सैटेलाइट इमेज से हुआ बड़ा खुलासा
हिन्द महासागर में ड्रैगन भेज रहा है युद्धपोत
एक तरफ जहां पूरी दुनिया कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई लड़ रही है। वहीं चीन इस मौके का फायदा उठाकर सैन्य महाशक्ति बनने के ख्वाब बुन रहा है। एक तरफ तो वह साउथ चाइना सी में अपनी गतिविधियां तेज कर रहा है। तो वहीं दूसरी ओर उसका टार्गेट हिन्द महासागर है। बड़ी बात ये है कि चीन का अपने तमाम पड़ोसियों के साथ किसी ना किसी रूप में विवाद चल रहा है और साउथ चाइन सी पर वो अपना दबदबा कायम करने में लगा हुआ है, जहां उसका सीधा टकराव अमेरिका के साथ चल रहा है। हालांकि ड्रैगन की ये डर्टी ट्रिक्स केवल साउथ चाइना सी तक ही सीमित नहीं है। भारत के उत्तर में उसका निशाना दुनिया की सबसे ऊंची चोटी यानी माउंट एवरेस्ट है। तो भारत के दक्षिण में वो अब हिंद महासागर में अपना दबदबा कायम करने में जुट गया है।
भारत की नाक के नीचे चीन के युद्धपोत भारत को घेरने के लिए दक्षिण एशिया के देशों में अपने सैन्य ठिकाने बना रहा है। वहीं इससे भी एक कदम आगे बढ़ते हुए अब सीधे-सीधे हिंद महासागर में अपना जहाजी बेड़ा उतारकर एक तरह से भारत के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है। यह इलाका भारतीय नौसेना के प्रभाव क्षेत्र में है। चाइनीज मिनिस्ट्री ऑफ नेशनल डिफेंस ने घोषणा की है कि नौसेना की 35वीं टास्क फोर्स को अदन की खाड़ी में उतारेगा। चीनी रक्षामंत्री का दावा है कि इसका मकसद हिंद महासागर में एंटी पायरेसी पेट्रोलिंग मिशन है। यह पहला मौका है जब चीन अपने जहाजों और पोतों को समुद्री लुटेरों से बचाने के लिए गाइडेड मिसाइल से लैस डेस्ट्रॉयर तैयान और फ्रिगेट जिंगझोऊ को उतार रहा है। इस टास्क फोर्स में 690 नौसैनिकों के अलावा दो दर्जन हेलीकॉप्टर और रिप्लेंशमेंट ऑयलर चाओहू भी शामिल है। चीन की यह फोर्स सोमालिया के तट पर जहाजों को सुरक्षा देगी। चीन की नौसेना दिसंबर 2008 से वहां समुद्री जहाजों को सुरक्षा प्रदान कर रही है। चीन ने यह हिंद महासागर में अपने जंगी जहाजों को उतारने का फैसला ऐसे वक्त किया है जबकि इंटरनेशनल मेरिटाइम ब्यूरो के मुताबिक पिछली दो तिमाहियों में वहां हाइजैकिंग की एक भी घटना नहीं हुई है। तो फिर चीन की इस चाल के पीछे असली मंशा क्या है। विशेषज्ञों की मानें तो इसके पीछे चीन की सोची समझी रणनीति है।
पेट्रोलिंग की आड़ में चीन की डर्टी ट्रिक्स
चीन ने हिंद महासागर के आसपास के देशों में अपने ठिकाने बना रखे हैं। अपनी महत्वाकांक्षी वन बेल्ट वन रोड प्रोग्राम के तहत वह जिबूती, पाकिस्तान के ग्वादर, म्यांमार और बांग्लादेश में अपने हित है। एंटी-पायरेसी पेट्रोलिंग की आड़ में वह अपने हित साधने में लगा है। कई रक्षा विश्लेषकों का मानना है कि चीन अपनी ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स ‘ नीति के तहत भारत को घेरने की रणनीति पर काम कर रहा है। हिंद महासागर में भारत का दबदबा चीन को नागवार गुजरता है। हालांकि भारतीय नौसेना अपने गढ़ को बचाने के लिए मुस्तैद है। उसने साफ कर दिया है कि कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई के बावजूद वह हिंद महासागर में पूरी ताकत के साथ जुटी हुई है। भारत ने भी अंडमान सागर से लेकर पूरे खाड़ी देशों तक हिंद महासागर में अपनी गश्त बढ़ा दी है। हालांकि इससे इंडियन नेवी को काफी खर्च करना पड़ रहा है।
भारत के करीब चीन बना रहा द्वीप
भारत को घेरने की फिराक में जुटा चीन हिंद महासागर में लक्षद्वीप से 684 किलोमीटर की दूरी पर एक कृत्रिम द्वीप का निर्माण कर रहा है। साउथ चाइना सी के तर्ज पर हिंद महासागर में नए द्वीप का निर्माण कर चीन सीधे तौर पर भारत के सामने सामरिक चुनौती पेश कर रहा है। हाल में ही सैटेलाइट तस्वीरों से चीन के इस नापाक चाल का खुलासा हुआ है। इन तस्वीरों को ओपन सोर्स इंटेलिजेंस एनॉलिस्ट Detresfa ने जारी किया है।
चीन के जाल में बूरी तरह फंसा है मालदीव
मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने अपने कार्यकाल के दौरान 2016 में Feydhoofinolhu समेत 16 द्वीपों को चीनी कंपनियों को लीज पर दिया था। अब चीन इन द्वीपों पर बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य कर रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, इस द्वीप में इतने बड़े पैमाने पर चीन द्वारा धन के निवेश के पीछे भारत को घेरने की साजिश है। हथियारों के खरीद फरोख्त पर नजर रखने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था सिपरी के एक्सपर्ट हेंस क्रिस्टेंसन ने कहा है कि मालदीव के एक द्वीप को तत्कालीन चीनी सरकार ने 4 मिलियन डॉलर में चीन को 2016 में लीज पर दे दिया था। अब चीन यहां साउथ चाइना सी के तर्ज पर अपने बेल्ट और रोड इनिशिएटिव के रूप में भारत को घेरने की कोशिश कर रहा है। भारत के वैश्विक स्तर पर बढ़ते साख से घबराए चीन ने हिंद महासागर में स्थित कई देशों को अपने कर्ज के जाल में फंसा रखा है। चीन वैश्विक व्यापार और अपने इंफ्रास्टक्चर प्लान के जरिए इन देशों में अपनी पकड़ को मजबूत कर रहा है। इस कड़ी में 90 हजार वर्ग किलोमीटर में फैला मालदीव उसका पसंदीदा शिकार बना। चीन ने मालदीव में अरबों डॉलर का निवेश किया हुआ है। ये सब पिछली सरकार के कार्यकाल में हुए हैं। इसमें 83 करोड़ डॉलर की लागत से राजधानी माले में बनने वाला एयरपोर्ट भी शामिल है। भारत को डर है कि चीन अपनी निर्माण कंपनियों की आड़ में मिलिट्री बेस स्थापित कर सकता है।
भारत के लिये कितना बड़ा है ये ड्रैगन संकट
मालदीव हिंद महासागर से आने-जाने वाले जहाजों के मुख्य मार्ग पर स्थित है। हर साल इस रास्ते से अरबों का व्यापार होगा है। दूसरी तरफ चीन यहां से भारत पर भी कड़ी नजर रख सकता है। इस द्वीर से चीनी जहाजों को भारत आने में 20 से 25 मिनट का समय लगेगा।
हालांकि इस वक्त भारत के मालदीव के साथ रिश्ते काफी ठीक हो रहे हैं। लेकिन अब्दुल्ला यामीन के कार्यकाल में भारत की मालदीव से तल्खी बहुत बढ़ गई थी। यहां तक की भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मालदीव की अपनी यात्रा तक को निरस्त कर दिया था। अब्दुल्ला यामीन चीन के करीबी नेताओं में शुमार थे। हालांकि सितंबर 2018 में हुए चुनावों में यहां अब्दुल्ला यामीन को हार का मुंह देखना पड़ा था। मालदीव के नए राष्ट्रपति बने इब्राहिम मोहम्मद सोलिह भारत के करीबी माने जाते हैं।