असम में सत्ता में होने के बावजूद भाजपा विधानसभा चुनाव को लेकर पूरी तरह से सतर्क है। पार्टी ने राज्य में सौ सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। इस बीच, उसने नए सहयोगी भी खोजे हैं और पुराने दोस्तों से भी संबंध बिगाड़े नहीं हैं। राज्य में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की हालात पांच वर्षों में और कमजोर हुई है। इसका लाभ भाजपा को मिल सकता है। पार्टी ने राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) मुद्दे की धार भी कम की है।
इस साल अप्रैल-मई में होने वाले पांच विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा शोर पश्चिम बंगाल को लेकर है, लेकिन भाजपा अपनी सत्ता वाले असम को लेकर किसी तरह के अति आत्मविश्वास में नहीं है। हालांकि, पार्टी अपनी रणनीति को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त है। सालभर पहले तक भाजपा इतनी आश्वस्त नहीं थी, लेकिन हाल ही में हुए बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद (बीटीसी) के चुनाव में नए सहयोगी के साथ मिली सफलता से उसके हौंसले बुलंद हैं। यहां भाजपा एक से नौ सीट पर पहुंची है।
भाजपा ने 2016 का विधानसभा चुनाव बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) और असम गण परिषद (एजीपी) के साथ मिलकर लड़ा था, लेकिन बीटीसी चुनावों से पहले उसने बीपीएफ का साथ छोड़ दिया है। 2016 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 60, एजीपी को 14 और बीपीएफ को 12 सीटें मिली थीं। भाजपा की कोशिश विधानसभा चुनाव में इस गठबंधन को बरकरार रखने की है। हालांकि, बीटीसी चुनाव में उसने बीपीएफ की जगह छात्र नेता से नेता बने प्रमोद बोरो की यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) से दोस्ती की है। बीटीसी में उसके साथ ही सत्ता कब्जाई है। बीटीसी के अलावा तीवा ऑटोनॉमस काउंसिल चुनावों में भी भाजपा की 36 में से 33 सीटों पर जीत हुई है। 2015 में पार्टी को मात्र तीन सीटें मिली थीं। राज्य में कुल 126 विधानसभा सीटें हैं।
एनआरसी पर विरोध थमा
इस स्थिति में भी भाजपा पूरी सतर्कता बरत रही है। उसके बड़े नेता गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने राज्य के दौरे किए हैं। पार्टी को मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल और हेमंत विस्वसर्मा की जोड़ी पर भी पूरा भरोसा है। इन दोनों ने एनआरसी के मुद्दे को हावी नहीं होने दिया है। हालांकि, विधानसभा चुनाव में यह मुद्दा फिर उभर सकता है।