रोज़ाना शाम को सजती थी दारोगा जी की अनूठी पाठशाला
विकास यादव
वाराणसी। पुलिस का नाम सुनते ही लोगों के जेहन में खाकी वर्दी पहने कड़क मिजाज और रौबीले शख्स की तस्वीर उभरती है। हालांकि, कोतवाली थाने की अंबियां मंडी चौकी इंचार्ज अनिल कुमार मिश्रा ने पुलिस की इस परंपरागत तस्वीर से इतर नन्हें मुन्ने बच्चों के मन में अपनी अलग ही छवि बनाई है। दरअसल दरोगा अनिल कुमार मिश्रा अपनी चौकी में रोजाना शाम के समय बच्चों के लिए अनूठी पाठशाला लगाते थे। इस पाठशाला में वह क्षेत्र के बच्चों को न सिर्फ पढ़ाते थे बल्कि उन्हें स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेजों से लोहा लेने वाले अमर शहीद क्रांतिकारियों की कहानियां भी सुनाते थे। बच्चे भी बड़े चाव से अपने अनिल अंकल से महात्मा गांधी, सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, नेताजी सुभाषचंद्र बोष, बाल गंगाधर तिलक, बटुकेश्वर दत्त, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, मंगल पांडेय, रानी चिन्नमा आदि की वीरता की कहानियां सुनते थे। ऐसे में जब पुलिस चौकी से उनकी विदाई की बेला आई तो वह सबको रुला गए।
कोतवाली थाने से कपसेठी हुआ ट्रांसफर, बच्चे हुए भावुक
दारोगा अनिल कुमार मिश्रा का तबादला कोतवाली से कपसेठी थाने के लिए हुआ था। ऐसे में बच्चों के दारोगा अंकल भी भावुक हुए बिना न रह सके। उनकी आंखों से भी आंसू बह निकले। इस मौके पर सातवीं कक्षा का छात्र पंकज तो दारोगा अंकल को पकड़कर रोते हुए बोला ‘दारोगा अंकल आप न जाएं, हम कभी शरारत नहीं करेंगे’। कक्षा छह की छात्रा ने उन्हें रोकते हुए कहा, सर आप न जाएं, मैं रोज चौकी के पाठशाला आऊंगी और होमवर्क भी पूरा करूंगी। सचमुच शिक्षा के बाजारीकरण के दौर में यह गुरु-शिष्य परंपरा का अनूठा दृश्य था।
बेतरतीब घूमते बच्चों को देखकर मन में आया विचार, पाठशाला के जरिए उठाया सुधार का बीड़ा
दरअसल, अंबियां मंडी पुलिस चौकी के आसपास बड़ी संख्या में गरीब और निम्न मध्यमवर्गीय तबके के लोग रहते हैं। इन परिवारों के अधिकतर लोग छोटे-मोटे काम करते हैं। इनके बच्चे स्कूल के बाद खाली समय में इधर-उधर घूमा करते थे, जिससे इनके गलत संगत में पड़ने की आशंका रहती थी। इसके अलावा परिवार में रहने वाली छोटी बच्चियों के साथ अपराध होने का खतरा भी रहता था। ऐसे में चौकी प्रभारी अनिल ने पाठशाला के जरिए यहां के बच्चों को पढ़ाने और उन्हें आत्मरक्षा में निपुण करने का बीड़ा उठाया। बच्चों को पुलिस अंकल रोजाना शाम के समय अपनी चौकी पर बिस्कुट-टॉफी, मास्क व सैनिटाइजर बांटते थे। बच्चों को भी पुलिस अंकल का बेसब्री से इंतजार रहता था। बच्चे कहते थे कि पुलिस अंकल से हम लोगों को रोज बिस्कुट-टॉफी के साथ-साथ अच्छी बातें भी सीखने को मिलती थी। इसके अलावा कोराना काल में भी दारोगा अनिल कुमार मिश्र ने अपने स्तर पर मुफलिसी की मार झेल रहे लोगों की काफी मदद की थी।
खुद भी झेला है मुफलिसी का दर्द, लिहाजा बच्चों कि स्थिति को भलीभांति समझते हैं
दरोगा अनिल कुमार मिश्र ने कहा कि उन्होंने खुद एक सरकारी स्कूल से पढ़ाई की है। सरकारी स्कूलों में न सिर्फ संसाधनों की कमी होती है, बल्कि कई बार शिक्षक सिर्फ नाम के लिए ही पढ़ाते हैं। सभी के पास ट्यूशन पढ़ने के लिए पैसे भी नहीं होते हैं। अच्छी बात यह है कि इन बच्चों के मां-बाप भले ही गरीब और कम पढ़े लिखे हैं, लेकिन वे पढ़ाई के प्रति जागरूक हैं और वे प्रतिदिन अपने बच्चों को यहां पढ़ने के लिए भेजते थे। अपने नन्हें मुन्ने दोस्तों के पुलिस अंकल ने बताया कि यहां के अधिकतर बच्चे पढ़ने में तेज हैं, लेकिन सही दिशा और सलाह न मिल पाने के कारण कुछ पिछड़ जरूर हैं। ऐसे में अगर इन्हें उपयुक्त मार्गदर्शन मिले तो ये लोग बहुत अच्छे परिणाम दे सकते हैं।
रूपहले पर्दे का कैरेक्टर, रियल लाइफ में दिखा
कोतवाली थाने की अंबियां मंडी चौकी इंचार्ज अनिल कुमार मिश्रा की ऐसी तस्वीर ने यह साफ कर दिया कि पुलिस की ऐसी मानवीय कहानियां सिर्फ रूपहले पर्दे तक सीमित नहीं रहती बल्कि उनका एक अपना यथार्थ भी होता है। वास्तविक घटनाएं फिल्मों से कहीं अधिक प्रेरणादायक होती है।