जब किसी को यह पता हो कि उसकी अप्राकृतिक मौत होने वाली है तो उसकी मनोदशा क्या होग, इसे समझा जा सकता है। सात बरस तीन माह बाद अपने जघन्यतम अपराध मे मिले दंड के अंजाम से पहले निर्भया के आरोपी चारों दरिन्दों ने आखिरी वक्त तक कोशिश की मगर तडके साढे तीन बजे सुप्रीम कोर्ट मे इनकी अर्जी ठुकराए जाने के बाद वे जान गए कि दो घंटे ही बचे हैं उनकी सांस बंद होने मे।

जेल से मिले सूत्र के मुताबिक सुबह सवा तीन बजे इन्हें जगाया गया। हालांकि ये चारों रात भर करवट ही बदलते रहे थे। सुबह करीब 4:30 बजे इन्हें चाय दी गई, लेकिन सभी ने चाय पीने से मना कर दिया। इन सबने नाश्ता खाने से भी इनकार कर दिया। इसके बाद जल्लाद ने चारों को काले रंग की पोशाक पहनाई। इस दौरान इन सबके हाथ पीछे की ओर बांध दिए गए। दो दोषियों ने हाथ बंधवाने से भी इनकार कर दिया, लेकिन बाद में पुलिस वालों की मदद से इनके हाथ बांध दिए गए।

जमीन पर लेट कर लगे चारों माफी मांगने

फांसी के घर पहुंचते ही चारों जमीन पर लेट गए। रोते हुए माफी मांगने लगे। लेकिन बहुत देर हो चुकी थी । कोर्ट मे यदि ऐसा किया होता तो शायद मौत से कम की सजा मिलती।

खैर, जेल अधिकारियों की मदद से उन्हें आगे ले जाया गया। इसके बाद जल्लाद ने चारों अपराधियों के मुंह ढक कर गले में रस्सी की गांठ को सतर्कता से कस दिया। जैसे ही जेल सुपरिटेंडेंट ने इशारा किया जल्लाद ने लिवर खींच दिया।दो घंटे बाद डॉक्टर ने इन चारों को मृत घोषित कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के मुताबिक, फांसी के बाद शव का पोस्टमार्टम किया गया। . इसके बाद शव को परिजनों को सौंपा जाएगा या नहीं यह जेल सुपरिटेंडेंट को तय करना होता है। अगर जेल सुपरिटेंडेंट को लगता है कि अपराधी के शव का गलत इस्तेमाल हो सकता है तो वह परिजनों को शव देने से इनकार कर सकता है।

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