इस समय पूरी दुनिया कोरोना वायरस से जूझ रही है और बचने के लिए एकांतवास की बात कर रही है। लेकिन महात्मा गांधी ने 102 साल पहले एकांतवास के जरिये कोविड 19 से कही खतरनाक महामारी पर भी जीत हासिल कर ली थी। साल 1918 में स्‍पेनिश फ्लू ने पूरी दुनिया में करीब 10 करोड़ लोगों की जिंदगी छीन ली थी। तब महात्‍मा गांधी ने कुछ नियमों का पालन कर इस महामारी को हरा दिया था।

कोरोना वायरस का खौफ इस समय पूरी दुनिया में फैला हुआ है. अभी तक इस जानलेवा वायरस की वजह से 24 हज़ार लोगों की जान जा चुकी है। भारत में 735 लोग संक्रमित हो चुके हैं। इनमें 20 लोगों की मौत हो चुकी है। हालांकि, 47 लोग स्‍वस्‍थ होकर घर लौट चुके हैं। केंद्र सरकार ने संक्रमण फैलने से रोकने के लिए पूरे देश में 21 दिन का लॉकडाउन कर दिया है। ये पहली बार नहीं है कि दुनिया ऐसी किसी महामारी का सामना कर रही है। अब से 102 साल पहले 1918 में भी ऐसी ही एक महामारी ने पूरी दुनिया में तबाही मचाई थी। अकेले भारत में ही तब करीब 14 लाख लोग इस बीमारी की चपेट में आए थे। महात्‍मा गांधी भी उस महामारी की चपेट में आ गए थे। तब उन्‍होंने गुजरात के अपने आश्रम रहकर ही उस महामारी को मात दी थी।

एक अनुमान के मुताबिक, दुनियाभर में स्‍पेनिश फ्लू के कारण करीब 10 करोड़ लोगों की मौत हो गई थी। महात्मा गांधी के एक सहयोगी ने एक बार बताया था कि 1918 में उन्हें भी स्‍पेनिश फ्लू हो गया था. तब उन्‍हें दक्षिण अफ्रीका से लौटे हुए चार साल गुजर चुके थे। उस वक्त महात्मा गांधी की उम्र 48 साल थी। फ्लू होने पर उन्हें आराम करने को कहा गया था। इसके बाद वह लिक्विड डाइट पर चले गए। जब उनकी बीमारी की खबर फैली तो एक स्थानीय अखबार ने लिखा था कि गांधीजी की जिंदगी सिर्फ उनकी नहीं है, बल्कि पूरे देश की है।

महात्‍मा गांधी ने संयम, एकांतवास और लिक्विड डाइट पर भरोसा जताया। जल्‍द ही वह स्‍वस्‍थ हो गए। इस दौरान उनके आश्रम में रहने वाले सभी लोगों ने महात्‍मा गांधी के नियमों का पालन किया। इससे आश्रम में रहने वाले सभी लोग स्‍पेनिश फ्लू से बच गए। महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में रहने के दौरान प्‍लेग का भी जमकर मुकाबला किया था। उस दौरान उन्‍होंने गौटेंग प्रांत में स्वयंसेवक के तौर पर दक्षिण अफ्रीका में काम किया था। स्‍पेनिश फ्लू के दौरान महात्‍मा गांधी आश्रम में ही रहे। उनके नियमों का पालन कर आश्रम में रहने वाले सभी लोग स्‍पेनिश फ्लू से बच गए।

निराला जी की पत्नी का भी हुआ था देहांत

गांधी और उनके सहयोगी किस्मत के धनी थे कि वो सब बच गए। हिंदी के मशहूर कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की बीवी और घर के कई दूसरे सदस्य इस बीमारी की भेंट चढ़ गए थे।

उन्‍होंने लिखा था कि पलक झपकते ही मेरा परिवार आंखों से ओझल हो गया। उन्‍होंने तब के हालात के बारे में लिखा कि गंगा नदी शवों से पट गई थी। चारों तरफ इतने शव थे कि उन्हें जलाने के लिए लकड़ी कम पड़ रही थी। खराब मानसून की वजह से सूखा पड़ने के बाद हालात और बिगड़ गए। लोग और कमजोर होने लगे, उनकी प्रतिरोधक क्षमता कम हो गई।

स्‍पेनिश फ्लू के कारण 10 जून, 1918 को बॉम्‍बे के सात पुलिसकर्मियों को बुखार की वजह से अस्पताल में भर्ती कराया गया। अगले कुछ हफ्तों में बीमारी तेजी से फैली। कई कंपनियों के कर्मचारी इसका शिकार बन गए। इनमें शिपिंग फर्म, बॉम्बे पोर्ट ट्रंस्ट के कर्मचारी भी थे। वहीं, हांगकांग और शंघाई बैंक में काम करने वाले भी इस गंभीर बीमारी की चपेट में आए। इस फ्लू की चपेट में आए मरीजों को बुखार, हड्डियों व आंखों में दर्द की शिकायत होती थी। रेलवे लाइन शुरू होने की वजह से देश के दूसरे हिस्सों में भी ये बीमारी तेजी से फैल गई बाद में असम में इस फ्लू का एक इंजेक्शन तैयार किया गया, जिससे कथित तौर पर हजारों मरीजों का टीकाकरण किया गया। इससे इस बीमारी को रोकने में कुछ कामयाबी मिली।

मारे गए थे करीब पौने दो करोड भारतीय

माना जाता है कि यह फ्लू बॉम्बे (अब मुंबई) में लौटे सैनिकों के जहाज से 1918 में पूरे देश में फैला था। हेल्थ इंस्पेक्टर जेएस टर्नर के मुताबिक, इस फ्लू का वायरस चुपके से भारत में घुसा और तेजी से फैल गया. उसी साल सितंबर में यह महामारी दक्षिण भारत के तटीय क्षेत्रों में फैलनी शुरू हो गई। हालांकि, आधिकारिक रिपोर्ट में 14 लाख भारतीयों के इस बीमारी से मरने की बात कही गई है, लेकिन टर्नर के अनुमान के मुताबिक इसकी वजह से करीब पौने दो करोड़ भारतीयों की मौत हुई थी। ये संख्‍या विश्व युद्ध में मारे गए लोगों से भी ज्यादा थी। उस वक्त भारत ने अपनी आबादी का छह फीसदी हिस्सा इस बीमारी में खो दिया। मरने वालों में ज्यादातर महिलाएं थीं। ऐसा माना जाता है कि इस महामारी से दुनिया की एक तिहाई आबादी प्रभावित हुई थी और करीब पांच से दस करोड़ लोगों की मौत हो गई थी।

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