मुस्लिम जगत की रहस्यमय चुप्पी
विशेष संवाददाता
चीन की सरकार भले ही कोरोनावायरस के खिलाफ जंग में काफी हद तक कामयाबी मिलने का दावा कर रही हो, लेकिन उसका यह अभियान अब सवालों के घेरे में आता जा रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक नृशंसता की हद पार करते हुए चीनी सरकार डिटेंशन कैंप में बंद ऊइगुर मुस्लिमों के अंग निकालकर कोरोना पीड़ितों का इलाज कर रही है। इसमें सबसे ज्यादा अचरज और शर्म की बात तो यह है कि, भारत में तीन देशों से आने वाले शरणार्थियों को नागरिकता देने के मुद्दे पर हाय-तौबा मचाने वाले पाकिस्तान, बांग्लादेश, तुर्की, मलेशिया आदि मुस्लिम देश चीन की इस अमानवीय करतूत पर भी चुप्पी साधे हुए हैं।
अचानक प्रत्यारोपण के लिए आसानी से अंग उपलब्ध होने से गहराया संदेह
‘डेली स्टार’ और ‘बाइलाइन टाइम्स’ में छपी ख़बरों के मुताबिक, जाने-माने खोजी पत्रकार सीजे वर्लमैन ने दावा किया है कि ऐसे कई मामले सामने आये हैं, जिनमें कोरोना वायरस पीड़ितों की जान बचाने के लिए किसी अंग की ज़रूरत पड़ी और वह बड़ी ही आसानी से उपलब्ध करा दिया गया।
गौरतलब है कि यह पहली बार नहीं है जब चीन पर ऐसे आरोप लगे हैं। इससे पहले सितंबर 2019 में भी डिटेंशन कैम्पों में मुस्लिमों के साथ ज्यादती की ख़बरें आयी थीं। सी.जे. वर्लमैन के मुताबिक, चीन ने कुछ ही दिन पहले पहली बार दोहरे अंग प्रत्यारोपण (डबल ट्रांसप्लांट) के सफल ऑपरेशन का ऐलान किया था। यह ऑपरेशन 59 साल के एक शख्स की जान बचाने के लिए किया गया था, जो कोरोना वायरस के चलते अंग के काम न करने की समस्या से जूझ रहा था।
कोरोना के चलते सामान्य के मुकाबले अंगों की मांग काफी अधिक होने के बावजूद उस शख्स को दोनों ही अंग सिर्फ पांच दिन के भीतर उपलब्ध हो गये। ऐसे में ये सारे शक फिर से पैदा हो गये हैं कि, ये अंग आखिर आ कहां से रहे हैं?
दस हजार कोरोना पीड़ितों को मिल चुके हैं अंग
वर्लमैन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, ‘दुनिया इस बात को लेकर पहले ही चिंतित है कि, करीब 30 लाख ऊइगुर मुसलमान चीन के डिटेंशन कैम्पों में रह रहे हैं।’ चीन के मानवाधिकार कार्यकर्ता भी इस बात पर शक जाहिर कर रहे हैं कि, जहां चीन में एक फेफड़ा पाने के लिए भी वर्षों की प्रतीक्षा सूची है, वहीं कोरोना के मामले में ये सिर्फ कुछ ही दिनों में उपलब्ध करा दिया जा रहा है, वह भी पूर्ण मिलान के साथ। वह आगे कहते हैं कि, चीन उन देशों में है जहां अंगदान की दर बहुत कम है। फिर भी कोरोना के मामले में अभी तक ऐसी ख़बरें सामने आयी हैं जिनमें दस हजार लोगों को आसानी से अंग मिल गया है।
चीन पर पहले भी उठे हैं सवाल
गत 29 फरवरी को चीन में चल रहे अंगों के काले धंधे पर एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट भी सामने आयी थी। इस रिपोर्ट में भी यह दावा किया गया था कि डिटेंशन कैम्पों में बंद उइगुर मुस्लिमों के हृदय, गुर्दे, लीवर, फेफड़े, आंखें और त्वचा को भी निकालकर उनकी कालाबाजारी की जा रही है। ऊइगुर शिक्षाविद और व्हिसिल ब्लोअर अब्दुवेली अयूप ने भी बीते दिनों दावा किया था कि, डिटेंशन कैम्पों में अमानवीय अपराधों को अंजाम दिया जा रहा है। कोरोना के चलते अब डिटेंशन कैम्पों में बड़ी संख्या में ऑपरेशन किये जा रहे हैं और जबरदस्ती अंग निकाले जा रहे हैं। बता दें कि चीन पर कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने आरोप लगाया है कि सरकार मुस्लिमों का इस्तेमाल नयी दवाओं और अन्य मेडिकल टेस्ट के लिए भी कर रही है। हालांकि चीनी सरकार इन डिटेंशन कैम्पों को आतंकवाद और अलगाववाद के खिलाफ लड़ाई का नाम देती रही है।
मुस्लिम देशों की खामोशी समझ के बाहर
वैसे इस पूरे प्रकरण में मुस्लिम देशों की प्रतिक्रिया सबसे ज्यादा हैरान करने वाली रही। भारत में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले अल्पसंख्यक शरणार्थियों को नागरिकता देने के कानून या किसी यूरोपीय देश में किसी पत्रकार के किसी लेख या कार्टून पर दुनिया भर में हंगामा मचाने वाले मुस्लिम देशों की इतने गंभीर मामले में चुप्पी भी तमाम सवाल खड़े करती है। अभी हाल ही में ऊइगुर मुस्लिमों पर पूछे गये एक सवाल के जवाब में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने बड़ी मासूमियत के साथ कहा था कि, उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि, चीन उनका सबसे भरोसेमंद दोस्त हैं। आर्थिक, सामरिक और कूटनीतिक मोर्चों पर पूरी तरह से चीन पर निर्भर पाकिस्तान की बात तो फिर भी समझ में आती है। लेकिन अन्य मुस्लिम देशों का रवैया समझ से बाहर है। ऐसे यह सवाल उठना स्वाभाविक ही है कि, कहीं इसकी वजह वाम-जेहादी गठजोड़ तो नहीं?