प्रवीण कुमार
भारतीय जनता पार्टी और केंद्र की मोदी सरकार इस वक्त अपने ही ‘स्वामी जनों’ की हरकतों से मुसीबत में है. एक हैं स्वामी चिन्मयानंद जो अपने निकृष्ट चरित्र से भाजपा की सेहत बिगाड़ रहे हैं और दूसरे हैं सुब्रमण्यम स्वामी जो आर्थिक मंदी की आड़ में मोदी सरकार की मोदीनॉमिक्स और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की आर्थिक समझ पर लगातार सवाल खड़े कर रहे हैं.
पहले बात करते हैं सुब्रमण्यम स्वामी की जो वर्तमान में भाजपा से राज्यसभा सांसद हैं और ऐसा लगता है कि भाजपा ने उन्हें मोदीनॉमिक्स और भारतीय अर्थव्यवस्था की खामियां उजागर करने की खुली छूट दे रखी है. आर्थिक मंदी को लेकर अपने ताजा बयान में स्वामी ने पीएम मोदी को एक प्रकार से सलाह के अंदाज में अप्रिय सच सुनने का मिजाज पैदा करने की नसीहत दी है. साथ में ये भी जोड़ा कि अगर आप अर्थव्यवस्था को संकट से बाहर निकालना चाहते हैं तो सरकार के अर्थशास्त्रियों को भयभीत करना बंद करें. बीते दिनों एक किताब की लांन्चिंग समारोह में जब स्वामी के बोलने की बारी आई तो वो लगे बोलने- ‘मोदी जिस तरह से सरकार चलाते हैं, उसमें बहुत कम लोग रेखा से बाहर कदम रख सकते हैं. उन्हें लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिए कि वह मुंह पर कह सकें कि यह नहीं होना चाहिए. मुझे लगता है कि उन्होंने अभी ऐसा मिजाज पैदा नहीं किया है.’
दरअसल स्वामी की टिप्पणी ऐसे वक्त में आई है, जब देश की विकास दर बीते छह साल में सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुकी है. इतना ही नहीं, अर्थव्यवस्था के संकट के लिए स्वामी ने नोटबंदी और जल्दबाजी में लागू किए गए जीएसटी को भी जिम्मेदार बताया. सरकार उच्चतर वृद्धि के लिए जरूरी नीतियों को ही नहीं समझ पाई. हमें एक ऐसे तरीके की जरूरत है, जिसमें हमारी अर्थव्यवस्था में लघु अवधि, मध्यम अवधि और दीर्घावधि के लिए योजनाएं हों लेकिन, आज ऐसा कुछ नहीं है. मुझे डर है कि सरकार द्वारा नियुक्त अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री को सच बताने में डरते हैं. स्वामी का ये पूरा का पूरा प्रवचन मोदी सरकार और मोदीनॉमिक्स पर सीधा हमला है. अक्सर अपनी इस तरह की टिप्पणी से स्वामी सरकार को नीचा दिखाने को कोई मौका नहीं छोड़ते हैं. जब वह बोलते हैं या ट्वीटर पर लिखते हैं उस वक्त यह भूल जाते हैं कि वह एक पार्टी के सांसद हैं. इसमें कोई दो राय नहीं कि स्वामी जो कुछ लिख और बोल रहे हैं वह सच के काफी करीब होता है, हार्वर्ड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएचडी कर रखी है लेकिन, इस बात का ख्याल तो रखना ही चाहिए कि वह पार्टी के अनुशासन से बंधे हैं और ऐसी कोई बात नहीं करें जिससे पार्टी या सरकार का हाजमा बिगड़ जाए.
भाजपा की सेहत से खिलवाड़ करने वाले दूसरे स्वामी हैं चिन्मयानंद जिन्हें स्वामी चिन्मयानंद के नाम से लोग जानते हैं और इनका असली नाम कृष्णपाल सिंह है. पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे स्वामी चिन्मयानंद भाजपा के कद्दावर नेता रहे हैं और इस वक्त कानून की एक छात्रा से रेप के आरोप में जेल में बंद हैं. जिस छात्रा ने चिन्मयानंद पर आरोपों की झड़ी लगाई है उसके मुताबिक स्वामी लड़कियों से न्यूड मसाज कराते थे, लड़कियां जब सेक्स करने से मना करती थी तो वह गुस्से में उसके कपड़े तक फाड़ देते थे. ऐसे-ऐसे आरोप जिस स्वामी पर लगे और वह भाजपा का कद्दावर नेता रहा हो, निश्चित रूप से भाजपा जैसी दक्षिणपंथी विचारधारा वाली पार्टी के दामन को दागदार तो कर ही रहा है. भाजपा भले ही अब स्वामी से पल्ला झाड़ रही हो लेकिन इस बात से कोई कैसे इनकार कर सकता है कि स्वामी चिन्मयानंद अटल सरकार में गृह राज्य मंत्री रहे हैं. इस बात से कोई कैसे इनकार कर सकता है कि वह 1991 में भाजपा के टिकट पर बदायूं से, 1998 में मछलीशहर से और 1999 में जौनपुर से सांसद रहे हैं. राम मंदिर आंदोलन में भी स्वामी चिन्मयानंद ने गोरखपुर की गोरक्षा पीठ के महंत और पूर्व सांसद अवैद्यनाथ के साथ मिलकर बड़ी भूमिका निभाई थी. कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी समेत तमाम विपक्षी दलों के नेता भाजपा के चाल, चरित्र और चेहरे पर सवालिया निशान लगा रहे हैं. जाहिर है भाजपा आलाकमान, संगठन, नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए स्वामी चिन्मयानंद परेशानी का सबब तो बन ही गए हैं.
बहरहाल, भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व को इस बात को समझने की जरूरत है कि चाहे वो सुब्रमण्यम स्वामी के वाजिब तार्किक बातें हों या स्वामी चिन्मयानंद के घिनौने कृत्य, यह पार्टी की सेहत के लिए फलदायी नहीं हो सकती है. देर-सवेर इसका खामियाजा पार्टी और सरकार को भुगतना ही पड़ता है. ऐसा भी नहीं है कि इन स्वामी जनों के आचार, विचार और व्यवहार से पार्टी या पार्टी के नेता अनभिज्ञ रहे हों. सुब्रमण्यम स्वामी को मोदीनॉमिक्स पर कोई बात अगर ठीक नहीं लगती है तो तो उन्हें पार्टी फोरम में बात रखने का मौका दिया जाना चाहिए. लेकिन अगर आप दूरियां बनाएंगे तो फिर वो परेशानी तो खड़ी करेंगे ही. लेकिन स्वामी चिन्मयानंद जैसे लोगों से निपटने का एक ही तरीका है कि ऐसे मामलों में पार्टी और सरकार को स्वत: संज्ञान लेकर जरूरी कार्रवाई करनी चाहिए और तत्काल प्रभाव से इस बात का ऐलान करना चाहिए कि ऐसे शख्स का पार्टी से कोई लेना देना नहीं है. खुले तौर पर ऐसे घृणित व्यक्ति को पार्टी में जगह देने के लिए समाज और देश से माफी मांग लेनी चाहिए.