित जाति को मिलने वाले आरक्षण का लाभ मिले। नेशनल काउंसिल ऑफ दलित क्रिश्चियंस की तरफ से याचिका दायर करने वाले वकील फ्रैंकलिन सीजर थॉमस ने याचिका में कहा कि एक अनुसूचित जाति का व्यक्ति अगर हिंदू धर्म छोड़कर सिख धर्म या बौद्ध धर्म अपनाता है तो उसे संविधान के पैराग्राफ 3 (अनुसूचित जाति) आदेश ,1950 से वंचित न किया जाए।

इस संदर्भ में यहां इस बात का उल्लेख करना आवश्यक हो जाता है कि भारत में सख्त धर्मांतरण संबंधी कानून लाने की बात भी लंबे समय से हो रही है जिससे कि धर्मांतरण के दुरुपयोग को रोका जा सके और धर्मांतरण करने वाले का हित सुरक्षित रहे। अब तक यह देखा जाता रहा कि धर्मांतरण करने वाले एवं धर्मांतरण कराने वाले यह कहते रहे हैं के जिस धर्म में वे थे वहां भेदभाव और उछुआछूत की भावना से आहत थे और यह प्रमुख वजह रही उनके धर्मांतरण की। भारतवर्ष में प्रमुखतया हिंदू धर्म से ईसाई एवं मुस्लिम धर्म में धर्मांतरण सदियों से हो रहे हैं। कुछ इसको शान्तिपूर्वक और कुछ लोग बलपूर्वक या प्रलोभन द्वारा धर्मांतरण कहते रहे हैं । अब जबकि दायर याचिका में यह मांग की गई है कि हिंदू धर्म छोड़कर कोई अनुसूचित जाति का व्यक्ति सिख या बौद्ध धर्म अपनाता है तो उसे भी अनुसूचित जाति के तहत लाभ दिए जाएं, तब ऐसे में यह प्रश्न उठना वाजिब है कि क्या हिन्दू अनुसूचित जाति के व्यक्ति का धर्मांतरण इसलिए नहीं हो रहा कि वह धर्मांतरित व्यक्ति केवल अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए या प्रलोभन में धर्मांतरित हो रहा है और वह दूसरे धर्म में मिलने वाले लाभ जैसे अल्पसंख्यक वर्ग के लाभ को उठाने के साथ ही अनुसूचित जाति , जनजाति का भी लाभ लेना चाहता है ?

यहां दूसरा प्रश्न यह भी उठता है कि जब हिंदू अनुसूचित जाति अथवा हिंदू अनुसूचित जनजाति अथवा हिंदू पिछड़ा वर्ग अथवा हिंदू सामान्य वर्ग का व्यक्ति यदि ईसाई या इस्लाम में धर्मांतरित होकर भी दलित ईसाई, दलित मुसलमान, ईसाई अनुसूचित जाति, मुसलमान अनुसूचित जाति, ईसाई अनुसूचित जनजाति , मुसलमान अनुसूचित जनजाति, ईसाई पिछड़ा वर्ग , मुस्लिम पिछड़ा वर्ग, ईसाई सामान्य जाति, मुसलमान सामान्य , सिख, बौद्ध में भी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति ही बन कर रह जाता है और जाति के परे कभी ईसाई, मुसलमान, सिख, बौद्ध नहीं बन पाता तो ऐसे धर्मांतरण का महत्व और औचित्य ही क्या रह जाता है ? ऐसे कौन से कारण है कि धर्मांतरित व्यक्ति की जाति तो पिछले धर्म की ही रह जाती है । इससे भी बड़ा प्रश्न यह है कि धर्मांतरित होकर भी जब व्यक्ति दलित, पिछड़ा और भेदभाव का शिकार ही रहे तो धर्मांतरित ही क्यों हो ?

धर्मांतरण के ऐसे मामलों में धर्मांतरित व्यक्ति आगे भेदभाव न होने के मुद्दे पर छला जाता है और यदि इन्हें आरक्षण दिया जाता है तो यह एस सी एस टी के हक पर कब्जा करना होगा, जो संविधान की भावना और एस सी एस टी आरक्षण कानून के विरुद्ध होगा।

आंध्र प्रदेश, झारखंड समेत करीब दस राज्यों ने धर्मांतरण कानून के तहत धर्मांतरित दलितों की सुविधा समाप्त कर दी है।

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