वाराणसी। बाबा विश्वनाथ को होली पर हर्बल गुलाल चढ़ेगा। मंदिरों से आए निर्माल्य से ही हर्बल गुलाल को तैयार किया जा रहा है। मंदिरों से निकलने वाले फूल कचरे का हिस्सा नहीं बन रहे। न ही यह नदी को दूषित करते हैं। स्वयं सहायता समूह की महिलाओं द्वारा मंदिरों से फूलों को इकट्ठा कर इनको सुखा लिया जाता है।
कैसे बनता है ये गुलाल ?
गरम पानी में उबालकर रंग निकाला जाता है। उसके बाद इसमें अरारोट मिलाकर फिर निकले हुए फूल की पंखुड़ियों को पीसकर अरारोट मिलाकर गुलाल तैयार किया जाता है। काशी विश्वनाथ के अलावा, मिजार्पुर के विन्ध्याचंल मंदिर में हर्बल गुलाल चढ़ाने की तैयारी है।
विदेशों में भी है मांग
वहीं बनारस में उगने वाले पलास के फूलों से तैयार प्राकृतिक रंग लंदन को भी सराबोर करेंगे। इस बार होली में देश के अन्य हिस्सों के साथ ही लंदन से बड़ी मात्रा में इसकी डिमांड आयी है। इसे पूरा करने के लिए उप्र राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत संचालित स्वयं सहायता समूह की महिलाएं वाराणसी के साथ ही सोनभद्र, मिजार्पुर, चंदौली, चित्रकूट में कई रंगों के गुलाल और रंग तैयार कर रही हैं।
केमिकल नहीं बल्कि प्राकृतिक तत्व
रंगों से सराबोर होली पूरी दुनिया में खेली, लाल, पीले, नीले, गुलाबी रंगों में रंग जाना हर कोई चाहता है। अगर वह रंग केमिकल के ना होकर पलास के फूलों से बने हों तो क्या कहने। हालांकि इसे बनाना आसान नहीं होता है। पलाश के पुष्पों से हर्बल गुलाल रंग तैयार करने वाली स्वयं सहायता समूह की महिलाओं इसे तैयार करने के तरीके के बारे में बताया।
60-70 रुपये में एक किलो गुलाल तैयार
सबसे पहले पलाश के फूलों को तोड़कर उसे एक दिन सुखाया जाता है। फिर उसे पानी में दो घंटे उबालते हैं तो यह रंग छोड़ देता है। इसके बाद इसमें अरारोट और पलाश के पानी का रंग मिला लेते हैं। फिर इसे फैलाकर सूखा लेते हैं। इससे हर्बल गुलाल तैयार हो जाता है। एक किलो रंग तैयार करने में 60 से 70 रुपए खर्च होते हैं।
5000 किलो हर्बल रंग-गुलाल
बाजार में यह 150 से 200 प्रतिकिलो के बीच बिक जाता है। जहां -जहां पलाश होता है वहां के स्वयं सहायता समूह की महिलाएं इस काम को कर रही हैं। अभी तक उत्तर प्रदेश के 32 जनपदों में 4058 महिला समूहों द्वारा प्रतिदिन 5000 किलो हर्बल रंग और गुलाल तैयार किया जा रहा है, जिसका बिक्री मूल्य लगभग 7 लाख रुपए है।
औषधीय गुणों से युक्त
कोरोना के बढ़ते केस की वजह से लोग केमिकल वाले रंग इस्तेमाल नहीं करना चाहते हैं। वहीं पलास में औषधीय गुण होते हैं। इससे बने रंग प्राकृतिक होते हैं और इससे किसी प्रकार का नुकसान नहीं होता। यह एंटी फंगल होता और स्कीन और पेट के लिए लाभकारी माना जाता है। इस रंग के बदन पर पड़ने के बाद नुकसान नहीं होता है। बल्कि फायदा होता है. ना सिर्फ त्वचा बल्कि पेट संबंधित कई रोगों को दूर करने में काफी फायदेमंद साबित होता है।
राशि अनुरूप चुनें अपने रंग
होली में रंग जरूर खेले, लाल, नीले, पीले हरे रंगों से सबको सराबोर करें लेकिन आप अपनी राशि के मुताबिक रंग चुनना चाहते हैं तो हम इसकी जानकारी आपको देते हैं।
- सिंह-नारंगी व पीला
- कन्या-हरा व सफेद
- तुला-सफेद व नीला
- वृष-सफेद व नीला
- मिथुन-हरा व नीला
- कर्क-सफेद व पीला
- मकर-नीला व सफेद
- कुम्भ-नीला व हरा
- मीन-पीला व सफेद
- वृश्चिक-लाल व पीला
- धनु-पीला व नारंगी
- मेष-लाल व पीला