विशेष संवाददाता

बेमेल गठजोड़ से बनी उद्धव सरकार पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। भाजपा विरोध की बुनियाद पर बनी शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस की अघाड़ी में खींचतान तो उसकी पैदाइश के साथ ही चल रही थी, लेकिन भीमा-कोरेगांव मामले की जांच एनआईए को सौंपने का उद्धव का फैसला शरद पवार को इतना नागवार गुजरा है कि, उन्होंने अपनी पार्टी के सभी मंत्रियों की बैठक बुला ली है। समझा जाता है कि, कल वह कोई बड़ा कदम भी उठा सकते हैं।

एनपीआर को लेकर कांग्रेस, तो शहरी नक्सलियों के लिए राकांपा नाराज

गौरतलब है कि, कांग्रेस और एनसीपी ने सिर्फ भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए ही शिवसेना को समर्थन दिया है। विरोध की बुनियाद पर बनी इस सरकार को न्यूनतम साझा कार्यक्रम के सहारे चलाया जा रहा है। लेकिन कई ऐसे राष्ट्रीय-स्थानीय मुद्दे सामने आते जा रहे हैं कि, शिवसेना और उनकेे विचारों में जमीन-आसमान का फर्क दिखने लगता है। बात नागरिकता कानून और एनपीआर की हो या भीमा-कोरेगांव हिंसा की जांच में फंसे कथित शहरी नक्सलियों की। हर मामले में वैचारिक स्तर पर बुनियादी अंतर साफ नजर आया। नागरिकता कानून पर तो कांग्रेस की नाराज़गी के बाद उद्धव ने लोकसभा में समर्थन करने के बाद राज्य सभा में वाकआउट कर दिया था, लेकिन एनपीआर को हर दस साल पर होने वाली सामान्य जनगणना बता कर लागू करने की बात कांग्रेस को कतई हजम नहीं हो रही है। उधर शरद पवार को भी इन आरोपितों की, जिन्हें हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी खुला छोड़ने से साफ इनकार कर चुके हों, इतनी चिंता है कि उन्होंने अपनी पार्टी के सभी मंत्रियों की बैठक बुला ली।

भाजपा ने उद्धव से कहा-धन्यवाद, पर हिम्मत है तो चुनाव करा कर देख लें

दूसरी ओर पूर्व मुख्य मंत्री एवं भाजपा विधायक दल के नेता देवेन्द्र फडनवीस ने उद्धव ठाकरे को इस फैसले के लिए धन्यवाद दिया है। वैसे इसके साथ ही उन्होंने चुनौती भी दे दी कि, हिम्मत हो तो शिवसेना फिर चुनाव करा कर देख लें, भाजपा अकेले तीनों पार्टियों को हरा देगी।

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