नई दिल्ली | पूर्वी लद्दाख में गत अप्रैल से जारी भारत-चीन के बीच सीमा विवाद अभी तक किसी अंजाम तक नहीं पहुंच सका है। दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण माहौल बने हुए हैं। चीन की मंशा अच्छी नही लग रही है। क्योकि उसने सिर्फ लद्दाख ही नहीं, बल्कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के अन्य हिस्सों में भी सैन्य उपस्थिति बढ़ाई है।

पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के वेस्टर्न थिएटर कमांड के तहत आने वाली एलएसी पर चीन ने पहले की तुलना में काफी मिलिट्री इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाया है। इंफ्रास्ट्रक्चर अपग्रेड पर नए सिरे से फोकस और तैनाती किए जाने से भारतीय अधिकारियों को संदेह होने लगा है कि यह राष्ट्रपति शी जिनपिंग के तिब्बत का ‘चीनीकरण’ करने की कोशिशों का भी हिस्सा हो सकता है।

एक शीर्ष योजनाकार ने कहा कि हम अपेक्षा कर रहे थे कि चीन उन्हीं जगह पर सैन्य तैनाती करेगा और इंफ्रास्ट्रक्चर बनाएगा जहां पर दोनों देश आमने-सामने की स्थिति में हैं, लेकिन मामला यह नहीं है। उन्होंने कहा, ”यह साफतौर पर इंफ्रास्ट्रक्चर अपग्रेड के जरिए से स्वायत्त क्षेत्र के सैन्यीकरण करने की कोशिश की गई है।”

अधिकारी ने हाल की तिब्बत इलाके की कुछ सैटेलाइट तस्वीरों का भी हवाला दिया, जिसमें ल्हासा के गोंगगर एयरबेस पर फाइटर जेट्स के लिए शेल्टर्स, किन्झाई प्रांत के गोलमुद में बड़े पैमाने पर भंडारण की सुविधा, झिंजियांग क्षेत्र के कांजीवर के बीच एक नई सड़क आदि दिखाई दे रही थीं। डेम्चोक से लेकर शिकुअन तक 82 किलोमीटर तक डेवलपमेंट और अधिकृत अक्साई चिन के माब्दो ला कैंप में शेल्टर्स के निर्माण से पता चलता है कि जब पूरी दुनिया की नजरें भारत-चीन विवाद पर है, तब भी चीन की कम्युनिष्ट सरकार तिब्बत पर मुहर लगाने को जारी रख रही है। 

वहीं, एक दूसरे अधिकारी ने शी जिनपिंग के 20 अगस्त, 2020 को कहे गए उस बयान का भी जिक्र किया जिसमें उन्होंने तिब्बत में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए एक “अभेद्य किले” का निर्माण करने की बात कही थी। ‘तिब्बत वर्क’ पर आयोजित कम्युनिस्ट पार्टी संगोष्ठी में बोलते हुए, शी जिनपिंग ने पार्टी नेताओं को सीमा सुरक्षा को मजबूत करने, तिब्बत में सीमांत सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था।

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