कोरोना के खौफ़ से जहां एक ओर आम आदमी ज़रूरत का हर सामान जुटाने की फ़िक्र में बेतरह परेशान और बेहाल हुआ जा रहा है वहीं आफ़त के इस दौर में मुनाफ़ाख़ोरों और जमाखोरों की चांदी हो गयी है। कोरोना से बचाव के लिए आवश्यक समझे जा रहे मास्क और सैनिटाइजर के कृत्रिम अभाव का हौवा खड़ा कर मनमानी कीमत वसूली जा रही है।
सरकार ने इस स्थिति का संज्ञान लेते हुए अब इस पर लगाम कसने के लिए जल्द ही मास्क और सैनिटाइजर की अधिकतम कीमत तय करने का निर्णय लिया है।आज मंगलवार को इसी उद्देश्य से कई मंत्रालयों के अधिकारियों के बीच बैठक आयोजित की गई। बैठक में स्वास्थ्य, वाणिज्य एवं उद्योग, टेक्सटाइल मंत्रालयों के साथ एनपीपीए के अधिकारी शामिल हुए। मास्क व सैनिटाइजर बनाने वाले उद्यमियों के प्रतिनिधियों ने भी बैठक में हिस्सा लिया। बैठक में शामिल एक अधिकारी के मुताबिक मनमानी कीमतों पर नियंत्रण को लेकर गहन विचार-विमर्श किया गया, लेकिन मास्क उद्यमियों के एक एसोसिएशन ने यह सवाल उठाया कि मास्क से जुड़े कच्चे माल का अब भी निर्यात हो रहा है। पहले उस पर पाबंदी लगाई जाए फिर मास्क की अधिकतम कीमत तय हो। माना जा रहा है कि दो-तीन दिनों में कीमतों के बारे में फैसला हो जाएगा।
दिया जा सकता है ड्रग्ज का दर्जा
मास्क एवं सैनिटाइजर की मनमानी कीमत पर रोक के लिए इन दोनों वस्तुओं को ड्रग्स का दर्जा दिया जा सकता है। ड्रग्स का दर्जा मिलते ही इसकी कीमत नेशनल फार्मास्यूटिकल्स प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) द्वारा तय होगी और उस कीमत से अधिक दाम पर इसे बाजार में नहीं बेचा जा सकेगा। कोरोना फैलने से पहले तक हमारे देश में 10 लाख मास्क बनते थे। लेकिन भारत में कोरोना के मरीजों में बढ़ोतरी को देखते हुए मास्क की मांग करोड़ में पहुंचने का अनुमान है।
उद्यमियों के मुताबिक 100 एमएल के सैनिटाइजर की फैक्ट्री कीमत 25-27 रुपए है लेकिन बाजार में इसे 200-250 रुपए तक में बेचा जा रहा है। इसकी अधिकतम खुदरा कीमत (एमआरपी) 80-90 रुपए तक होनी चाहिए। वैसे ही, 3 प्लाइ तक के मास्क की फैक्ट्री कीमत महज एक रुपया है जबकि इसे खुदरा बाजार में 25-50 रुपए तक में बेचा जा रहा है। इसकी अधिकतम कीमत 5 रुपए तक हो सकती है। हालांकि सरकार ने मास्क और सैनिटाइजर की कालाबाजारी रोकने के लिए इन्हें आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी में रख दिया है लेकिन इससे मनमानी कीमत पर रोक नहीं लग सकती है।