अनिता चौधरी
राजनीतिक संपादक
कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने नागरिकता अधिनियम कानून के विरोध में उतरे जो दंगाई जेल गए हैं, उन सभी की क़ानूनी लड़ाई लड़ने का फैसला किया है । इस बाबत प्रियंका गांधी ने लखनऊ में सोमवार को उत्तरप्रदेश के सभी नेताओं और कार्यकर्ताओ के साथ बैठक भी की । इस बैठक में प्रमोद ,तिवारी, पीएल पुनिया और काँग्रेस के पूर्व केंद्रीय विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद भी शामिल रहे। काँग्रेस के इन वरिष्ठ नेताओं के अलावा प्रियंका गांधी ने वकीलों के साथ भी मंत्रणा की जिसमें इस कानूनी लड़ाई के लिए रोडमैप तैयार किया गया ।
काँग्रेस ने इस मुद्दे पर उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल को एक चिट्ठी भी लिखी है जिसमें इस पूरे मामले की न्यायायिक जांच की मांग की है ।
हालांकि काँग्रेस नागरिकता अधिनियम कानून के विरोध में हुए प्रदर्शन को शांतिपूर्ण बता रही है। लेकिन इस विरोध प्रदर्शन की तस्वीरें बता रहीं है कि ये विरोध पूर्णतयः हिसंक और पूर्व निर्धारित षड्यंत्र के तहत था । ऐसे में सवाल यह उठता है कि अब तक के सबसे हिंसक विरोध प्रदर्शन को लेकर आखिर काँग्रेस इतनी भावुक और सपोर्टिव क्यों है ?
हालांकि नागरिकता कानून को लेकर सबसे पहले विरोध असम से शुरू हुआ था जिसमें विरोध के चौथे दिन 4 लोगों की जानें भी गईं थी लेकिन इस विरोध में जनता पुलिस के विरोध में कभी हिंसक नही हुई थी। कुछ दिन बाद ही असम शांत भी हो गया था । असम का यह विरोध उसके स्टेट डेमोग्राफिक संरचना बिगड़ने के चलते था जो धर्मवाद से परे था । जब असम के लोगों ने यह पाया कि इस विरोध प्रदर्शन को बाहरी तत्व जो कि पश्चिम बंगाल की तृणमूल सरकार की सहयोगी पार्टी केपीपी के लोग थे, वो इस विरोध के समर्थन में उतरकर न सर्फ इसको हिंसक बनाने की कोशिश कर रहे हैं बल्कि इसे हिन्दू-मुस्लिम जैसे धार्मिक दंगे का रंग भी दे रहे हैं। असम ने यह देख कर अपना विरोध राज्य सरकार से बातचीत और आश्वासन मिलने के बाद बंद कर दिया ।
लेकिन असम के समर्थन में दिल्ली के जामिया से जब ये विरोध शुरू हुआ तो अपने हिंसक रूप के साथ ही सड़क पर उतरा और पूरे देश में फैल गया । जिसका सबसे वीभत्स चेहरा उत्तरप्रदेश में देखने को मिला । इस विरोध का हर रूप नागरिकता कानून के विरोध में कम और इस्लाम के समर्थन में ज्यादा दिखा । जहां अल्लाह हु अकबर, ला इलाही लिल्लालाह से लेकर पाकिस्तान जिंदाबाद तक के नारे लगे । इस हिंसक प्रदर्शन पर काबू करने गयी पुलिस और प्रशासन पर जम कर पत्थरबाजी ही नहीं की गयी बल्कि गोलियाँ भी चलायी गई। इस हिंसक दंगाई प्रदर्शन में तकरीबन 50 से ज्यादा पुलिसकर्मी गोली के शिकार हुए। सरकारी से लेकर निजी संपत्तियों को बिना किसी डर के बेखौफ हो कर जलाया और बर्बाद किया गया । हालांकि बाद में राज्य की योगी सरकार ने कड़ी काररवाई करते हुए इस दंगाई भीड़ से न सिर्फ सख्ती से निपटने का आदेश दिया बल्कि जली हुई संपत्ति की हुई हानि की भरपाई के भी आदेश दिए ।
हिंसक भीड़ के उपद्रव के दौरान गयी जान के बाद काँग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव दंगाइयों से तो मिलने और उनके दुख में आंसू बहाने तो पहुँची मगर एक बार भी इस विरोध प्रदर्शन वाली हिंसक भीड़ से शांति की अपील नही की । यहां तक कि कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी अपने एक जारी वीडियो संदेश के जरिये इस विरोध को अपना समर्थन तो दिया मगर शांतिपूर्ण प्रदर्शन की अपील नहीं की । ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या सत्ता की लालसा में अपने अस्तित्व को तलाशती कांग्रेस कश्मीर की पीडीपी पार्टी की राह पर चल पड़ी है जो हर आतंकी की मौत पर आंसू बहा कर उनकी हौसला अफजाई किया करती थी ।
वोट बैक की खातिर किसी भी राजनीतिक दल को देश और और उसका हित नहीं भूलना चाहिए। साथ ही उसे यह भी याद रखना चाहिए कि जब कोर्ट में सीसीटीवी फुटेज के अलावा हिंसा करती एक समुदाय विशेष की भीड़ के वीडियो पेश किए जाएंगे तब कांग्रेस की ओर से उपद्रवियो की पैरवी करने वाले वकीलों के पास इन सुबूतो की क्या काट होगी ?