नई दिल्ली । मध्य एशियाई देशों के साथ भारत के रिश्तों की नई शुरुआत गुरुवार को होने जा रही है। भारत-मध्य एशिया के पहले सम्मेलन के तहत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, किर्गिजस्तान, कजाखस्तान और तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपतियों के साथ बैठक होने वाली है। वैश्विक कूटनीति के तेजी से बदल रहे समीकरणों को देखते हुए भारत के लिए इस बैठक की बहुत ज्यादा अहमियत है, लेकिन इसके साथ ही कई सारी चुनौतियां भी दिख रही हैं।
सबसे बड़ी चुनौती चीन की तरफ से ही मिलती दिख रही है जिसके राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ होने वाली बैठक से ठीक दो दिन पहले उक्त पांचों देशों के राष्ट्रपतियों के साथ बैठक कर ली और इन सभी देशों को भारी-भरकम मदद देने का एलान भी कर दिया। भारत की तरफ से इन देशों के सहयोग से कुछ नई परियोजनाओं का एलान करने की तैयारी है।
विदेश मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि पहले भारत-मध्य एशिया सम्मेलन के तीन प्रमुख एजेंडे तय किए गए हैं। ये हैं कारोबार व कनेक्टिविटी, विकास कायरें में साझेदारी और सांस्कृतिक व आम जनों के बीच संपर्क को बढ़ावा देना। पिछले पांच वर्षो के दौरान मौजूदा सरकार ने इन पांचों देशों के साथ द्विपक्षीय रिश्तों को प्रगाढ़ करने के लगातार प्रयास किए हैं, लेकिन अब सामूहिक तौर पर गठबंधन को मजबूत करने का रास्ता भी आजमाया जाएगा।
पिछले कुछ वर्षो में कजाखस्तान के राष्ट्रपति पांच बार भारत आ चुके हैं जबकि प्रधानमंत्री मोदी दो बार (वर्ष 2015 व 2017 में) वहां की यात्रा कर चुके हैं। इसी तरह किर्गिजस्तान के साथ भारत की रणनीतिक साझेदारी है और वहां के राष्ट्रपति छह बार भारत व भारतीय प्रधानमंत्री दो बार वहां की यात्रा कर चुके हैं। ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति रहमान छह बार भारत आ चुके हैं। उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति सात बार भारत के राजकीय मेहमान बन चुके हैं। तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति भी तीन बार भारत यात्रा कर चुके हैं जो बताता है कि उच्च स्तर पर दोनों तरफ से रिश्तों को प्रगाढ़ करने की इच्छाशक्ति है।
भारत अपनी उभरती हुई अर्थव्यवस्था के मद्देनजर इन पांचों देशों में ज्यादा अवसर देख रहा है। खास तौर पर फार्मास्यूटिकल्स, आइटी और एजुकेशन सेक्टर में भारतीय कंपनियां इन सभी देशों में पैर फैलाना शुरू कर चुकी हैं। इन देशों के राष्ट्रपतियों के साथ बैठक में प्रधानमंत्री मोदी भारतीय कंपनियों के लिए ज्यादा सहूलियत की मांग करेंगे। एक दूसरा अहम मुद्दा चाबहार पोर्ट से इन देशों की कनेक्टिविटी को लेकर उठेगा। अफगानिस्तान में तालिबान के आने के बाद चाबहार पोर्ट की व्यवसायिक सफलता के लिए इन देशों को रेल व सड़क मार्ग से जोड़ना जरूरी है। इसमें भी चीन की चुनौती सामने आएगी क्योंकि वह पाकिस्तान में स्थापित ग्वादर पोर्ट से इन देशों को जोड़ने की पेशकश कर चुका है। चीन इन देशों को ग्वादर पोर्ट तक कनेक्टिविटी परियोजना भी लगाकर दे रहा है। गुरुवार की बैठक में भारत की पेशकश पर भी चर्चा होने की उम्मीद है। अफगानिस्तान और आतंकवाद का मुद्दा भी इसमें उठने की संभावना है।
सनद रहे कि पहले भारत-मध्य एशिया सम्मेलन के ठीक दो दिन पहले चीन के राष्ट्रपति चिनफिंग ने इस क्षेत्र के सभी पांचों देशों के राष्ट्रपतियों के साथ बैठक की है। माना जा रहा है कि इन देशों में भारतीय प्रभाव को चुनौती देने के लिए यह बैठक बुलाई गई थी। चिनफिंग ने इन देशों को 50 करोड़ डालर की मदद के अलावा, पांच करोड़ कोरोना वैक्सीन और तेजी से पूरा होने वाली ढांचागत परियोजनाओं का प्रस्ताव दिया है।