डॉन ने अपनी संपादकीय में लिखा है, ”हम मुस्लिम दुनिया में एकता की बात तब कर रहे हैं जब आपस में ही इस्लामिक देश युद्ध कर रहे हैं। सीरिया, यमन और लीबिया में मुसलमान एक दूसरे के ख़ून के प्यासे हैं। इन देशों में हज़ारों लोग मारे गए हैं। घायलों और बेघरों की कोई गिनती नहीं है। इस त्रासदी में कुछ ग़ैर-मुस्लिम मुल्क भी हैं लेकिन इनकी भूमिका सीमित है। इन तीनों देशों में लड़ने वाले मुसलमान ही हैं। यमन में दो बड़े मुस्लिम देश सऊदी अरब और ईरान पिछले चार सालों से लड़ रहे हैं ।

आपस में ही लड़ रहे मुसलमान

डॉन ने लिखा है, ”हाल ही में अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के मध्य-पूर्व के शांति योजना पर जेद्दा में ओआईसी की बैठक हुई तो इसमें ईरानी प्रतिनिधिमंडल को आने से रोक दिया गया।

कश्मीर में 370 के खात्मे के विरोध में सिर्फ दो देश खुल कर बोले

भारत ने पिछले साल पाँच अगस्त को कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म किया तो मलेशिया और तुर्की के अलावा कोई मुस्लिम देश खुलकर सामने नहीं आया। खाड़ी के एक देश ने तो कहा कि यह भारत का आंतरिक मामला है। यहां तक कि पिछले साल यूएई में आयोजित ओआईसी की बैठक में भारत के विदेश मंत्री को मेहमान के तौर पर बुलाया गया था। आज की तारीख़ में मुसलमानों की बड़ी आबादी औद्योगिकीकरण से पहले के वक़्त में रह रही है। दूसरी तरफ़ तीसरी दुनिया के ज़्यादातर देश अपने संसाधनों का इस्तेमाल अंतरिक्ष और डिज़िटल विकास में कर रहे हैं।”

डॉन ने लिखा है कि ‘मुस्लिम देशों के पास बेशुमार दौलत है लेकिन ये साइंस और शिक्षा में निवेश नहीं कर रहे।”

पहले हमें अपने घरों को ठीक करना होगा

इस संपादकीय में लिखा है, ”गिन-चुने मुसलमान हैं जिन्हें नोबेल सम्मान मिला है। दूसरी तरफ़ मामूली आबादी वाले यहूदियों को 200 के क़रीब नोबेल सम्मान मिले हैं। दुनिया की कुल आबादी में यहूदी मामूली हैं लेकिन अब तक मिले कुल नोबेल सम्मान में यहूदियों को 20 फ़ीसदी नोबेल मिले हैं। इसमें इसराइल को कुल 12 नोबेल सम्मान मिले हैं। अगर हम चाहते हैं कि मुस्लिम दुनिया से एक आवाज़ आए तो पहले अपने घरों को ठीक करना होगा।’

इमरान ख़ान से मलेशिया में पत्रकारों ने जब पूछा कि ‘क्या वे अगले साल कुआलालंपुर के इस्लामिक समिट में आएंगे?’ तो उन्होंने जवाब में हाँ कहा था।

शायद इमरान ख़ान ने सऊदी को संदेश देने की कोशिश की है कि अब वो कश्मीर को लेकर सऊकी के कहे पर भरोसा नहीं करेगा।

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