पुण्य के श्वेत मुख पर पाप की कालिख पोतने में लगीं कंपनियां

कोरोना ने सारी मानवता का दर्प एक झटके में तोड़ा दिया है। नेचर ( nature) को कैप्चर करने की उसकी बदगुमानी की नींद खोल देने वाली कोविड19 महामारी को दगा देने में जुटे मानव का एक धतकरम सामने आया है।

जिस प्लाज़्मा ( plazma) से इनसान को जिंदगी मिलने की उम्मीद जगी है, उसी का कारोबार शुरू हो गया और मुंहमांगे दाम लिए जा रहे हैं। याद कीजिये, दूसरा विश्व युद्ध, तब अभावग्रस्त दुनिया में कुछ जरूरी चीजों का व्यापार कर कुछ लोग घराना बन बैठे, जो आज भी हैं। कुछ ऐसी तैयारी इस बार भी है। समझ में आ रहा है कि अर्थतंत्र को मजबूत करने के लिए, कोरोना एक कृत्रिम सहारा ही है। एक छद्म है, एक आड़ है। चीन (china ) है ही नज़ीर। पहले दर्द दिया फिर दवा भी बेचने लगा। अब दूसरे इस राह पर हैं। ताज़ा मामला प्लाज़्मा बेचने का आ रहा है।

अभी तो कोरोना की कोई दवा या टीका नही है, लेकिन प्लाज़्मा का शिगूफा तो है ही। इससे मरीजों के ठीक होने की बात आई है और महामारी से स्वस्थ हो चुके मरीजों के खून का प्लाज्मा इस्तेमाल करने की दुनिया में होड़ मच गई है। इसका लाभ उठाकर कई बायोटेक कंपनियां मुफ्त का प्लाज्मा लाखों रुपए में बेच रही हैं। दरअसल, प्लाज्मा में मौजूद एंटीबॉडी (anti body )से महामारी के कई गंभीर रोगी उबर चुके हैं।

खून की एक बूंद की कीमत लाखों में

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, कई वैश्विक कंपनियां रक्त के नमूने को लैब और जांच करने वाली कंपनियों को मुंहमांगी कीमत पर बेच रही हैं। कैलीफोर्निया की कैंटर बायोकनेक्ट ने खून की एक बूंद 26600 रुपए से तीन लाख चार हजार रुपए तक में बेची है। एक भारतीय कंपनी ने एक नमूने के 50 हजार डॉलर (तीन लाख 80 हजार रुपए) तक वसूले हैं। ब्रिटेन (britain ) की स्कॉटिश कंपनी ने एक ब्लड सैंपल के लिए 70 हजार रुपए लिए हैं। प्लाज्मा में एंटीबॉडी ( anti body)की मात्रा जितनी ज्यादा होगी, उसकी कीमत उतनी अधिक है।

ब्रिटिश जांच कंपनी मोलोजिक के चिकित्सा निदेशक डॉ. जो फिचेट ने कहा कि उन्होंने इतनी ज्यादा कीमत कभी नहीं देखी। रक्त का नमूना देने वाले भी इससे हैरान हैं। कोरोना से उबर चुकीं वाशिंगटन स्टेट की एलेसिया जेनकिंस को जब पता चला कि कंपनियां इससे लाखों रुपये कमा रही हैं, तो उन्होंने प्लाज्मा देने का इरादा बदल दिया। कैंटर बायोकनेक्ट 18 मार्च के बाद से सोशल मीडिया के जरिए कोरोना के मरीजों से संपर्क साध रही है और अमेरिका ही नहीं, जापान और यूरोप समेत कई देशों में रक्त के नमूने बेच चुकी है।

क्लीनिकल ट्रायल्स लैबोरेटरी सर्विसेस के लिए रक्त इकट्ठा करने वाले केंद्र के निदेशक केली सैप्सफोर्ड ने कहा कि दवा, वैक्सीन या टेस्ट किट या इलाज की तकनीक ईजाद करने के पहले उसे जांच और परीक्षणों से गुजरना पड़ता है और इसके लिए वायरस के पॉजिटिव नमूनों या स्वस्थ मरीज के प्लाज्मा की जरूरत पड़ती है। दुनिया भर के विषाणु विज्ञानी, शोधकर्ता, दवा कंपनियों में इन नमूनों को पाने की छटपटाहट है, जिसे बायोटेक कंपनियां कमा रही हैं।

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